बिहार राज्य विधानसभा चुनाव 2025: आचारसंहिता प्रशासनिक शक्ति और लोकतांत्रिक शुचिता का इम्तिहान
चुनावी परिदृश्य में दुनियाँ देखेगी कि सबसे बड़े लोकतंत्र में निष्पक्ष और पारदर्शी चुनावों की प्रक्रिया कैसे सुदृढ़ होती है।
चुनावी आचार संहिता भारतीय लोकतंत्र की वह नैतिक मर्यादा है,जो राजनीतिक दलों,नेताओं और सरकार को सत्ता के दुरुपयोग से रोकती है- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र
नया सवेरा नेटवर्क
गोंदिया - वैश्विक स्तरपर भारत एक ऐसा देश है, जहां लोकतंत्र सिर्फ एक राजनीतिक व्यवस्था नहीं, बल्कि एक सामाजिक आस्था है। हर चुनाव इस आस्था की परीक्षा भी होता है और लोकतंत्र की आत्मा की पुनर्पुष्टि भी। वर्ष 2025 के राज्य बिहार विधानसभा चुनाव सहित कुछ राज्यों की विधानसभाओं का उपचुनाव इस दृष्टि से बेहद अहम माने जा रहे हैं। आगामी 6 नवंबर और 11 नवंबर को दो चरणों में बिहार में मतदान होने जा रहा है, जबकि मतगणना 14 नवंबर को होगी। चुनाव आयोग ने तारीखों की घोषणा करते ही आचार संहिता लागू कर दी है, और इसके साथ ही पूरा प्रशासन सक्रिय मोड में आ गया है। इस चुनावी परिदृश्य में भारत न केवल अपने भीतर लोकतांत्रिक शुचिता की परीक्षा दे रहा है, बल्कि यह भी दिखा रहा है कि दुनियाँ के सबसे बड़े लोकतंत्र में निष्पक्ष और पारदर्शी चुनावों की प्रक्रिया कैसे सुदृढ़ होती है।साथियों बात अगर हम बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की करें तो,प्रथम चरण में कुल सीट:121 नोटिफिकेशन की तारीख:10 अक्टूबर 2025 नामांकन की आखिरी तारीख: 17अक्टूबर 2025 नामांकन जांच की आखिरी तारीख:18 अक्टूबर 2025 नामांकन वापस लेने की अंतिम तारीख:20 अक्टूबर 2025 मतदान:6 नवंबर 2025 चुनाव रिजल्ट:14 नवंबर 2025 चरण में बिहार विधानसभा चुनाव 2025 फेज- 2 शेड्यूलकुल सीट:122 नोटिफिकेशन की तारीख:13 अक्टूबर 2025 नामांकन की आखिरी तारीख:20 अक्टूबर 2025 नामांकन जांच की आखिरी तारीख:21 अक्टूबर 2025 नामांकन वापस लेने की अंतिम तारीख:23 अक्टूबर 2025 मतदान:11 नवंबर 2025 चुनाव रिजल्ट:14 नवंबर 2025
साथियों बात अगर हम चुनाव आचार संहिता क़े अर्थ और महत्व की करें तो,चुनावी आचार संहिता भारतीय लोकतंत्र की वह नैतिक मर्यादा है, जो राजनीतिक दलों, नेताओं और सरकार को सत्ता के दुरुपयोग से रोकती है। इसे चुनाव आयोग द्वारा संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत लागू किया जाता है।इसका मूल उद्देश्य है कि सत्तारूढ़ दल चुनावी प्रक्रिया के दौरान सरकारी संसाधनों का राजनीतिक लाभ के लिए उपयोग न करे,तथा विपक्षी दलों को समान अवसर मिले। यह संहिता न केवल प्रशासनिक निष्पक्षता सुनिश्चित करती है बल्कि जनविश्वास को भी बनाए रखती है। लोकतंत्र में यह “आचार” ही वह संतुलन है जो“सत्ता” को “सेवा”में परिवर्तित करता है।2025 के विधानसभा चुनावों में यह आचार संहिता पहले से अधिक सख्ती से लागू की गई है। चुनाव आयोग ने स्पष्ट कहा है कि यदि कोई मंत्री या जनप्रतिनिधि सरकारी गाड़ी, बंगला, हेलीकॉप्टर या कोई भी सरकारी संसाधन चुनाव प्रचार में इस्तेमाल करता पाया गया, तो उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई होगी।सरकारी वेबसाइटों से नेताओं की तस्वीरें हटाई जा रही हैं, नई योजनाओं की घोषणाओं पर रोक लगा दी गई है और सरकारी धन का किसी भी प्रकार से राजनीतिक प्रचार में उपयोग वर्जित कर दिया गया है। यह व्यवस्था प्रशासनिक निष्पक्षता की दिशा में एक निर्णायक कदम है।
