विश्व में कार्यपालिका और न्यायपालिका में सबसे अधिक शक्तिशाली कौन?पद बढ़ा या पद पर बैठने वाले की क्षमता, योग्यता व नैतिक साहस बढ़ा? | Naya Sabera Network

Who is most powerful in the world, executive and judiciary? Did the position increase or did the ability, competence and moral courage of the person holding the position increase? | Naya Sabera Network

व्यावहारिक रूप से विश्व में शासन के तीनों अंगों विधायिका, कार्यपालिका एंव न्यायपालिका के अधिकारों व शक्तियों में संतुलन स्थापित है

विश्व में कोई भी पद शक्तिशाली नहीं होता,पद पर बैठने वाले की क्षमता,योग्यता व नैतिक साहस से किसी पद की शक्ति तय होती है,सटीक विचार-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र 

नया सवेरा नेटवर्क

गोंदिया- वैश्विक स्तरपर अक्सर हम लोकतंत्र के चार स्तंभों, विधायिका,कार्यपालिका न्यायपालिका व मीडिया के बारे में व उनके अधिकारों कर्तव्य जवाबदेही व कार्यक्षेत्रों के बारे में अक्सर सुनते पढ़ते रहते हैं स्वाभाविक रूप से चारों स्तंभों के अलग-अलग कार्यक्षेत्र अधिकार व कर्तव्य हैं, परंतु इनकी आपस में तुलना नहीं की जातीज़ा सकती,किसीको भी कम-अधिक नहीं आंका जा सकता, परंतु प्रैक्टिकली जब हम देखते हैं तो एक स्वाभाविक रूप से मन में प्रश्न खड़ा होता है कि, विशेष रूप से तीन स्तंभों विधायिका कार्यपालिका, न्यायपालिका में सबसे शक्तिशाली कौन है?यह विचार मेरे मन में भी आया कि वास्तव में तीनों स्तंभों में शक्तिशाली कौन है, किस स्तंभ का सर्वोच्च पद तीनों स्तंभों में शक्तिशाली है? तो अति गहन अध्ययनकर मैंने अपने विचार रखे कि कोई भी "पद" शक्तिशाली नहीं होता परंतु उस पद पर बैठने वाले की क्षमता, योग्यता और नैतिक साहससे ही उस पद की शक्ति जाहिर होती है,ऐसा विचार किसी और ने भी रखा था जिससे मैं पूर्ण रूपसे सहमत हूं,हालांकि मेरे 45 वर्षों के लेखन कार्यकाल के अनुभव में तीनों स्तंभों के सर्वोच्च पद पर अनेकों व्यक्ति बैठे, परंतु अभी तक उनके निर्णयों डिसीजन्स का हम विश्लेषण कर अंदाज लगा सकते हैं कि पद महत्वपूर्ण है,या उनपर बैठने वाले व्यक्ति की क्षमता, योग्यता और नैतिक साहस, जिसकी चर्चा हम नीचे पैराग्राफ में करेंगे। आज इस विषय पर हम इसलिए चर्चा कर रहे हैं क्योंकि जिस तरह भारतीय पीएम के पिछले कार्यकाल के डिसीजन्स मेकिंग विशेष रूप से 370,तीन तलाक, सर्जिकल स्ट्राइक, ऑपरेशन सिंदूर जीएसटी सहित अनेकों निर्णय व अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति जिन्होंने पदभार ग्रहण करते ही अमेरिकी फर्स्ट, टैरिफ केस,नागरिकता केस, पनामा नहर,यूक्रेन रूस युद्ध समाप्ति पहल, हमास इजरायल युद्ध समाप्ति पहल सीरिया पर लगे प्रतिबन्ध हटाना व अभी टैरिफ पर फेडरल कोर्ट द्वारा लगाई गई रोग को, अपीलीय कोर्ट द्वारा खारिज कर टैरिफ को बहाल करने जैसे अनेकों मुद्दे हैं, जो इन दोनों व्यक्तित्वों की योग्यता क्षमता नैतिक साहस को दर्शाता है। भारत के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति बीआर गवई ने शनिवार (31 मई, 2025) को इलाहाबाद में नवनिर्मित अधिवक्ता चैंबर भवन और मल्टी लेवल पार्किंग का उद्घाटन कार्यक्रम में कहा भारतीय संविधान लागू होने की 75 साल की यात्रा में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका ने सामाजिक और आर्थिक समानता लाने में बड़ा योगदान दिया है।चूँकि हालाँकि, व्यावहारिक रूप से विश्व में शासन के तीनों अंगों यथा विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका के अधिकारों व शक्तियों में संतुलन स्थापित है,परंतु आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, विश्व में कार्यपालिका और न्यायपालिका में सबसे अधिक शक्तिशाली कौन"पद" बढ़ा या पद पर बैठने वाले की "क्षमता निर्णय क्षमता  योग्यता व नैतिक साहस बढ़ा?" 

