Poetry: ऋतुचक्र | Naya Sabera Network

Poetry: Seasonal cycle
नया सवेरा नेटवर्क

ऋतुचक्र 

 कहो तेवारी अब का होए?


चूल्हा चउका सासु करत बा,

चढ़िके पलंग पतोहिया सोए।

कहो तेवारी अब का होए?


राति-राति मोबाइल चेटिंग,

बिना बियाहे के ही डेटिंग,

गर्लफ्रेंड अउ ब्वायफ़्रेंड कऽ

रेल टिकट जइसन बा वेटिंग।

आधा कपड़ा वाला फैशन,

सगरी कुल मरियादा धोए।

कहो तेवारी अब का होए?


काश्मीर काशी से काबा,

जहंवा देखा छाइल बाबा,

हमसी कहिन,योग कर बचवा

खुद उद्योग करत हौं सांभा,

बाबा सगरे बनिया बनिगै,

बनिया मूड़ पीटि के रोए,

कहो तेवारी अब का होए?


तीस बरिस मा होला शादी,

ई समाज कुल कइ बरबादी,

लरिके खुद कइ-कइ लइ आवइं,

एहमा के बाटइ अपराधी?

जाति धरम ना छोड़िहैं लरिका 

कटब्या उहइ जवन जे बोए,

कहो तेवारी अब का होए?


गजब सनातन आजु फंसल बा,

जाति धरम मा देश बंटल बा,

अगड़ा-पिछड़ा,दलित लड़ाई,

जेतना बोला,भाइ घटल बा,

भारत माता देइं दुहाई,

नेता गावइं ओए-ओए।

कहो तेवारी अब का होए?


केवल कुर्सी पावइ खातिर,

रोज चलत बाटइ नौटंकी,

अपने अपने मतलब खातिर -

देशभक्त केउ, केउ आतंकी,

जे भी अइसन चाल चलत हौं

मारा पनही बिना भिगोए,

 कहो तेवारी अब का होए


कोरोना फिनि से आवत बा,

चैनल वाला डेरवावत बा,

हार जीत कऽ अइसन खेला,

दुश्मन अब भी भरमावत बा,

झूठ चलत बा दुनिया भर मा 

सच बेचारा आंखि भिगोए।

कहो तेवारी अब का होए?


यूट्यूबर बनिके गद्दारी,

ज्योति बनल जयचंदी नारी,

वोट बैंक बिन ससुरे नेता-

करइं पाक कइ पहरेदारी,

सत्य सनातन के विरोध मा-

फिनि सिब्बलवा आपा खोए 

 कहो तेवारी अब का होए


 माई-बाबू वृद्धाश्रम मा-

अपुवां मोछि मरोरत बाएन,

पढ़ि लिखि के हमरे कुलबोरनू

नाम बाप का बोरत बाएन,

इक मेहरारू शहर मा होइ गइ

एक गांउ मा सपन संजोए 

 कहो तेवारी अब का होए

सुरेश मिश्र

*जौनपुर टाईल्स एण्ड सेनेट्री | लाइन बाजार थाने के बगल में जौनपुर | सम्पर्क करें - प्रो. अनुज विक्रम सिंह, मो. 9670770770*
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