'ऊधौ मोय ब्रज बिसरत नाही' | Naya Savera Network

नया सवेरा नेटवर्क

श्री कृष्ण जब  ब्रज छोड़कर द्वारिकाधीश बनें तो उन्हें ब्रज की याद सताने लगी। ग्वालों और गोपिकाओं के संग व्यतीत किये क्षणों की याद और उनकी मनोहारी अद्भुत लीलाएं  प्रभु को एक एक कर स्मरण होने लगी । गोपियों ने उनके विरह में अश्रु बहाये। गोपियों को ऊधौ द्वारा दिये ज्ञान की बातें  बेअसर साबित हुई । श्री कृष्ण को ब्रज भूल पाना मुश्किल हो गया ।ब्रज की ऐसी विचित्र महिमा है ।      

 ब्रजधाम भगवान का घर होने के नाते यह सभी तीर्थों व धामों में श्रेष्ठ है ।ब्रज में राधाकृष्ण का पावन प्रेम बिखरा प्रतीत होता हे । यहां कण कण में श्री कृष्ण के बालरूप की दिव्य अनुभूति होती है । ब्रज  में जितने भी स्थान  हैं वे प्राय: सभी श्रीकृष्ण की लीला स्थली है । जिसका व्यापक क्षेत्र चौरासी कोस में फैला है । कहते हैं कि ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा करने वाले जीव को  जन्म मरण के चक्र से छुटकारा मिल जाता है । संत डा0संजय कृष्ण सलिल जी महराज ( वृन्दावन वाले)ब्रज मंडल के चौरासी कोस की यात्रा  निःशुल्क वाहनों द्वारा प्रतिवर्ष  रखते हैं तथा भक्तों का बहुत ध्यान रखते हैं।सभी भक्तों का खर्च जिसमें रहना , ठहरना, भोजन नाश्ते सहित वाहनों द्वारा यात्रा करवाते हैं जिसमें चार हजार भक्त एक सप्ताह तक उनके साथ ही रहते हैं ।इस बडे आयोजन में कई लाख खर्च भी होते हैं जो श्रध्दालु भक्तों के सहयोग से व राधे रानी की कृपा से पूरे होते हैं । इसके अलावा और भी संत हैं जो ऐसे आयोजन करते रहते हैं । ब्रज की चौरासी कोस यात्रा का निःशुल्क अवसर एक ही बार दिया जाता है ।जिससे दूसरे भक्तो को भी निःशुल्क का लाभ   मिल सके ।  इस बर्ष यह यात्रा 2  से 8  मार्च  रखी गई है जिसका यात्रा रजिस्ट्रेशन पूरा हो गया है ।
    मथुरा दिल्ली से 150 किमी और आगरा से 60 किमी दूर है ।मथुरा जनपद  के बीचोबीच श्रीकृष्ण की जन्मभूमि है ।जो कंस का बंदीगृह भी रहा । 1669  में दिल्ली बादशाह औरंगजेब ने इस प्राचीन स्मारक को तोड़कर उसी मलवे से ईदगाह मस्जिद का निर्माण करवाया जो आज भी विद्यमान है ।अंग्रेजो के शासनकाल में बनारस के राजा पटनी ने समस्त जगह खरीद कर  श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट बनाकर एक विशाल मन्दिर का निर्माण करवाया जहां आयुर्वैदिक औषधालय, पाठशाला, पुस्तकालय ,भोजनालय , एक विशाल अतिथिगृह का भी  निर्माण किया गया है ।इसी से सटे ईदगाह मस्जिद भी बना दी गई है जो  हिन्दु और मुस्लिम  के विवाद में  अभी चल रही है। यात्रियों को इस स्थल का भी अवलोकन करना चाहिए । इसके अलावा  ब्रज में कई स्थल हैं जो दर्शनीय हैं - निधिवन जो वृन्दावन के बीचोबीच स्थित है जहां आज भी राधेरानी  श्रीकृष्ण व गोपियां    प्रतिदिन रासलीला करते हैं  ।यह लीला देखने भगवान शिव भी गोपी बनकर रास में उपस्थित हुए। श्रीकृष्ण ने उन्हें पहचान लिया ,गोपेश्वर  नाम से पुकारा ।