Article: सनातन को डुबाने में सनातनी ही लगे हैं...

Article: Sanatanis themselves are trying to drown Sanatan...

पं.जमदग्निपुरी @ नया सवेरा 

दुनियां में यदि कोई धर्म प्रथम है तो वह है सनातन।सनातन से विलग होकर तमाम धर्म आज अस्तित्व में आये हैं। जितने भी धर्म बने हैं सब सनातन से ही निकले हैं। सनातन का कोई संस्थापक नहीं है। अन्य धर्मों के कोई न कोई संस्थापक हैं।किसी न किसी के द्वारा किसी न किसी के नाम से बनाया गया है। ये भी सत्ता के लिए निर्मित किए गये धर्म हैं। सनातन का न कोई प्रवर्तक है न ही सनातन किसी का नाम है। न ही सनातन का कोई संस्थापक हैं।और धर्म जो बने हैं। सब संगठन हैं। सत्ता की खातिर यही संगठन धर्म का रूप ले लिए। लिए भी इसलिए की चमचागिरी चरम पर है। पढ़ लिखकर भी लोग मूढ़ता में जी रहे हैं।चमचई से अपना जीवन आगे बढ़ा रहे हैं। आने वाली पीढ़ी का सत्यानाश कर रहे हैं। खुद अध्ययन करते नहीं। औरों की बात मानकर आग में छलांग लगाने को सदैव तत्पर रहते हैं। अध्ययन भी कर रहे हैं तो वो अध्ययन कर रहें हैं। जो उन्हें बर्बादी की अथाह खाईं में ले जाय। शास्त्र का अध्ययन करते नहीं हैं। औरों की बात सुनकर शास्त्री बने फिर रहे हैं।एक उकसा कर हम लोगों को आग में झुलसने के लिए झोंक रहा है। अपनी सत्ता हासिल करने के लिए। उसकी फितरत को न समझते हुए चमचे बने खौलते कड़ाहे में कूद रहे हैं। अपने तो झुलस ही रहे हैं। आने वाली पीढ़ी का भी जीवन नर्क बना रहे हैं।

हमारे किसी भी शास्त्र में जाति के लिए कोई स्थान नहीं है।यदि होता तो श्रीराम के कुल में जितने राजा थे सबके नाम के आगे ठाकुर या सिंह लिखा होता। इसी तरह श्रीकृष्ण के आगे भी जाति सूचक शब्द नहीं है।या किसी ऋषि के आगे ही कोई बता दें कि कौन सा ऋषि कौन सी जाति का है।जाति व्यवस्था का निर्माण अपनी सत्ता कायम रखने के लिए कुछ तुच्छ मानसिकता वाले लोग खड़ी किए हैं। कुछ अज्ञानियों को अपने धन के दम पर अपना चमचा बनाये। जैसे आज भी कुछ लोग हैं उनको कबाब शबाब और शराब का जुगाड़ करके देते रहो। वो आपके लिए मरने मारने पर उतारू रहते हैं। वैसे ही धन बल से जाति व अन्य धर्म प्रभावी हुए। सनातन की ऐसी तैसी करते चले आ रहे हैं। यह प्रक्रिया तब प्रभाव में अधिक आई जब से मुस्लिमों और ईसाईयों का उदय हुआ।ए लोग अपने विस्तार के लिए और सनातन को तोड़ने के लिए ऊॅंच नीच का भेद बोते गये।और अपने संगठन की बड़ाई कर धन और तन की लालच देकर तो बल से तोड़ते जोड़ते जा रहे हैं।और लोगों के मन में जाति का जहर घोलते जा रहे हैं।धीरे धीरे धन बल के बूते ए दोनों संगठन अपने हिसाब से सबकुछ बनाने बिगाड़ने लगे।कयोंकि ये दोनों धन बल के बूते अधिकाधिक भू-भाग पर शासन करने लगे।और अपनी सत्ता बनी रहे।और विस्तार होता रहे। इसलिए सनातनियों में कूट कूट कर जातिवादी जहर घोलते रहे। आजादी के बाद भारत में तत्कालीन सरकारों ने इसे और विस्तार देना शुरू कर दिया।

