Poetry: माँ | Naya Sabera Network

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नया सवेरा नेटवर्क

माँ 

सुबह और शाम अम्मा से हमारी बात होती है।। 

हमारे साथ खुशियों की सजी बारात होती है।। 

बरस जाती हैं आंखें भींग जाता हूँ मैं ममता से-

बिना मौसम बिना बादल के ही बरसात होती है।।


चरण रज माँ का,माथे पर मेरे सम्मान है अम्मा।। 

हमारी ज़िन्दगी की दिव्यतम् वरदान है अम्मा।। 

बहुत नजदीक से देखा है दिल में नेह की गंगा-

हमारी आन है और वान है अभिमान है अम्मा।


कभी लेती नहीं देती है सर्वस्य दान करती है।। 

बनी है जाने किस मिट्टी की वो हैरान करती है।। 

अलावां माँ के धरती पर कोई दूजा नहीं होगा-

पिलाती है सदा अमृत स्वयं विषपान करती है।।


नगर है शहर है मन में पुराना गाँव है अम्मा।। 

दुआओं का मेरे सर पर कमलवत पांव है अम्मा।। 

मुझे किस बात की चिंता हमारे पास अम्मा है-

हमारे सर पे आंचल का सुकोमल छांव है अम्मा।।


नहीं काई मिलेगी एक रत्ती, शुध्द गंगा जल।। 

 कपट छल से विलग पावन हृदय की आत्मा निर्मल।। 

मेरी अम्मा अनोखी है मेरी अम्मा निराली है-

मेरे सर पर रहे कायम हमेशा नेह का आंचल।  ।। 


अगर रिश्ते में कोई है तो केवल खास है अम्मा।। 

मेरी रग रग में सांसों में सुगंधित वास है अम्मा।। 

महल कोठा अंटारी और दौलत की नहीं ईच्छा-

बहुत मैं भाग्यशाली  हूँ हमारे पास है अम्मा।।


मेरी पूजा भजन कीर्तन यही है साधना मेरी।। 

हमारे सर पे आशीर्वाद पावन भावना मेरी।। 

कभी अस्तित्व माँ का मिट नहीं सकता सनातन है-

चिरायु हो मेरी अम्मा यही है कामना मेरी।। 


मेरे जीवन की यात्रा का सफ़ीना है मेरी अम्मा।। 

मेरा काबा मेरी काशी मदीना है मेरी अम्मा।। 

बहुत अनमोल नाता है कोई कीमत नहीं जग में-

मेरा हीरा मेरी मोती नगीना है मेरी अम्मा।।

गिरीश, जौनपुर।

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