यात्रियों को गोपेश्वर जी  का भी दर्शन  अवश्य करना चाहिए । कात्यायनी देवी का दर्शन , बांकेबिहारी जी का दर्शन , श्री यमुना जी का दर्शन , अंग्रेजों का इस्कॉन मन्दिर , प्रेम मन्दिर, श्रीमदभागवत भवन ,  श्री द्वारिकाधीश मन्दिर,  गणेश मन्दिर, श्रीनाथ जी का मन्दिर ,वाराहजी का मन्दिर ,गोवर्धन नाथ जी का मन्दिर , बिरलामन्दिर , श्रीजी बाबा मन्दिर, राधारमणजी का मन्दिर , राधा गोपाल जी का मन्दिर , युगलकिशोर जी का मन्दिर,  सवामन सालिगरामजी का मन्दिर , 
श्रीजानकी बल्लभलाल भगवान का मन्दिर ,जयपुरवाला मन्दिर , श्रीपागलबाबा का मन्दिर,  अक्रुर जी का मन्दिर  ,बरसाने राधा जी का मन्दिर , गोवर्धन दर्शन  इत्यादि अवश्य करना चाहिए । इसके अलावा प्रमुख घाट ,सरोवर ,वन ,मानसीगंगा ,दानघाटी ,गोविंदकुण्ड ,कुसुम.सरोवर , संकेत वन ,कोकिलावन , नंद गाँव , गोकुल , महावन ,मानसरोवर , ब्रह्माण्ड घाट ,रसखान की समाधि , बल्देव जी का मन्दिर , भरतपुर महराज की छतरियां, तालाब  भी स्थानीय जानकारो  की मदद से प्राप्त करना चाहिए ।मधुवन में जहां धुव्र ने नारायण का  कठोर तप कर धुव्रलोक प्राप्त किया इस स्थान पर भी कुछ समय व्यतीत करने से मन शांत होता है । ठहरने के लिए जगह-जगह धर्मशालाए ,होटल , आश्रम , विश्रामगृह, व विभिन्न समाज के भवन   बने हुए हैं जो उचित किराये पर उपलब्ध हैं फोगला आश्रम के सामने ब्रज यात्राधाम  भी यात्रियों की अत्याधुनिक सुविधा सम्पन्न सुलभ है  तथा यातायात के लिए आटोरिक्शा , बस , मोटर  टैक्सी जैसे साधन सुलभ हैं । समस्त वृन्दावन में बर्ष भर पर्व , उत्सव , आरती , मेला  चलते रहते हैं । ब्रज की होली बहुत प्रसिद्ध है जहां पहली होली राधा ने श्रीकृष्ण व ग्वालों गोपियों संग खेली  । होली में रंग अबीर , फूलों की होली , लट्ठमार होली , लड्डू होली प्रमुखता से आज भी खेली जाती है  ।वृन्दावन वृन्दा( तुलसी वन ) हैं जो वृन्दावन की अधिष्ठात्री देवी हैं ।वृन्दा राधा का श्रीकृष्ण से मिलन की इच्छा से वन में निवास करती हैं जो कण कण को पावन व रसमय करती हैं । श्रीकृष्ण को ब्रज की बाल लीलाओ  की याद आती है इसलिए वे स्वयं  ऊधौ से कहते हैं  कि 'ऊधौ मोय ब्रज बिसरत नाही '।ब्रज भूमि में सारे तीर्थ और धाम स्थित हैं ।एक बार की बात है कि नंद और यशोदा मैय्या तीर्थ और धामों का दर्शन करने की इच्छा की ।श्रीकृष्ण ने उन दोनों को मना किया कि बाबा आप बूढ़े हो गए हो दर्शन  का बिचार त्याग दो ।लेकिन दोनों की इच्छा प्रबल थी ।तब श्रीकृष्ण ने चारों धाम और सभी तीर्थों को बुलाकर ब्रज में ही शरण देकर अपने धाम  में ही स्थापित कर दिया  जिसके दर्शन मात्र से वही पुण्य लाभ मिल जाता है ।इसलिए जिनसे इतनी यात्रा सम्भव न हो उन्हें ब्रज चौरासी कोस में पडने वाले इन तीर्थों और धामों के  दर्शन से मनोरथ पूर्ण करना चाहिए ।         
राकेश सिंह (सेवानिवृत्त शिक्षक, खलीलपुर, जौनपुर उ0प्र0)



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