Poetry: ममतामयी,पद्म भूषण साध्वी ऋतंभरा जी | Naya Savera Network
नया सवेरा नेटवर्क
ममतामयी,पद्म भूषण साध्वी ऋतंभरा जी
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साध्वी ऋतंभरा,
ज्ञान घट भरा-भरा।
राम जी की टेरनी,
हिंदुओं की शेरनी।
म्लेच्छ से तनी-तनी,
है सदा सनातनी।
तू मृदुल,महान है,
हम सभी की शान है।
ज्ञान की पहाड़ हो,
सिंह की दहाड़ हो।
मां मेरी ममतामयी,
हृदय से करुणामई।
नारियों की शक्ति है,
राम-देश भक्ति है।
तू विरक्ति पाग है,
तप विटप विराग है।
सहज,सरल, स्नेह है,
प्रेम सिक्त गेह है।
पद्म खुद मुदित हुआ,
भूषणों का हित हुआ।
हम सभी की शान है,
साध्वी महान है।
तू कभी रुकी नहीं,
तू कभी झुकी नहीं।
राम धाम के लिए,
अवध ग्राम के लिए।
लेकर अपनी टोलियां,
जय श्री राम बोलियां।
राम धाम के लिए,
खा रहीं थीं गोलियां।
दुंदुभी हुंकार की,
शेरनी सवार थी।
तापसी तपस्विनी,
चल पड़ी तनी-तनी।
देश की अभिमान थी,
आप गौरवगान थी।
द्वेष था न राग था,
मन में सिर्फ त्याग था।
राम धाम आ गए,
स्नेह भी लुटा गए।
क्योंकि तू आधार थी,
आंदोलन की सार थी।
राम जी का आगमन,
नैन अश्रु धार थी।
दिल्ली को भी भान था,
प्यार था, सम्मान था।
दिल-कमल खिला-खिला,
पद्म का भूषण मिला।
शबरी तू, मीरा है तू,
भक्ति का हीरा है तू।
मगन आज देश है,
मन मुदित सुरेश है।
तू छुवे ऊंचाइयां,
कोटिश: बधाइयां।
प्रेम से या यत्न से,
सजो भारत रत्न से।
सुरेश मिश्र
9869141831
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