Poetry: स्त्री
नया सवेरा नेटवर्क
स्त्री
मैं पुत्री हूँ मैं पत्नी हूँ,
मैं माता हूँ मैं बहना,
मैं नाता हूँ मैं रिश्ता हूँ,
करती समाज की मैं रचना।
मेरे बिन तो सृष्टि न पूरी,
जुल्म मुझे ही क्यों सहना!
दो कुल की मर्यादा मैं हूँ,
मैं ही हूँ कुल का गहना।
सविता की गायत्री मैं हूँ,
मैं हूँ केशव की गीता,
सत्यवान की सावित्री हूँ,
मैं राघव कुल की सीता।
देवराज ने पाप किया फिर
श्राप मुझे ही क्यों मिलता!
तन भी पावन मन भी पावन
अग्नि परीक्षा क्यों लेता !
भरी सभा में सबके सन्मुख
चीरहरण पर क्यों रोती!
कभी आसिफ़ा कभी निर्भया
घुट घुट मैं ही क्यूँ जीती !
कलुषित कृत्य करता समाज,
पर मैं ही अकेली क्यों भरती ?
यक्ष प्रश्न है उत्तर दे दो
कब तक यूँ ही मैं मरती!
डॉ.रामजी तिवारी
अध्यापक,सेंटजॉन्स स्कूल,जौनपुर।
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