साथियों बात अगर हम प्रशासनिक सक्रियता और अनुशासन की परीक्षाकी करें तो,आचार संहिता लागू होते ही राज्य का प्रशासन भी युद्धस्तर पर सक्रिय हो गया है।जिलाधिकारियों से लेकर थानेदार तक को यह हिदायत दी गई है कि किसी भी तरह की राजनीतिक पक्षधरता न दिखे। पुलिस, आयकर विभाग,और निर्वाचन विभाग की संयुक्त टीमें गठित की गई हैं ताकि अवैध धन, शराब, उपहार या अन्य प्रलोभनों के वितरण पर रोक लगाई जा सके। यह भी सुनिश्चित किया गया है कि सोशल मीडिया के माध्यम से भड़काऊ या झूठे प्रचार को नियंत्रित किया जाए। “ये किए तो जाना पड़ेगा जेल”- यह चेतावनी प्रशासन ने खुले रूप में दी है। इसका सीधा अर्थ यह है कि किसी भी प्रकार के आचार संहिता उल्लंघन को अब केवल चेतावनी या जुर्माने तक सीमित नहीं रखा जाएगा, बल्कि कठोर दंडात्मक कार्रवाई होगी।यह कठोरता लोकतांत्रिक प्रक्रिया की रक्षा के लिए आवश्यक है। बीते वर्षों में सोशल मीडिया के ज़रिए झूठे प्रचार, वोटरों को प्रभावित करने वाली गलत सूचनाएं और नफरत फैलाने वाले बयानों की बाढ़ देखने को मिली है। ऐसे में प्रशासनिक सख्ती लोकतांत्रिक स्वास्थ्य के लिए एक आवश्यक “टीका” की तरह है।
साथियों बात अगर हम सरकारी सुविधाओं पर रोक, सत्ता और चुनाव के बीच की दीवार की करें तो, आचार संहिता के तहत एक प्रमुख निर्णय यह लिया गया है कि मंत्री अब सरकारी सुविधाओं का उपयोग नहीं कर पाएंगे। इसका अर्थ यह है कि चुनाव अवधि में सरकारी गाड़ी,सरकारी आवास,सुरक्षा व्यवस्था,या सरकारी कर्मचारियों की सेवाएं निजी प्रचार में इस्तेमाल नहीं की जा सकतीं। यह प्रावधान सत्ता और चुनाव के बीच एक स्पष्ट दीवार खड़ी करता है।इतिहास साक्षी है कि जब-जब सत्ता में बैठे नेताओं ने सरकारी संसाधनों का उपयोग चुनावी लाभ के लिए किया,तब-तब लोकतंत्र की साख को चोट पहुंची। इसलिए भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में इस प्रकार की रोक लोकतांत्रिक संतुलन बनाए रखने का आवश्यक औजार है।इसके साथ ही सरकार की वेबसाइटों, विज्ञापनों और प्रचार माध्यमों से नेताओं की तस्वीरें हटाई जा रही हैं। नई योजनाओं, नीतियों या घोषणाओं पर भी रोक रहेगी ताकि जनता के बीच कोई भ्रम या अनुचित लाभ का संदेश न जाए। यही आचार संहिता का सार है -कि सरकार जनता की होती है, किसी एक दल की नहीं।
सभाओं और जुलूसों पर नियंत्रण स्वतंत्रता और अनुशासन का
संगम - लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सर्वोपरि है, परंतु जब यह स्वतंत्रता दूसरों के अधिकारों का उल्लंघन करने लगे, तो इसे नियंत्रित करना आवश्यक हो जाता है। इसी कारण से चुनाव आयोग ने यह नियम स्पष्ट किया है कि सभा और जुलूस के लिए पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य होगा।यह व्यवस्था न केवल कानून- व्यवस्था बनाए रखने के लिए है, बल्कि हिंसा, अव्यवस्था और भीड़-प्रबंधन के दृष्टिकोण से भी आवश्यकअति है। मतदान केंद्रों के आसपास प्रचार पर रोक लगाना भी एक अत्यंत महत्वपूर्ण कदम है। इसका उद्देश्य मतदाताओं को भय, प्रलोभन या दबाव से मुक्त वातावरण प्रदान करना है ताकि वे स्वतंत्र रूप से मतदान कर सकें। यह केवल चुनावी नियम नहीं बल्कि मतदाता की गरिमा और निजता की सुरक्षा है-जो किसी भी लोकतंत्र का मूल तत्व है।
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साथियों बात अगर हम लोकतांत्रिक शुचिता का अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण को समझने की करें तो,भारत की आचार संहिता की व्यवस्था को दुनिया के कई लोकतांत्रिक देशों में एक आदर्श के रूप में देखा जाता है। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस या जापान जैसे देशों में भी चुनावों के दौरान कुछ सीमित प्रतिबंध लागू किए जाते हैं, परंतु भारत की तरह व्यापक और संगठित आचार संहिता शायद ही कहीं हो।संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम और कॉमनवेल्थ ऑब्जर्वर ग्रुप ने कई बार कहा है कि भारत की चुनावी व्यवस्था “विकासशील लोकतंत्रों के लिए मॉडल” है। चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और उसके आदेशों की बाध्यता अंतरराष्ट्रीय मानकों पर भी अत्यंत उच्च मानी जाती है।भारत में एक ही चुनाव में लाखों अधिकारी, सैकड़ों एजेंसियाँ और करोड़ों मतदाता शामिल होते हैं -इस स्तर की पारदर्शिता और संगठन क्षमता किसी भी राष्ट्र के लिए प्रशंसनीय है। यही कारण है कि भारत की चुनावी प्रक्रिया वैश्विक लोकतंत्रों के लिए अध्ययन का विषय बनी रहती है।