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साथियों बात अगर हम कार्यपालिका व न्यायपालिका की करें तो,भारत में कार्यपालिका अधिक शक्तिशाली है । कार्यपालिका नियम और कानून बनाती है और न्यायपालिका उन कानूनों के पालन कराने में सहयोग करती है। न्यायपालिका अपने स्तरपर कानून नहीं बना सकती। कार्यपालिका न्यायपालिका के आदेशों की पालना करना आवश्यक नहीं समझती, क्योंकि वह संबंधित कानून को बदलने का अधिकार रखती है।शाहबानो के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को सरकार ने नहीं माना। कांग्रेस सरकार ने संविधान संशोधन लाकर कानून ही बदल दिया। ठीक उसी तरह दिल्ली केस में भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश को एक नया विधेयक लाकर पलट दिया गया। 2 साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने एससी एसटी वर्ग के कर्मचारियों को कार्यस्थल पर पीड़ित करने के मामले में एक आदेश पारित किया था। उसमें कहा गया था कि बिना जांच किए अन्य वर्ग से संबंधित व्यक्ति पर केस दर्ज नहीं किया जाना चाहिए। इसके लिए सरकार को कानून बनाने के लिए आदेश दिया। लोकसभा में उस आदेश की पालना में कानून बनाया गया, लेकिन भारी विरोध के कारण सरकार को उस कानून को वापिस लेना पड़ा। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने मुसलमानों के हित के लिए तीन तलाक को रोकने के लिए कानून बनाने का निर्देश दिया। राज्यसभा में इस बिल को पास कराने के लिए विपक्षी पार्टियों का काफी विरोध सहना पड़ा।इस प्रकार भारतीयसंविधान में कार्यपालिकाअर्थात् लोकसभा और राज्यसभा के अधिकार ज्यादा शक्तिशाली हैं।

