Poetry: प्रकृति का ऋण चुकाना है

नया सवेरा नेटवर्क

प्रकृति का ऋण चुकाना है


–डॉ मंजू लोढ़ा, वरिष्ठ साहित्यकार


मैं प्रकृति की ऋणी हूँ,

उसकी हर साँस, हर बूँद की कर्ज़दार हूँ।

जिसने मुझे सिखाया मुस्कुराना,

हर ग़म को हरियाली में बहा जाना।


फूलों की मुस्कान ने जीवन महकाया,

झरनों की झर-झर ने गीतों को लहराया।

नदियाँ बहती हैं जैसे जीवन की कहानी,

हर मोड़ पर बनती हैं जीवन दायिनी।

 


नीम-बरगद की छाँव में शांति का आलम,

पथिक को मिलता सुकून, जैसे अपनों से होता शुभ संगम।

पेड़ों ने फल फूल दिए, पत्तों ने छाया,

बिना कुछ माँगे, बस प्रेम ही लुटाया।


कोयल की कुहू-कुहू जैसे मीठा संदेश,

“प्रकृति से जुड़ो, यही है सच्ची मित्र।

पर्वत बुलाते, “आओ, शिखर को छू लो,”

बादल कंधे तक आकर कहते हैं, “खुद को महसूस करो।”


बरखा की बूँदें जब धरती पर गिरती हैं,

उर्वरा मिट्टी से नवजीवन की कलियाँ निकलती हैं।

अंकुर फूटते हैं, खेत लहराते हैं,

हरियाली के सपने साकार हो जाते हैं।


हे प्रकृति! तुम तो हो मेरी मेरी सच्ची हमराज,

तूने दिया है अनमोल खज़ाना,

और मैं तुझसे लेना ही सीखती रही दीवानी।

अब चाहती हूँ तुझको कुछ लौटाना,

तेरे गीतों में अपने सुर मिलाना।


मैं वचन देती हूँ—

हर पेड़ की रक्षा करूँगी,

हर नदी को साफ़ रखूँगी,

हर फूल में तेरा सौंदर्य देखूँगी,

हर धड़कन में तेरा नाम लूँगी।


हे प्रकृति मैं तेरी ऋणी हूँ,

हरपल तुझको नमन करती हूँ।

तूने मुझे हँसना सिखाया है,

नाचना, गाना और जीना सिखाया हैं।

9thAnniversary: आर्थोस्कोपिक एण्ड ज्वाइंट रिप्लेसमेंट आर्थोपेडिक सर्जन हड‍्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. अभय प्रताप सिंह की तरफ से नया सबेरा परिवार को 9वीं वर्षगांठ की बहुत-बहुत शुभकामनाएं


नया सबेरा का चैनल JOIN करें