मुक्तक कौतुक यानि गिरीश के मुक्तक | Naya Sabera Network

Muktak Kautuk i.e. Girish's Muktak Naya Sabera Network

नया सवेरा नेटवर्क

पूर्वांचल में जौनपुर के निवासी समर्थ कवि गिरीश श्रीवास्तव ‘गिरीश’ का मुक्तक संग्रह " गिरीश के मुक्तक " से गुजरते हुए एक बात पूरी तरह सिद्ध हो जाती है कि गिरीश जी एक सिद्धहस्त छंदकार  हैं। 

गिरीश जी की लेखनी से मुक्तक ऐसे झरते हैं जैसे शीतल झरने से झरती जल की फुहार तन मन को भिगोती चली जाती है । वह जो कुछ भी कहते हैं वो चार पंक्तियों में इस तरह परिपूर्ण होता है कि एक पठनीय और सराहनीय मुक्तक का रूप ले लेता है। यही गिरीश जी की खासियत है कि वे किसी एक विषय से बंधे हुए नहीं हैं बल्कि उनके मुक्तकों में राजनीति, प्रेम, सामाजिक संबंध, प्रकृति, परिवेश, जीवन के अनुभव,पर्व त्यौहार, संबंध.... और भी न जाने क्या-क्या विषय एक माला के स्वरूप में गुंथे हुए हैं। 

लोकरंजन प्रकाशन, प्रयागराज से प्रकाशित यह मुक्तक संग्रह 110 पृष्ठों में विस्तार लिए हुए है जिसके 90 पृष्ठों में गिरीश जी के 540 मुक्तक समाहित हैं। चार अधिकृत विद्वानों ने सारगर्भित भूमिका में उनके मुक्तकों पर अपने विचार रखे हैं जो कि विविधता के साथ-साथ गिरीश जी के लेखकीय कौतुक पर एकमत हैं। 

गिरीश अपने लेखन में इतने रचे बसे हैं कि किसी भी राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक या सांस्कृतिक घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया स्वरूप उनके शब्द तुरंत मुक्तक का रूप ले लेते हैं। ऐसी विशिष्टता विरले कवियों में ही पाई जाती है जिनमें से गिरीश श्रीवास्तव ‘गिरीश’ भी एक हैं और इस नाते भरपूर प्रशंसा के पात्र हैं। किसी भी घटना पर तुरंत प्रतिक्रिया के रूप में काव्य अभिव्यक्ति गिरीश जी को जनकवि के रूप में स्थापित करती है और यह निःसंदेह एक उपलब्धि मानी जाएगी। मैं मानता हूं के त्वरित प्रतिक्रिया में जो कुछ भी उत्पादित होता है, वह चाहे काव्य हो, भाषण हो या आक्रोश हो अथवा प्रेम हो, उसके गठन में प्रायः कुछ त्रुटी रह सकती है जो कि बहुत सोच समझकर किए गए लेखन में बहुदा नहीं पाई जाती और यह कमी कहीं-कहीं किसी-किसी मुक्तक में गिरीश जी के यहां भी देखी जा सकती है । इसका उल्लेख भूमिका में एक दो विद्वानों ने भी किया है लेकिन इससे उनके लेखकीय कौतुक का कद लेश मात्र भी काम नहीं होता।

गिरीश जी के मुक्तक सरल बोधगम्य और मधुर भाषा में ऐसे प्रवाह को लिए हुए हैं जैसे कि आप आमने-सामने बैठकर बात कर रहे हों। उनकी भाषा में कठोरता नहीं है। यह अलग बात है कि जहां जरूरत है तो वे शब्दों के आक्रोश को जरुर व्यक्त करते हैं और यह समीचीन भी है।


यह भी पढ़ें | UP News: शाहजहांपुर में दुष्कर्म का आरोपी गिरफ्तार | Naya Sabera Network

अब कुछ मुक्तकों से आपको रूबरू कराते हैं। कवि के आत्म स्वाभिमान को इंगित करता हुआ यह मुक्तक देखिए:–

"दर्द होता है चीख़ लेते हैं ।।।

ठोकरों से भी सीख लेते हैं ।।

मुझको हमदर्दियां कुबूल नहीं-

और होंगे जो भीख लेते हैं ।।"

नदी को रूपक बनाकर संबंधों पर चोट करता गिरीश जी का यह मुक्तक कई मायनो में अद्भुत है:–

"छल के सम्बन्ध टूट जाते हैं ।।

पल के अनुबंध टूट जाते हैं ।।

जब भी लेती नदी है अंगड़ाई-

सारे तटबंध टूट जाते हैं ।।"

गिरीश जी जब प्रेम में  वियोग श्रृंगार पर उतरते हैं तो उनके पैठ दिल से आँखों तक यादों को हिला जाती है। ऐसे खूबसूरत मुक्तक संग्रह में बहुत सारे हैं । एक मुक्तक आपके लिए दे रहा हूं:–


