आज का हिन्दू पंचांग

नया सवेरा नेटवर्क

🌞~ आज का हिन्दू पंचांग ~🌞

⛅दिनांक - 23 अगस्त 2025

⛅दिन - शनिवार

⛅विक्रम संवत् - 2082

⛅अयन - दक्षिणायण

⛅ऋतु - शरद

⛅मास - भाद्रपद

⛅पक्ष - कृष्ण

⛅तिथि - अमावस्या सुबह 11:35 तक तत्पश्चात् प्रतिपदा

⛅नक्षत्र - मघा रात्रि 12:54 अगस्त 24 तक तत्पश्चात् पूर्वाफाल्गुनी

⛅योग - परिघ दोपहर 01:20 तक तत्पश्चात् शिव

⛅राहुकाल - सुबह 09:30 से  सुबह 11:06 तक (अहमदाबाद मानक समयानुसार) 

⛅सूर्योदय - 06:19

⛅सूर्यास्त - 07:05 (सूर्योदय एवं सूर्यास्त अहमदाबाद मानक समयानुसार)

⛅दिशा शूल - पूर्व दिशा में

⛅ब्रह्ममुहूर्त - प्रातः 04:49 से प्रातः 05:34 तक (अहमदाबाद मानक समयानुसार)

⛅अभिजीत मुहूर्त - दोपहर 12:17 से दोपहर 01:08

⛅निशिता मुहूर्त - रात्रि 12:20 अगस्त 24 से रात्रि 01:05 अगस्त 24 तक (अहमदाबाद मानक समयानुसार)

⛅️व्रत पर्व विवरण - कुशोत्पाटिनी अमावस्या, वृषभोत्सव, पोला

⛅️विशेष - अमावस्या के दिन स्त्री सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंड: 27.29-34)


🔹ब्रह्मचर्य : शरीर का तीसरा उपस्तंभ🔹


🔸शरीर, मन, बुद्धि व इन्द्रियो को आहार से पुष्टि, निद्रा, मन, बुद्धि व इऩ्द्रियों को आहार से पुष्टि, निद्रा से विश्रांति व ब्रह्मचर्य से बल की प्राप्ति होती है ।


ब्रह्मचर्य परं बलम् ।


ब्रह्मचर्य का अर्थः


🔸‘सर्व अवस्थाओं में मन, वचन और कर्म तीनों से मैथुन का सदैव त्याग हो, उसे ब्रह्मचर्य कहते हैं ।’ (याज्ञवल्क्य संहिता)


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👉 ब्रह्मचर्य से शरीर को धारण करने वाली सप्तम धातु शुक्र की रक्षा करती है । शुक्र सम्पन्न व्यक्ति स्वस्थ, बलवान, बुद्धिमान व दीर्घायुषी होते हैं ।


👉 ब्रह्मचर्य से व्यक्ति कुशाग्र व निर्मल बुद्धि, तीव्र स्मरणशक्ति, दृढ़ निश्चय, धैर्य, समझ व सद्विचारों से सम्पन्न तथा आनंदवान होते हैं । 


👉 वृद्धावस्था तक उनकी सभी इन्द्रियाँ, दाँत, केश व दृष्टि सुदृढ़ रहती है । रोग सहसा उनके पास नहीं आते । क्वचित् आ भी जायें तो अल्प उपचारों से शीघ्र ही ठीक हो जाते हैं ।


🌹 भगवान धन्वंतरि ने ब्रह्मचर्य की महिमा का वर्णन करते हुए कहा हैः


🔸‘अकाल मृत्यु, अकाल वृद्धत्व, दुःख, रोग आदि का नाश करने के सभी उपायों में ब्रह्मचर्य का पालन सर्वश्रेष्ठ उपाय है । यह अमृत के समान सभी सुखों का मूल है यह मैं सत्य कहता हूँ ।’


🔸जैसे दही में समाविष्ट मक्खन का अंश मंथन प्रक्रिया से दही से अलग हो जाता है, वैसे ही शरीर के प्रत्येक कण में समाहित सप्त धातुओं का सारस्वरूप परमोत्कृष्ट ओज मैथुन प्रक्रिया से शरीर से अलग हो जाता है । ओजक्षय से व्यक्ति असार, दुर्बल, रोगग्रस्त, दुःखी, भयभीत, क्रोधी व चिंतित होता है ।


🔹शुक्रक्षय के लक्षण (चरक संहिता)🔹


🔸शुक्र के क्षय होने पर व्यक्ति में दुर्बलता, मुख का सूखना, शरीर में पीलापन, शरीर व इन्द्रियों में शिथिलता (अकार्यक्षमता), अल्प श्रम से थकावट व नपुंसकता ये लक्षण उत्पन्न होते हैं ।


🔹अति मैथुन से होने वाली व्याधियाँ🔹


🔸ज्वर (बुखार), श्वास, खाँसी, क्षयरोग, पाण्डू, दुर्बलता, उदरशूल व आक्षेपक (Convulsions- मस्तिष्क के असंतुलन से आनेवाली खेंच) आदि ।

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