साथियों बात अगर हम कार्यपालिका व न्यायपालिका में तुलनात्मक शक्तिशाली के एंगल से देखें तो,भारत में कार्यपालिका और न्यायपालिका में कौन अधिक शक्तिशाली है और क्यों ?भारत में कार्यपालिका और न्यायपालिका में कार्यपालिका अधिक शक्तिशाली है । कार्यपालिका नियम और कानून बनाती है और न्यायपालिका उन कानूनों के पालन कराने में सहयोग करती है। न्यायपालिका अपने स्तर पर कानून नहीं बना सकती। कार्यपालिका न्यायपालिका के आदेशों की पालना करना आवश्यक नहीं समझती, क्योंकि वह संबंधित कानून को बदलने का अधिकार रखती है।भारत के प्रधानमंत्री और भारत के मुख्य न्यायाधीश में से कौन ज्यादा शक्तिशाली है?अगर संविधान में देखें तो प्रधानमंत्री व्यक्ति कई साल और कई बार रह सकता है बिना अधिकतम आयु सीमा के, पर सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का कार्यकाल सिर्फ एक बार कुछ महीने या वर्ष के लिए होता है 65 वर्ष की आयु सीमा तक होता है।प्रधानमंत्री को कभी भी हटना पड़ सकता है जबकि मुख्य न्यायाधीश को हटाना लगभग असम्भव है । मुख्य न्यायाधीश के निर्णय को पीएम को मानना होता है पर ताकतवर प्रधानमंत्री उसे संसद के द्वारा बदल भी सकता है।वर्तमान प्रधानमंत्री तो मोदी जी भी हैं , इंदिरा गांधी , नरसिंह राव भी थे और इन्होंने पद के साथ जुड़ी शक्तियों का उपयोग किया लेकिन 10 साल प्रधानमंत्री रह कर भी कांग्रेस के एकव्यक्ति ने उन शक्तियों का प्रयोग नहीं किया था। टी एन शेषन ने 6 साल में मुख्य चुनाव आयुक्त रह कर पूरी चुनाव प्रक्रिया बदल दी। उसके पहले और बाद में आने वाले आयुक्त वैसा नहीं कर पाए। इंदिरा गांधी के समय के मुख्य न्यायाधीश उनके अनुचित कार्यों (आपातकाल) को उचित ठहराते रहते थे।वस्तुतः पद शक्तिशाली नहीं होता है,पद पर बैठने वाले की क्षमता , योग्यता और नैतिक साहस से किसी पद की शक्ति तय होती है,व्यावहारिक रूप से,भारत में किसके पास अधिक शक्ति है,न्यायपालिका, कार्यकारी या फिर विधायिका?व्यवहारिक रूप से भी भारत में शासन के तीनों अंगों यथा, विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के अधिकारों एवं शक्तियों में संतुलन स्थापित है।विधायिका और कार्यपालिका का अस्तित्व एक दूसरे पर निर्भर है कार्यपालिका तभी तक अस्तित्व में है जब तक उसे विधायिका का विश्वास प्राप्त है और कार्यपालिका के प्रमुख प्रधानमंत्री की अनुशंसा पर राष्ट्रपति विधायिका को भंग कर सकते हैं।जहाँ अनुच्छेद 121 और 211 विधायिका को अपने कर्तव्यों के निर्वहन में किसी भी न्यायाधीश के आचरण पर चर्चा करने से मना करते हैं, वहीं दूसरी तरफ, अनुच्छेद 122 और 212 अदालतों को विधायिका की आंतरिक कार्यवाही पर निर्णय लेने से रोकते हैं।इसके अतिरिक्त भारतीय संविधान के अनुच्छेद 105 (2) और 194 (2) विधायकों को उनकी भाषण की स्वतंत्रता और वोट देने की आजादी के संबंध में अदालतों के हस्तक्षेप से रक्षा करते हैं।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि विश्व में कार्यपालिका और न्यायपालिका में सबसे अधिक शक्तिशाली कौन? पद बढ़ा या पद पर बैठने वाले की क्षमता, योग्यता व नैतिक साहस बढ़ा?व्यावहारिक रूप से विश्व में शासन के तीनों अंगों विधायिका, कार्यपालिका एंव न्यायपालिका के अधिकारों व शक्तियों में संतुलन स्थापित है।विश्व में कोई भी पद शक्तिशाली नहीं होता,पद पर बैठने वाले की क्षमता, योग्यता और नैतिक साहस से किसी पद की शक्ति तय होती है, सटीक विचार।

-संकलनकर्ता लेखक - कर विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र 9359653465

Gahna Kothi Bhagelu Ram Ramji Seth | Kotwali Chauraha Jaunpur | 9984991000, 9792991000, 9984361313 | Olandganj Jaunpur | 9838545608, 7355037762, 8317077790 And RAJDARBAR A FAMILY RESTAURANT in RajMahal Jaunpur
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