Poetry: तुमसे प्रेम नहीं कर पाऊंगा | Naya Sabera Network
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तुमसे प्रेम नहीं कर पाऊंगा
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अरे हां...
कुछ दिनों से मैं
प्रीत की बातें
भूल सा गया हूँ
रोज-रोज के
घात-प्रतिघात में
मिल-घुल सा गया हूँ
और हां...!
भूल गया हूँ
तुम्हारे इश्क को
पूछना, परखना
तुम्हारी यादों को
समेटे रखना...!
अब जब भी कहीं
प्रेम बोने की
बात आती है...!
दहशतगर्दों की
दरिंदगी
सामने आ जाती है।
नहीं...
जरा भी नहीं
मैं अभी तुमसे
मोहब्बत
नहीं कर पाऊंगा।
- शचीन्द्र
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