साथियों बात अगर हम राजनीतिक मर्यादा और भाषण की सीमाओं को समझने की करें तो, 2025 के चुनावों में एक और बड़ा मुद्दा है,भड़काऊ बयानों और नफरत फैलाने वाले भाषणों पर रोक। चुनाव आयोग ने सभी राजनीतिक दलों को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि वे अपने प्रचार में धर्म, जाति, भाषा या क्षेत्र के आधार पर विभाजनकारी टिप्पणियाँ न करें।यह दिशा-निर्देश सिर्फ चुनावी शालीनता के लिए नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता और सामाजिक सौहार्द की रक्षा के लिए हैं। हाल के वर्षों में सोशल मीडिया ने बयानबाजी को एक नए स्तर पर पहुंचा दिया है। एक ट्वीट या वीडियो लाखों लोगों तक तुरंत पहुँच जाता है, जिससे चुनावी माहौल बुरी तरह भड़क सकता है। इसलिए इस बार आयोग ने साइबर मॉनिटरिंग टीमों की संख्या दोगुनी कर दी है। हर जिला स्तर पर एक “सोशल मीडिया ऑब्जर्वर”नियुक्त किया गया है,जो ऑनलाइन प्रचार पर नज़र रखेगा। इस कदम से लोकतांत्रिक संवाद में संयम और मर्यादा सुनिश्चित करने की कोशिश की जा रही है।
साथियों बात अगर हम मतदाता जागरूकता और जिम्मेदारी को समझने की करें तो,लोकतंत्र की वास्तविक शक्ति मतदाता के हाथ में होती है। प्रशासन और आचार संहिता के सभी नियम तभी प्रभावी हो सकते हैं जब मतदाता भी अपनी जिम्मेदारी समझे। 2025 के चुनावों में “मेरा वोट, मेरा अधिकार” अभियान को फिर से सशक्त रूप में लागू किया गया है। सोशल मीडिया, मोबाइल ऐप, और डिजिटल माध्यमों के जरिए मतदाताओं को मतदान केंद्रों की जानकारी, उम्मीदवारों के विवरण और शिकायत निवारण की सुविधा दी गई है।इसके साथ ही मतदान दर बढ़ाने के लिए कई नवाचार किए जा रहे हैं,जैसे कि दिव्यांग मतदाताओं के लिए विशेष वाहन,वरिष्ठ नागरिकों के लिए घर पर मतदान की सुविधा, और महिलाओं के लिए “पिंक बूथ”। यह सभी प्रयास लोकतंत्र की भागीदारी को और अधिक समावेशी बनाते हैं।आचार संहिता और राजनीति की नई परिभाषा-भारत में चुनाव अब केवल सत्ता परिवर्तन की प्रक्रिया नहीं रह गए हैं, बल्कि यह लोकतांत्रिक परिपक्वता का पैमाना बन गए हैं। आचार संहिता इस प्रक्रिया में नैतिक संतुलन का प्रतीक है। यह राजनेताओं को याद दिलाती है कि सत्ता जनता की सेवा का माध्यम है,न कि निजी अधिकार।2025 का चुनाव इस लिहाज से अलग है कि जनता पहले से अधिक जागरूक है, मीडिया की पहुँच अधिक गहरी है, और चुनाव आयोग की तकनीकी क्षमताएँ भी कई गुना बढ़ी हैं। अब चुनाव का हर चरण नामांकन से लेकर मतगणना तक,डिजिटली मॉनिटर किया जा रहा है।इस पारदर्शिता ने न केवल चुनावों की विश्वसनीयता बढ़ाई है बल्कि भ्रष्टाचार और अनैतिक आचरण की संभावनाएँ भी घटाई हैं।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि,बिहार राज्य विधानसभा चुनाव 2025-आचार संहिता, प्रशासनिक शक्ति और लोकतांत्रिक शुचिता का इम्तिहान”चुनावी आचार संहिता भारतीय लोकतंत्र की वह नैतिक मर्यादा है,जो राजनीतिक दलों,नेताओं और सरकार को सत्ता के दुरुपयोग से रोकती है
-संकलनकर्ता लेखक - क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र 9226229318
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