Poetry: सिक्के
नया सवेरा नेटवर्क
सिक्के
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(कभी इन सिक्कों का भी सिक्का चलता था)
सिक्के खरे हों या खोटे हों,
सिक्के बड़े हों या छोटे हों,
इन सबका अस्तित्व होता है,
समय का फेर है बाबू -
सबका अपना व्यक्तित्व होता है।
कल जो सिकंदर था,आज बंदर है,
कल जो हरिश्चंद्र था,आज अंदर है,
हाथ की लकीरें कुछ भी बोलती हैं,
एक न एक दिन वो पट खोलती हैं,
फल वैसा मिलेगा,जैसा कृतित्व होता है
समय का फेर है बाबू -
सबका अपना व्यक्तित्व होता है।
कुछ होता है नादानी में,
कुछ हो जाता मनमानी में,
हकीकत तो वक्त ही बताता है
कि, कौन है कितने पानी में।
सृष्टि में कब स्थायित्व होता है?
समय का फेर है बाबू -
सबका अपना व्यक्तित्व होता है।
कौन छोटा है,मत आंकिए,
कौन बड़ा है मत झांकिए,
छोटे सिक्के भी बड़ा काम करते हैं,
बड़ों की ओर ही मत ताकिए,
समाज में सबका दायित्व होता है,
समय का फेर है बाबू -
सबका अपना व्यक्तित्व होता है।
सबके अपने बाग-बगीचे,
कोई ऊपर, कोई नीचे,
कोई फूल उजाड़ रहा है,
कोई माली बनकर सींचे।
जो सींचता है,उसी पर कवित्व होता है,
समय का फेर है बाबू -
सबका अपना व्यक्तित्व होता है।
सुरेश मिश्र
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