छठ महापर्व: कृतज्ञता का उत्सव
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छठ महापर्व: कृतज्ञता का उत्सव
डॉ मंजू लोढ़ा, वरिष्ठ साहित्यकार
आओ, आओ...
छठ महापर्व मनाएं,
प्रकृति से फिर एक बार साक्षात्कार करें,
सूर्य की सुनहरी किरणों में
जीवन का आभार धरें।
यह पर्व केवल उपवास नहीं,
यह आत्म-नियंत्रण की साधना है,
यह सिर्फ जल-अर्घ्य नहीं,
यह कृतज्ञता की भावना है।
जाति, गरीबी, ऊँच-नीच –
सब भेद मिट जाते हैं इस दिन,
हर घाट, हर नदी के किनारे
मनुष्य एक समान हो जाते हैं।
ब्रह्मा जी की मानस पुत्री छठी मैया,
जिनसे जगत हुआ कल्याण,
आज भी हर माँ का संकल्प हैं,
संतान के सुख का वरदान हैं।
सूर्यदेव — जीवन के स्रोत,
ऊर्जा, प्रकाश और प्राण के दाता,
उनके प्रति आभार का यह पर्व,
हर इंसान को करता जाग्रत।
छत्तीस घंटे का यह कठिन उपवास —
सिर्फ शरीर का नहीं, मन का भी तप है,
जहाँ व्रती आत्मा से संवाद करती है,
और प्रभु के और निकट जाती है।
‘उपवास’ का अर्थ ही है —
‘उप’ यानी पास, ‘वास’ यानी रहना
ईश्वर के पास रहना,
आत्मा में रमना,
प्रकृति से पुनः जुड़ना।
राम और सीता ने भी किया यह व्रत,
अयोध्या लौटकर सूर्य को नमन किया,
द्रौपदी ने भी छठ मनाया,
पांडवों के पुनः राज्य पाने का आशीष लिया।
राजा प्रियव्रत ने संतान हेतु किया पूजन,
सृष्टि देवी ने दिया वरदान,
छठी मैया ने तब से ही,
हर माँ का बढ़ाया मान।
जब घाटों पर सूर्य अस्त होता है,
और सूप में दीप, फल, ठेकुआ सजता है,
वह क्षण नहीं, वह श्रद्धा का सागर है,
जहाँ हर प्रार्थना शुद्ध होकर ऊपर उठता है।
भारत में नदियाँ हमारी माताएँ हैं,
उनकी गोद में स्नान कर हम शुद्ध होते हैं,
जल की हर बूंद में आशीर्वाद है,
प्रकृति की हर लहर में कृपा झरती है।
इसलिए—
आओ, हम अपना फर्ज निभाएं,
सूर्य को, नदियों को, वृक्षों को धन्यवाद दें,
जिनसे हमें जीवन, अन्न, जल, और प्राण मिलता है।
कृतज्ञता का यही भाव,
छठ का यही सच्चा संदेश है—
“जो देता है, उसका मान करो;
जो बनाता है, उसका आभार करो।”
यह पर्व हमें सिखाता है—
सादा जीवन, उच्च विचार,
आत्मसंयम, भक्ति और परिवार का प्यार।
छठी मैया का आशीष हम सब पर बरसे,
हर घर में सुख-शांति का दीप जले,
सूर्य की पहली किरण जब गिरे धरती पर,
तो हर मन में बस यही भाव फले —
धन्यवाद प्रकृति माता!
धन्यवाद इस जीवन को!”

