National : अखिल भारतीय अग्निशिखा मंच का काव्य सम्मेलन संपन्न | Naya Sabera Network

नया सवेरा नेटवर्क

नवी मुंबई। अखिल भारतीय अग्निशिखा शिखा मंच ने होली स्नेह सम्मेलन और काव्य सम्मेलन का आयोजन किया। इस काव्य सम्मेलन में करीब 16 कवियों ने भाग लिया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे राम राय और समारोह अध्यक्ष डॉक्टर कुंवर वीर सिंह मार्तंड। विशेष अतिथियों में पन्नालाल शर्मा, संतोष साहू,जनार्दन सिंह, शिवपूजन पांडे आदि ने मंच को गरिमा प्रदान किया। मंच की अध्यक्ष डॉ अलका पाण्डेय ने कहा कि होली खुशियों का त्यौहार है, यह प्यार का पैगाम लेकर आता है और सबके दिलों में नफरत हटाकर प्यार का रंग भर जाता  है। 

 कार्यक्रम का संचालन अलका पांडे ने किया और आभार व्यक्ति भी अलका पांडे ने ही किया।  सरस्वती वंदना रवि शंकर कोलते ने की। कवियों में सुरेंद्र हरडे,अलका पाण्डेय, डॉ महताब अहमद आजाद,चंद्रिका व्यास , मीना त्रिपाठी, कुमकुम वेद सेन , सुरेंद्र प्रसाद गाई, रानी अग्रवाल, हीरा लाल कौशल, रविशंकर कोलते, सीमा त्रिवेदी आदि ने उत्तम रचनाओं का पाठ किया।

कुछ कवियों की रचनाएं

होली आई

होली आई रे होली आई रे

होली आई रे होली आई रे 

भर लो रगों से पिचकारी सांवरिया होली आई रे 

रंग गुलाल गालों पर लगाऊ

चंदन तिलक माथे पर सजाऊ

होली आई रे होली आई रे 

रंग रंगीली होली आई रे


रंग रंगीला फागण आयो रे।

 मस्ती भरा आलम छायो रे ।।

चारों तरफ रंग बिरंगे रंगों की बहार आई रे ।

भर भर पिचकारी रंगों से रंग डालो रे ।।

वृंदावन में रास रचाए ।

कान्हा को भी खूब सताओ ।।

राधा रानी मस्ती में डोले ।

कान्हा को भर भर के रंग डाले।। होली आई रे होली आई रे ।

होली आई रे सांवरिया होली आई रे ।।

झूम रहे सब मस्ती में नाचेंगे मस्ती में ।

ढोल मजीरे खूब बजाएं मीठी मीठी तान सुनाएं मस्ती मे ।।

 रंग रंगीले सबके चेहरे रंगों की बहार में ।

सब मुस्काते हंसते गाते फागुन में।।

फागुन की मस्ती छाई रे ।

भर भर बाल्टी पानी डाले रे ।।

राधा को रंग डाले प्रेम के रंग में कान्हा रे ।

रंग रंगीली होली आई रे ।।

आई रे आई रे होली आई रे। फागुन की मस्ती छाई छाई रे।।

अलका पाण्डेय मुंबई

कलियों के नये कलेवर से,

अलियों में आयी मदहाली है।

कानन के कमनीय डगर पर,

डगमगा रहा हर माली है।।

डॉ सुरेन्द्र प्रसाद गांई


आज लगे न कोई बूढ़ा- बुढ़िया

आज लगे न कोई छोटा- बड़ा

रंग के नशे में लोग आज झूमते

भुला कर अपनी अलग पहचान

चलो आज सखी झूम के खेलें होली... 

ओमप्रकाश पाण्डेय

मैं कनखियों से देख देख गुलाबी होती रही

मन की पिचकारी से तन मन भिगोती रही

मुस्कुराए पिया हुआ आंगन जब ख़ाली

पिया के संग फिर मैं पिया की ही होली

     मीना गोपाल त्रिपाठी

      कोतमा, अनुपपुर (म.प्र.)

कविता - खुशदिल होली    फागुनी हवा में मदमस्त हो जाती होली।

वसंती फूलों को नवरंग से रंगाती होली।। ब्रज में कान्हा राधा रास रचाती मस्त होली।

गोपियों के गालों को गुलाल से सजाती होली।। 

बच्चों की पिचकारी से सभी को रंगाती होली।

गाल गुलाल प्रेयसी प्रेमी से खुशदिल होली।। 

हरेक के दिलों में प्यार के जज्बात जगाती होली।

हरेक के मन में निश्छल भाव जगाती खुशदिल होली। 

हीरा सिंह कौशल

मुद्दत पहले जिसके संग खेली थी होली।

मौला मिल जाएं वो बिछड़ा हमजोली।।

डॉक्टरेट महताब आज़ाद

उत्तर प्रदेश


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