हम तो गए सनम, तुमको भी ले डूबेंगे — एक चेतावनी | Naya Sabera Network
(विश्व नशा निषेध दिवस 31 मई पर विशेष लेख)
हर वर्ष 31 मई को "विश्व नशा निषेध दिवस" के रूप में मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य है – तंबाकू, शराब, सिगरेट और अन्य नशीले पदार्थों के दुष्परिणामों के बारे में लोगों को जागरूक करना।
नशा केवल एक व्यक्ति का पतन नहीं लाता, बल्कि उसके पूरे परिवार और समाज को भी अंधकार की ओर ले जाता है।
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हम तो गए सनम, तुमको भी ले डूबेंगे,
नशे के दलदल में, सब रिश्ते भी टूटेंगे।
तंबाकू, शराब, सिगरेट — नाम बदलते जाएंगे,
पर अंत में ये सारे जीवन को ही खा जाएंगे।
यह कविता उस जहरीले जाल को दर्शाती है, जिसमें फँसकर इंसान खो देता है —
स्वास्थ्य, सम्मान, संबंध और अपने सपने।
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❌ नशे के दुष्परिणाम:
• 🔴 स्वास्थ्य पर प्रभाव:
कैंसर, हृदय रोग, फेफड़ों की बीमारी, लीवर फेल होना आदि नशे के सामान्य परिणाम हैं।
• 🔴 मानसिक पतन:
डिप्रेशन, आत्महत्या की प्रवृत्ति, और निर्णय लेने की क्षमता में गिरावट।
• 🔴 सामाजिक विघटन:
घरेलू हिंसा, रिश्तों में दरार, बच्चों की उपेक्षा और बढ़ता अपराध।
• 🔴 आर्थिक नुकसान:
व्यक्ति अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा नशे में झोंक देता है, जिससे गरीबी और असंतोष बढ़ता है।
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✅ "नशा" करना है तो करो —
ज्ञान का नशा, मेहनत का नशा, योग/ध्यान का नशा, सेवा का नशा, देशभक्ति का नशा, संगीत का नशा।
"नशा करना है तो ऐसा करो,
जो खुद को संवार दे,
जो समाज को सुधार दे।"
"जो नशा बनाए महान,
न कि ले जाए शमशान।"
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🔍 अब समय है सोचने का...
हमें समझना होगा कि नशा कोई फैशन या मनोरंजन नहीं है —
बल्कि विनाश की ओर बढ़ता एक रास्ता है।
अगर आज जागरूक नहीं हुए, तो आने वाली पीढ़ियाँ अंधकार में डूब सकती हैं।
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✋ चलो लें एक संकल्प:
“जीवन को नशा मुक्त बनाएँ,
स्वस्थ समाज की नींव रखें।
हर घर में मुस्कान लाएँ,
नशे को दूर भगाएँ।”
— नशे के खिलाफ हमारी यह लड़ाई, हमारे और हमारे समाज के भविष्य की रक्षा है।
डॉ. ममता सिंह
असि.प्रो. मनोविज्ञान विभाग
मो.हसन पी.जी.कॉलेज, जौनपुर