Article: प्रीति करइं जौ तिनउं भाई , उपजइ सन्निपात दुखदाई
नया सवेरा नेटवर्क
प्रीति करइं जौ तिनउं भाई ,उपजइ सन्निपात दुखदाई
गोस्वामी तुलसीदास जी ने क्या गजब का लिखा है।
प्रीति करइं जौ तिनउं भाई।
उपजइ सन्निपात दुखदाई।।
मतलब शरीर में कफ पित्त वात तीनों अलग अलग अंग में रहते हैं। लेकिन जब ये तीनों एक साथ प्रेम करने लगते हैं तो मनुष्य का जीना बड़ा कष्टदाई हो जाता है।कितने तो मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं।कफ पित्त वात,ए तीनों यदि किसी मानव में अलग अलग भी बढ़ जायं तो भी मानव का जीना कष्टकर बना देते हैं।वैसे ही हमारे देश में जब राजनीतिक पार्टियाॅं या व्यक्ति आपस में प्रेम करने लगते हैं तो जनता को बहुत कष्ट देते हैं।राजनीति में इस समय कफ पित्त तो नहीं है। बिल्कुल नहीं है ऐसा भी नहीं है। कहीं कहीं कफ की तो कहीं पित्त की अधिकता है। जहाॅं लोग खाॅंसी बुखार से पीड़ित हैं। इसमें वाद रोग अधिक कष्टकर और दुखदाई है। हमारे देश में तीन वाद बहुत ही प्रभावशाली है।ये तीनों वाद जब आपस में प्रेम करते हैं तो,देश और देशवासियों में काफी उथल पुथल मच जाती है।जैसे भाषावाद, जातिवाद,व धर्मवाद।
भारत गणराज्यों का देश है।और संविधान से चलता है। संविधान सबको कमाने खाने और व्यवस्थित जीवन यापन का अधिकार देता है।सबको दूर दराज एक दूसरे राज्य में आने जाने रहने कमाने का अधिकार देता है।इसके बावजूद भी कुछ खुरापाती तत्व अपनी राजनीति चमकाने के लिए कुछ मूर्खों के कंधे पर बंदूक रखकर वाद रूपी रोग समाज में फैला देते हैं।जिससे आम भोली-भाली जनता के जीवन पर संकट आ जाता है।कोई भाषा के नाम पर तो कोई जाति के नाम पर तो कोई धर्म के नाम पर जन रूपी समुद्र में वाद रूपी भारी सा पत्थर फेंक कर तूफान खड़ा कर देता है।और कइयों का जीवन संकटग्रस्त कर देता है,साथ में कइयों को निगल भी लेता है।और फिर शांत हो जाता है।
मजे की बात यह है कि तत्कालीन सरकार सिर्फ तमाशबीन बनी तमाशा देखती है और केवल बयान बहादुर बनकर रह जाती है।करती कुछ नहीं। सुप्रीम कोर्ट का तो कोई सानी ही नहीं।एक व्यक्ति के ऊपर संकट आता है तो स्व संज्ञान ले लेती है।और जब समाज और देश पर संकट आता है तो याचिका का इंतजार करती है। सरकार और सुप्रीम कोर्ट दोनों अपनी कुर्सी बचाने में व्यस्त हो जाते हैं।जब वे दोनों मौन साध लेते हैं तो हमारी पुलिस सो जाती है।किसी सिनाख्त पर कोई कार्रवाई नहीं होती है।बस बयानबाजी होती है।जनता मरे,मेरे बाप का क्या।
मराठी में एक कहावत है,अपना काम बनता,भाड़ में जाए जनता।जिसने भी इस कहावत को कहा है। साधुवाद उसको। लेकिन इस कहावत को जनता ही नहीं समझ रही है। कुत्सित विचारधारा वाले नेता की कुत्सित चाल में फंसकर देश समाज और खुद का नुकसान करके उत्सव मनाती हैं।
