विश्व में कार्यपालिका और न्यायपालिका में सबसे अधिक शक्तिशाली कौन?पद बढ़ा या पद पर बैठने वाले की क्षमता, योग्यता व नैतिक साहस बढ़ा? | Naya Sabera Network
व्यावहारिक रूप से विश्व में शासन के तीनों अंगों विधायिका, कार्यपालिका एंव न्यायपालिका के अधिकारों व शक्तियों में संतुलन स्थापित है
विश्व में कोई भी पद शक्तिशाली नहीं होता,पद पर बैठने वाले की क्षमता,योग्यता व नैतिक साहस से किसी पद की शक्ति तय होती है,सटीक विचार-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
नया सवेरा नेटवर्क
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साथियों बात अगर हम कार्यपालिका व न्यायपालिका की करें तो,भारत में कार्यपालिका अधिक शक्तिशाली है । कार्यपालिका नियम और कानून बनाती है और न्यायपालिका उन कानूनों के पालन कराने में सहयोग करती है। न्यायपालिका अपने स्तरपर कानून नहीं बना सकती। कार्यपालिका न्यायपालिका के आदेशों की पालना करना आवश्यक नहीं समझती, क्योंकि वह संबंधित कानून को बदलने का अधिकार रखती है।शाहबानो के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को सरकार ने नहीं माना। कांग्रेस सरकार ने संविधान संशोधन लाकर कानून ही बदल दिया। ठीक उसी तरह दिल्ली केस में भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश को एक नया विधेयक लाकर पलट दिया गया। 2 साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने एससी एसटी वर्ग के कर्मचारियों को कार्यस्थल पर पीड़ित करने के मामले में एक आदेश पारित किया था। उसमें कहा गया था कि बिना जांच किए अन्य वर्ग से संबंधित व्यक्ति पर केस दर्ज नहीं किया जाना चाहिए। इसके लिए सरकार को कानून बनाने के लिए आदेश दिया। लोकसभा में उस आदेश की पालना में कानून बनाया गया, लेकिन भारी विरोध के कारण सरकार को उस कानून को वापिस लेना पड़ा। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने मुसलमानों के हित के लिए तीन तलाक को रोकने के लिए कानून बनाने का निर्देश दिया। राज्यसभा में इस बिल को पास कराने के लिए विपक्षी पार्टियों का काफी विरोध सहना पड़ा।इस प्रकार भारतीयसंविधान में कार्यपालिकाअर्थात् लोकसभा और राज्यसभा के अधिकार ज्यादा शक्तिशाली हैं।
साथियों बात अगर हम कार्यपालिका व न्यायपालिका में तुलनात्मक शक्तिशाली के एंगल से देखें तो,भारत में कार्यपालिका और न्यायपालिका में कौन अधिक शक्तिशाली है और क्यों ?भारत में कार्यपालिका और न्यायपालिका में कार्यपालिका अधिक शक्तिशाली है । कार्यपालिका नियम और कानून बनाती है और न्यायपालिका उन कानूनों के पालन कराने में सहयोग करती है। न्यायपालिका अपने स्तर पर कानून नहीं बना सकती। कार्यपालिका न्यायपालिका के आदेशों की पालना करना आवश्यक नहीं समझती, क्योंकि वह संबंधित कानून को बदलने का अधिकार रखती है।भारत के प्रधानमंत्री और भारत के मुख्य न्यायाधीश में से कौन ज्यादा शक्तिशाली है?अगर संविधान में देखें तो प्रधानमंत्री व्यक्ति कई साल और कई बार रह सकता है बिना अधिकतम आयु सीमा के, पर सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का कार्यकाल सिर्फ एक बार कुछ महीने या वर्ष के लिए होता है 65 वर्ष की आयु सीमा तक होता है।प्रधानमंत्री को कभी भी हटना पड़ सकता है जबकि मुख्य न्यायाधीश को हटाना लगभग असम्भव है । मुख्य न्यायाधीश के निर्णय को पीएम को मानना होता है पर ताकतवर प्रधानमंत्री उसे संसद के द्वारा बदल भी सकता है।वर्तमान प्रधानमंत्री तो मोदी जी भी हैं , इंदिरा गांधी , नरसिंह राव भी थे और इन्होंने पद के साथ जुड़ी शक्तियों का उपयोग किया लेकिन 10 साल प्रधानमंत्री रह कर भी कांग्रेस के एकव्यक्ति ने उन शक्तियों का प्रयोग नहीं किया था। टी एन शेषन ने 6 साल में मुख्य चुनाव आयुक्त रह कर पूरी चुनाव प्रक्रिया बदल दी। उसके पहले और बाद में आने वाले आयुक्त वैसा नहीं कर पाए। इंदिरा गांधी के समय के मुख्य न्यायाधीश उनके अनुचित कार्यों (आपातकाल) को उचित ठहराते रहते थे।वस्तुतः पद शक्तिशाली नहीं होता है,पद पर बैठने वाले की क्षमता , योग्यता और नैतिक साहस से किसी पद की शक्ति तय होती है,व्यावहारिक रूप से,भारत में किसके पास अधिक शक्ति है,न्यायपालिका, कार्यकारी या फिर विधायिका?व्यवहारिक रूप से भी भारत में शासन के तीनों अंगों यथा, विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के अधिकारों एवं शक्तियों में संतुलन स्थापित है।विधायिका और कार्यपालिका का अस्तित्व एक दूसरे पर निर्भर है कार्यपालिका तभी तक अस्तित्व में है जब तक उसे विधायिका का विश्वास प्राप्त है और कार्यपालिका के प्रमुख प्रधानमंत्री की अनुशंसा पर राष्ट्रपति विधायिका को भंग कर सकते हैं।जहाँ अनुच्छेद 121 और 211 विधायिका को अपने कर्तव्यों के निर्वहन में किसी भी न्यायाधीश के आचरण पर चर्चा करने से मना करते हैं, वहीं दूसरी तरफ, अनुच्छेद 122 और 212 अदालतों को विधायिका की आंतरिक कार्यवाही पर निर्णय लेने से रोकते हैं।इसके अतिरिक्त भारतीय संविधान के अनुच्छेद 105 (2) और 194 (2) विधायकों को उनकी भाषण की स्वतंत्रता और वोट देने की आजादी के संबंध में अदालतों के हस्तक्षेप से रक्षा करते हैं।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि विश्व में कार्यपालिका और न्यायपालिका में सबसे अधिक शक्तिशाली कौन? पद बढ़ा या पद पर बैठने वाले की क्षमता, योग्यता व नैतिक साहस बढ़ा?व्यावहारिक रूप से विश्व में शासन के तीनों अंगों विधायिका, कार्यपालिका एंव न्यायपालिका के अधिकारों व शक्तियों में संतुलन स्थापित है।विश्व में कोई भी पद शक्तिशाली नहीं होता,पद पर बैठने वाले की क्षमता, योग्यता और नैतिक साहस से किसी पद की शक्ति तय होती है, सटीक विचार।
-संकलनकर्ता लेखक - कर विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र 9359653465
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