ग़ज़ल: गिराकर बारिशें आँखों से हासिल कुछ न आयेगा | Naya Savera Network
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ग़ज़ल
गिराकर बारिशें आँखों से हासिल कुछ न आयेगा
बना है दिल में उसका नक्श वो धोया न जायेगा
बनेगा तब मुकद्दर जब उसे तू खुद बनायेगा
खुशामद करने वाला तो सदा दुम ही हिलायेगा
दिखाकर रुतबा और दौलत कोई फेंका करे टुकड़े
मगर फेका हुआ टुकड़ा कोई कुत्ता ही खायेगा
तिजारत का ज़माना है ज़रा हुशियार ही रहना
कोई कुछ दे रहा है तो बहुत कुछ लेके जायेगा
मुझे मालूम है फिर आज रुसवा होगी सच्चाई
कहानी झूठ कुछ ऐसी सजाकर अपनी लायेगा
है जिनको लोभ लालच बस वही थाली के बैगन हैं
है जिनके ख़ून में ग़ैरत उन्हें कैसे डिगाएगा
डॉ.शोभा त्रिपाठी
एसो.प्रो.हिन्दी विभाग,
ग्लोकल विश्वविद्यालय, सहारनपुर,उ.प्र. ।