Jaunpur News : राजेपुर रामेश्वर धाम : जहां पूर्ण होती है मनोकामनाएं | Naya Savera Network
- सई उतरि गोमती नहाए, चौथे दिवस अवधपुर आए...
- चित्रकूट से अयोध्या लौटते समय भरत भैया ने स्वयं किया था पूजा पाठ
- महाराज जनक के गुरु ऋषि अष्टावक्र की तपोभूमि पर स्थित है शिवलिंग
रामाज्ञा यादव
जलालपुर, जौनपुर। आदि गंगा गोमती और सई नदी संगम स्थल के तट पर स्थित रामेश्वर धाम शिव मंदिर शिव भक्तों के आस्था का प्रमुख केंद्र है। यह शिव मंदिर राजेपुर ग्राम में स्थित है जिसे त्रिमुहानी राजेपुर के नाम से भी जाना जाता है। मिथिला नरेश महाराज जनक के गुरु ऋषि अष्टावक्र की इस तपोभूमि पर स्थित शिवलिंग स्वयं-भू है। ऐसी मान्यता है कि यह शिवलिंग किसी के द्वारा स्थापित न होकर बल्कि जमीन के अंदर से खुदाई के दौरान निकला था। मंदिर का गर्भ गृह अभी भी लगभग 5 फीट गहराई में अवस्थित है। इसका वर्णन रामचरितमानस में भी मिलता है कि भगवान श्रीराम के वन गमन पर उनके छोटे भाई भरत जी उन्हें मनाने चित्रकूट गए हुए थे तो भगवान श्री राम उन्हें अपना खड़ाऊ देकर विदा किया था।
वही खड़ाऊ लेकर अयोध्या वापस इसी रास्ते से लौट रहे थे तो उन्होंने यहां रुक कर भगवान शिव का पूजन अर्चन किया था जो रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखे श्लोक में वर्णित है। सई उतरि गोमती नहाए, चौथे दिवस अवधपुर आए...। जो इस स्थान की पौराणिक महानता को उजागर करता है। आध्यात्मिक एवं प्राकृतिक छटाओं से परिपूर्ण सई नदी आदि गंगा गोमती की पावन संगम पर स्थित राजेपुर रामेश्वर धाम पर वैसे तो लगातार शिव भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है लेकिन श्रावण मास में तो शिव भक्तों का जनसैलाब ही उमड़ पड़ता है। कार्तिक पूर्णिमा पर बहुत बड़ा ऐतिहासिक मेला लगता है जो संगम के तीनों पार में लगता है। जिसे त्रिमुहानी का मेला भी कहा जाता है।
- पर्यटन स्थल के रूप में भी विख्यात
रामेश्वर धाम से सटा आदि गंगा गोमती एवं सई नदी का मिलन भी इसकी अलौकिक शोभा में चार चांद लगा देता है। राजेपुर रामेश्वर धाम में श्रद्धालु शिवभक्तों का हमेशा आने-जाने का सिलसिला लगा रहता है। रामेश्वर महादेव मंदिर पर स्थानीय विकास के कार्यों का शिलान्यास तत्कालीन रेशम एवं वस्त्र उद्योग मंत्री जगदीश नारायण राय द्वारा वर्ष 2007 में अनुमानित लागत 25 लाख रुपए तथा उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा अनुमानित लागत 24.23 लाख रुपए द्वारा लोकार्पण योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश के कर कमलो द्वारा वर्ष 2022 में किया गया लेकिन ठिकेदार के उपेक्षा के चलते अभी मंदिर मार्ग का मुख्य गेट का कार्य अधूरा पड़ा है। शौचालय, स्नानागार, सीसीटीवी, सोलर लाइट का कार्य भी अधूरा पड़ा हुआ है। इस स्थल पर पहले से उपलब्ध सुविधाएं भी वर्तमान में जनप्रतिनिधियों की अपेक्षा के चलते जस का तस पड़ा हुआ है।
- राजेपुर रामेश्वर धाम का पौराणिक महत्व एवं स्थिति
ऋषि अष्टावक्र की पावन तपोभूमि पर स्थित शिव मंदिर राजेपुर त्रिमुहानी के नाम से भी प्रसिद्ध है जो सई और गोमती के पावन संगम के तट पर बसा है। इसी संगम की वजह से इसका नाम त्रिमुहानी पड़ा है। यह जनपद मुख्यालय से जौनपुर-वाराणसी राजमार्ग पर 12 किमी दूर सिरकोनी बाजार से 7 किमी पूर्व दिशा में राजेपुर गांव थाना जलालपुर के अंतर्गत अवस्थित है। यह एक पौराणिक मंदिर है, जिसको हम रामेश्वर धाम मंदिर के नाम से जानते हैं। कार्तिक मास के पूर्णिमा के दिन यहां बहुत बड़ा मेला त्रिमुहानी के तीनों पार में लगता है। जहां संगम पर स्नान करके लोग शिव मंदिर में दर्शन पूजन करते हैं और प्रसाद स्वरूप तिल वितरित किया जाता है।
- मंदिर का महत्व
मंदिर के पुजारी बाबा राकेश नागर के अनुसार इस प्राचीन मंदिर में भगवान राम के छोटे भाई भरत जी भगवान राम का खड़ाऊ लेकर अयोध्या जाते समय इसी संगम पर स्नान कर पूजा अर्चन किए थे। ऐसा उल्लेख रामचरितमानस में भी मिलता है। तीन बीघे क्षेत्रफल में फैले इस विशाल मंदिर के प्रांगण के बगल में बाबा राजेंद्र सिंह उर्फ फक्कड़ बाबा का आश्रम है, जिसका निर्माण पुनवासी यादव के द्वारा सन 2001 में कराया गया था। यह जमीन ब्राह्मण परिवार द्वारा दान में दिया गया। पास में बने धर्मशाले में शादी विवाह भी होते रहते थे।
- प्राचीन है मंदिर की नक्काशी
गर्भ गृह के दरवाजे पर नंदी जी भगवान शिव के लिए प्रहरी का कार्य करते हैं। मंदिर के दरवाजे की नक्काशी बहुत प्राचीन है और बेजोड़ है। मंदिर के सामने पत्थरों पर बेजोड़ नक्काशी की गई है। मंदिर के प्रांगण में बहुत पुराना विशालकाय वट वृक्ष है। सुहागिन महिलाएं अपने पति एवं बच्चों के दीर्घायु के लिए इन बट बृक्षों में धागा लपेटती हुई परिक्रमा करती है और उनकी मन्नतें भोलेनाथ पूरी करते हैं, मंदिर में जप तप हमेशा चलता रहता है।
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