यह भी पढ़ें | UP News: दिल्ली, हैदराबाद और बेंगलुरू के बाद अब मायानगरी में यूपी इंटरनेशनल ट्रेड शो 2025 का होगा प्रचार
विगत कुछ दिनों से जातिवाद भाषावाद और प्रांतवाद का रोग देश में पैर पसारता हुआआगे बढ़ रहा है।कहीं भाषा के नाम पर गरीबों को पीटा जा रहा है तो, कहीं जाति के नाम पर तो, कहीं राज्य के नाम पर लोगों को खासकर के मजदूर वर्ग को निशाना बनाकर मारा पीटा व हंगामा किया जा रहा है।खास बात यह है ये राजनीतिक गुंडे किसी ऐसी बस्ती में भूलकर नहीं जाते। जहां धनिक वर्ग रहते हैं।या मुस्लिम बहूल्य इलाका हो।ये लोग सब्जी वाले,रिक्सा वाले, दुकान वाले पर ही अपना रौब झाड़ते हैं।
मजे की बात यह है कि भाषावाद जातिवाद और प्रांतवाद का रोग जब फैलता है तो, सुप्रीम कोर्ट मौन साध लेता है। क्योंकि उपरोक्त रोग हिन्दू से हिन्दू में रहता है। लेकिन जैसे ही धर्मवाद का रोग प्रकट होता है।वैसे ही सुप्रीम कोर्ट ऐक्सन में आ जाता है।और सरकार का कान खींचना शुरू कर देता है। प्रमाण के तौर पर मणिपुर देख लीजिए। वहाॅं हिन्दू और क्रिश्चियन के बीच मामला था सो सुप्रीम कोर्ट ऐक्सन में आ गई। जहाॅं हिन्दू मारा जाता है वहाॅं सब मौन रहते हैं।जैसे काश्मीर बंगाल महाराष्ट्र उत्तर प्रदेश। जहॉं अन्य धर्मों के लोग मारे जायेंगे वहाॅं सभी जाग जाते हैं।जैसे मणिपुर उत्तर प्रदेश आसाम आदि।इसी दोगला पंथी के चलते वाद रोग रह रह के उत्पन्न होता है।और लोगों का जीवन संकटग्रस्त कर देता है।यदि रोग का सही उपचार समय रहते कर दिया जाय तो रोग उत्पन्न ही न हो।जैसे कैंसर फैलने के पहले उपचार हो जाता है तो नुकसान नहीं कर पाता।यदि फैल जाता है तो जान माल दोनों का नुकसान कर देता है।जैसे कैंसर को जड़ विहीन किया जाता है।वैसे ही इस वाद रोग को जब तक जड़ विहीन नहीं किया जायेगा।ए ऐसे ही देश समाज को संकटग्रस्त करता रहेगा।
गौर करने वाली बात यह है कि कल तक जो मिलते ही एक दूसरे से हैलो हाय राम राम हरि ॐ जय मातादी सलाम गुडमार्निंग बोलते थे।आज वही वाद रोग से ग्रसित हो भाषा के नाम पर जाति के नाम पर धर्म के नाम पर प्रांत के नाम पर एक दूसरे के दुश्मन बन बैठे नहीं,बना दिये गये।आज वही लोग एक दूसरे को देखना नहीं चाहते।जब की कल गले मिल रहे थे।एक दूसरे के साथ मिलकर भोजन कर रहे थे।मगर जैसे ही वाद रोग से ग्रसित हुए।सब भूल गये।हम पढ़ लिखकर भी मूर्ख ही रह गये।देश के लिए लड़ने की बजाय भाषा जाति धर्म के लिए हम अपनों के ही कोप भाजन हो रहे हैं और अपनों को ही क्षति पहुॅंचा अपने ही पैर में कुल्हाड़ी मार रहे हैं।
पं.जमदग्निपुरी