एक दिवस का सम्मान | Naya Savera Network
नया सवेरा नेटवर्क
आज 8 मार्च है महिलाओं का दिन मतलब आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पूरा विश्व बड़े जोर शोर से मना रहा है। हर प्लेटफार्म पर महिलाओं को बधाई और शुभकामनायें दी जा रही हैं। वे विशेष रूप से दे रहे हैं जो कभी महिला को महिला नहीं वरन उपभोग का समान समझ सिर्फ उसका एन केन प्रकारेंण भोग कर रहे हैं। वे भी कर रहे हैं जो महिला को आजादी दिलाने के नाम पर बाजार में खुलेआम सजा धजाकर बेंच रहे हैं।पैसा छापने की मशीन बनाये हुए हैं। आज के दिन वे लोग मंच सजाकर पूरे शहर में बड़े होर्डिंग लगाकर महिला सम्मान और महिला सशक्तीकरण की बात करेंगे,जो महिला को अपने पैर की जूती बनाये हुए हैं।
आज जहाँ देखो वहीं महिला सम्मान और महिला सशक्तीकरण की बात खूब होगी। बहुत सारे साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक व राजनीतिक मंच सजेंगे। उन महिलाओं को चिन्हित कर सम्मान करेंगे, जो स्वछंद रूप से किसी न किसी बहाने उनके साथ विचरण करती होंगी। बहुत कम ऐसी महिला का सम्मान होता है जो सच में सम्मान के काबिल होती हैं। जो स्वतंत्र रूप से देश समाज और परिवार के लिए जीती हैं। जो परिवार को एक मजबूत धागे में पिरो कर रखती हैं। जिसके परिवार से संस्कारी सुसंकृत लोग समाज में आते हैं। देश समाज को सही दिशा देते हैं। ऐसी महिलाओं का आज तक मैने तो कहीं सम्मान होते नहीं देखा। सम्मान उन्हीं का होते देखा जो ढकोसलेबाजी में संलिप्त हैं। जिस दिन उस महिला का सम्मान होगा जो ढकोसलेबाजी चोचलेबाजी से दूर सद्चरित्र समाज के विस्तार में अहम रोल निभा रही हो। तो मैं समझूँगा कि सच में आज महिला का सम्मान हुआ। तब मैं समझूँगा कि महिला सशक्तीकरण के लिए पहला कदम उठा। सृष्टि में महिला पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं।सही समाज के निर्माण में दोनों की भूमिका निर्णायक होती है।जिसमें महिला प्रमुख होती है। क्योंकि वह जननी होती है।वही जैसा चाहे वैसा निर्माण करती है। पुरुष उसी के इशारे से बनता और विगड़ता है।एक कहावत कि हर कामयाब पुरुष के पीछे एक महिला का हाँथ होता है।तो वो ऐसे ही नहीं कहा गया है।जब आपके परिवार में कलह नहीं होगी।आपकी चाहे माता हो बहन हो बेटी हो पत्नी हो या सहचरी हो,यदि आपको हर जगह संतुलित महौल देगी तो आप हर कार्य को सही ढंग से करेंगे।क्योंकि आपको किसी भी तरह का तनाव नहीं है।इसलिए आप सफल हो। हमारे भारत में नारी को नारायणी देवी आदि कहके सम्बोधित भी किया जाता था। और सम्मानित भी किया जाता है।वर्ष में दो बार नवरात्र आता है। जिसमें नव कन्याओं को नवदुर्गा का रूप मानकर उनका पूजन किया जाता है।इससे बड़ा और इससे सुन्दर महिला सम्मान और सशक्तीकरण का उदाहरण कहीं नहीं मिलता।फिर भी हम आज उनकी नकल कर रहे हैं जो महिला को महिला नहीं उपभोग की वस्तु समझते हैं।उनके ही अनुगामी बन गये जो महिला को पैसा बनाने की मशीन समझते हैं।और हम भी ढकोसलेबाजी में लिप्त हो गये।भारत में महिला का सम्मान एक दिन नहीं प्रतिदिन होता था।मगर उनकी देखा देखी जबसे एक दिन होने लगा तबसे महिलाओं का सम्मान कम और अपमान अधिक होने लगा।
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पं.जमदग्निपुरी |
जिस देश में नारी माता कहके पूजी जाती थी,उसी देश में आज आये दिन उसी नारी के संग बलात्कार हो रहा है।35 टुकड़ों में विभक्त हो रही है।और ऐसे ऐसे कांड सुनने देखने को मिल रहे हैं,जिससे रूह कॉप जाती है।ए ऐसा इसलिए हो रहा है कि जबसे एक दिन के सम्मान चलन बना।नारी जिस्म के सौदागरों ने गजब की चाल चली महिलाओं के संग।जो नारी मंदिर में पूजी जाती थी,उसे महिला सशक्तीकरण के नाम पर बाजार में लाकर खड़ी दिया।और उसे अपने हिसाब से रोज बेंच रहे हैं।और धन संचय कर रहे हैं।और महिलायें मंदिर से निकल कर बाहर आयें,इसलिए महिला सशक्तीकरण का छद्म हथियार थमा दिए।और महिला दिवस के पर्व बनाकर सम्मान रूपी लालीपाप पकड़ा कर उनका दोहन कर रहे हैं।जिससे महिला रोज रौंदी जा रही है।फिर भी वो लालीपाप के चक्कर में देखते हुए भी अन्हराई है।परिवार को बिखेर कर खुद सशक्त बनने के चक्कर में गिद्धों द्वारा नोची खसोटी जा रही है।इसीलिए गोस्वामी जी ने शायद लिखा है कि,
जानि जानि नर करइं ढिठाई।
बूड़ा जाइं थाह ना पाई।।
कहने का मतलब ये है कि ढकोसला न करके महिला को सम्मान दिया जाय तो सुन्दर।उसे बाजारू समान बनाकर सम्मानित करना गलत है।असल महिला सम्मान तब माना जायेगा जब किसी भी प्लेटफार्म पर महिला की चीख न सुनाई दे।किसी भी अखबार में महिला के चीथड़े न दिखाई दे।हर महिला आवारा कुत्ते जैसे मानवों से सुरक्षित हो।उस पर राह चलते गिद्ध दृष्टि किसी की न पड़े।तब महिला दिवस की सार्थकता है।वरना सब ढकोसला है।
पं.जमदग्निपुरी