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पिछले कुछ दिनों से एक ढोंगी कथावाचक को या यूं कहें कि चमचा को कथावाचक बनाकर लाया गया।और कुछ चमचों को कथावाचक का विरोध करने के लिए खड़ा कर दिया गया।और शुरू हो गया जातिवादी खेल।आजतक यह खेल कोई खेल नहीं पाया था।मगर यह खेल सनातन द्रोहियों ने अब शुरू कर दिया है।आज पहले बहुत से कथावाचक हुए।कोई कभी भी जातिवादी धर्मवादी उन्माद नहीं फैला पाया।मगर आज सत्ता पाने के लिए सनातन द्रोहियों ने इसे खड़ा कर दिया है। मूढ़ों की फौज लग गई है,जातिवादी हवन कुंड में घी डालने में।एक दूसरे को गरियाने में। सरकार भी मौन हो आग भड़कने का इंतजार कर रही है।सौ पचास लोग मरें, फिर हम ऐक्शन लेकर बतायेंगे कि देखो हम जनता के लिए कितने फिक्रमंद हैं।चमचे जोर शोर से लगे हैं अपनी चमचई में।आज के पहले तमाम कथावाचक हुए।चाहे आसाराम हों रामपाल हों बाबा रामदेव हों स्वामी अड़गड़ानंद जी हों ऐसे तमाम ब्राह्मण के इतर संत कथावाचक हैं। इनमें कोई विवाद नहीं है।इन लोगों के बहुत से ब्राह्मण शिष्य हैं। इन्हें अपना गुरू माने हैं।तो आप समझ सकते हैं कि यह बाबा जो कथावाचक इस समय विवाद पैदा किया है।यह असल में कथावाचक हैं ही नहीं।यह इंडी एलायंस द्वारा तैयार किया कालनेमि है।दो चार कहानियां सुनकर कथावाचक बनकर बैठ गया है।असल यह इंडी एलायंस का चमचा है।यदि जाति देखकर लोग कथावाचकों से कथा सुनते कराते तो आशाराम मोरारी बापू रामपाल अड़गड़ानंद रामदेव रामरहीम जैसे अनेक कथावाचकों का उदय ही नहीं होता।न ही इन्हें कभी गुरुता प्राप्त होती। इसलिए जो ये कालनेमी एक जाति का प्रतिनिधित्व करने की कोशिश कर रहा है।यह कथावाचक नहीं इंडी गठबंधन का सपोला है।जो सनातन को तोड़ने के लिए सनातनियों में जातिवादी जहर घोलने की कोशिश कर रहा है। सनातनियों सावधान।यह बहुत बड़ा कुचक्र रचा जा रहा है। इसमें जाति का कोई सवाल ही नहीं है।यह सब सत्ता हासिल करने का एक नया खेल शुरू हो रहा है।इसे यहीं दफना दो। नहीं तो घाटे में रहोगे।वो तो सत्ता पा जायेंगे।मगर सनातनियों आप सिर्फ हाॅंथ ही मलोगे। इसलिए कालनेमी वाले प्रपंच को समझो। ब्राह्मण को बदनाम करना, ब्राह्मण को गाली देना छोड़ो। ब्राह्मण को गाली देने से भला नहीं होगा क्षति होगी। ब्राह्मण को गाली देने से क्षणिक खुशी पा सकते हो लेकिन नुकसान के सिवा कुछ पाओगे नहीं।यथा

जब नाश मनुज पर छाता है।

तो ब्राह्मण  को   गरियाता है।। 

ब्राह्मण  क्षमा  श्राप  से भारी।

मानव क्यों समझ न पाता है।।  

ब्राह्मण कभी भी जाति का पोषक नहीं रहा।यदि रहता तो राम कृष्ण की पूजा नहीं होती। होती तो रावण की होती।क्योंकि यदि आज के आधार से देखोगे तो कथाकार सदैव ब्राह्मण ही रहा है।तब तो वह किसी को शिक्षा ही नहीं देता। ब्राह्मण के सिवा सभी अशिक्षित रहते। इसलिए ये कहना कि ब्राह्मण जाति का पोषक है,उसी तरह असत्य है जैसे सफेद हाथी। ब्राह्मण सनातन को जोड़कर रखता है।इसलिए विधर्मियों और वामपंथियों ने हर जातियों में ब्राह्मण के प्रति हर तरह से विद्वेष पैदा कर सनातन को तोड़ने में लगे हैं। उन्हें पता है अन्य जातियों पर यदि शासन करना है तो उसमें से ब्राह्मण को अलग कर दो। ब्राह्मण निकला तो शासन अपना।चतुर सयाने जो शेर की खोल में सियार छिपे हैं।वो एन केन प्रकारेंण अपने राजा बनने के लिए ही यह सब प्रपंच रच रहे हैं। उन्हें भय है यदि सनातनी एक हो गये तो सत्ता सपने में भी नहीं मिलेगी। इसलिए एक कालनेमि रूपी कथावाचक के साथ जाति जोड़कर ये सब प्रपंच किया गया है।और सनातन को सनातनियों से गाली दिलवा कर अपना उल्लू सीधा किया जा रहा है।

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