"नाग स्मृतियों के डसते रह गए।।

मेघ उमड़े दृग बरसते रह गए।।

एक चुटकी नेह पाने के लिए-

जिन्दगी भर हम तरसते रह गए।।"

संवेदना के हर स्तर पर गिरीश जी आशावादी रूप में सामने आते हैं। उनकी उम्मीद का दिया टिमटिमाता रहता है और वह उसकी प्रासंगिकता को अपनी पंक्तियों में सिद्ध भी करते हैं, जैसे एक मुक्तक देखिए:–

"एक बार मुलाकात फिर हो, सोच रहा हूँ।

दिल खोलकर के बात फिर हो सोच रहा हूँ।।

वर्षों गुजर गए हैं इन्तजार में गिरीश-

आनन्द की बरसात फिर हो, सोच रहा हूँ।।"

गांव में आती बदलाव की बयार गिरीश जी के भीतर के कवि को भी आंदोलित कर जाती है। उनको गांव का यह है बदला हुआ स्वरूप कतई नहीं भाता और वह कह उठते हैं:–

"हो गये हैं लोग अब कितने सयाने गाँव के ।।

मर गई संवेदना बदले हैं माने गाँव के ।।

याद बचपन आ रहा है, मस्तियां ही मस्तियां-

खो गये जाने कहाँ वो दिन सुहाने गाँव के ।।"

गिरीश जी के मुक्तकों में शब्द विन्यास और भाषा का इतनी खूबसूरती से प्रयोग हुआ है कि कई बार अर्थ स्पष्ट न होते हुए भी पंक्तियां मन को छू जाती हैं। ऐसा ही एक मुक्तक:–

"कभी सोना कभी पत्थर कभी वो धूल लगती है ।।

कभी प्रतिकूल लगती है कभी अनुकूल लगती है ।।

समझ में कुछ नहीं आता उसे क्या नाम दूं आखिर-

कभी वो शूल लगती है कभी वो फूल लगती है ।।"

देश के लिए मर मिटने का जज्बा और देशभक्ति का उबाल गिरीश जी के मुक्तकों में एक दो जगह नहीं बल्कि जगह-जगह देखने को मिलेगा और यह आज के इस दौर की जरूरत भी है कि हम आने वाली पीढ़ी को देश प्रेम के प्रति सजग करें और उनका उत्साह वर्धन करें:–

"जमाना याद रख़ेगा निशानी छोड़ जायेंगे ।।

हम अपने शौर्य साहस की कहानी छोड़ जायेंगे ।।

कसम माँ भारती की जान की परवा नहीं करते-

वतन के वास्ते चढ़ती जवानी छोड़ जायेंगे ।।"

गिरीश जी ने संबंधों पर भी खूबसूरत मुक्तक कहे हैं। पिता पर उनके मुक्तक पिता के संघर्ष और पिता के विराट व्यक्तित्व को लक्षित करते हैं, वहीं ममतामई मां पर उनकी पंक्तियां भीतर तक द्रवित कर जाती हैं । मां से गिरीश जी का  स्नेह अद्वितीय है। मां के प्रति कवि के भाव मां के स्नेहल व्यक्तित्व को हृदय पटल पर साकार कर जाते हैं। एक मुक्तक पर्याप्त होगा:–

"मैं उन्नीस माँगता हूँ पर मुझे वो बीस देती है ।।

मेरी किस्मत दुआओं की मुझे बख़्शीश देती है ।।

चरण स्पर्श करता हूँ तो सर पर हाथ रख मेरे-

सुबह और शाम हंसकर माँ मुझे आशीष देती है।।"

कुल मिलाकर, गिरीश जी मुक्तकों का इंद्रधनुष रचते हैं जिसमें कोई भी रंग दूसरे रंग से लेश मात्र भी कमतर नहीं है बल्कि हर रंग का अपना आनंद और अपना माधुर्य है। मुझे विश्वास है की चार-चार पंक्तियां के इन लघु स्वरूप की विराट मारक क्षमता का एहसास मुक्तक के प्रेमियों को अवश्य होगा और सुधि पाठकों में इस संग्रह का हृदय से स्वागत किया जाएगा।

****

समीक्षित पुस्तक:गिरीश के मुक्तक 

कवि: गिरीश श्रीवास्तव ‘गिरीश’

पृष्ठ संख्या:110 

मूल्य: ₹150 

प्रकाशक: लोक रंजन प्रकाशन, 3/2 प्रयाग स्टेशन रोड, प्रयागराज-211002

*****

समीक्षक-डॉ मनोज अबोध 

E 1101, स्टेलर एमआई सिटीहोम्स, 

सैक्टर ओमिक्रोन-3

ग्रेटर नोएडा 201 310 उo प्रo 

मोo 9319317089

Gahna Kothi Bhagelu Ram Ramji Seth | Kotwali Chauraha Jaunpur | 9984991000, 9792991000, 9984361313 | Olandganj Jaunpur | 9838545608, 7355037762, 8317077790 And RAJDARBAR A FAMILY RESTAURANT in RajMahal Jaunpur
Ad


नया सबेरा का चैनल JOIN करें