Poetry: नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जयंती पर हार्दिक शुभकामनाएं | Naya Savera Network
नया सवेरा नेटवर्क
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जयंती पर हार्दिक शुभकामनाएं
------------
दस सालों से आह भर रहे अपनी ही नादानी पर,
दिल्ली वालों बिक मत जाना, फिर से बिजली-पानी पर।
जान लुटाते हैं जो रोहिंग्या या बांग्लादेशी पर,
विक्टिम कार्ड दिखाते हैं ये अदालतों की पेशी पर।
जिनके छत पर कट्टा, बम, पत्थर, ये उनके साथ खड़े,
अट्टहास लगाते हैं हिंदू की ऐसी-तैसी पर।
थूकेगा इतिहास हमारा इन सब की शैतानी पर,
दिल्ली वालों बिक मत जाना, फिर से बिजली-पानी पर।
टूटी सड़कें, गंदा पानी, यमुना मैया रोती हैं,
टीवी पर सीएम जब आएं, केवल विष ही बोती हैं।
शीश महल की चाहत में, तुम सबको ठेंगा दिखा गए,
सोच-सोच अब दिल्ली की पब्लिक भी आपा खोती है।
अब कितना विश्वास करोगे हर दिन नई कहानी पर,
दिल्ली वालों बिक मत जाना, फिर से बिजली-पानी पर।
जो कट्टर ईमानदार थे, भ्रष्टाचार कराते हैं,
दिल्ली वालों को मयखाने की महिमा बतलाते हैं।
'जैसी करनी वैसी भरनी' वाला हर फल पाते हैं,
जितने भ्रष्ट लुटेरे सब चुन-चुन तिहाड़ में जाते हैं।
सावरकर से ज्यादा प्यार लुटाते अफजल बानी पर,
दिल्ली वालों बिक मत जाना, फिर से बिजली-पानी पर।
डेढ़ बरस से मौलाना वेतन की आस लगाए हैं,
और इधर ग्रंथी-पुजारियों पर ये जाल बिछाए हैं।
घर में दाने नहीं मगर श्रीमान भुजाने आए हैं,
बांट-बांट कर रेवड़ी ये फिर से फुसलाने आए हैं।
ताऊ, क्या फिर माफ करोगे ऐसी कारस्तानी पर?
दिल्ली वालों बिक मत जाना, फिर से बिजली-पानी पर।
दीवाली पर बैन लगाया, इस पर बैन लगाओ तुम,
अक्खी दिल्ली लूटा-खाया, इस पर बैन लगाओ तुम।
अन्ना को ठेंगा दिखलाया, इस पर बैन लगाओ तुम,
गद्दारों का साथ निभाया, इस पर बैन लगाओ तुम।
इसका तो आधार टिका है केवल खालिस्तानी पर,
दिल्ली वालों बिक मत जाना, फिर से बिजली-पानी पर।
अस्पताल कब खुले एक भी, कहां खुले नव विद्यालय?
मगर खुले हैं जगह-जगह पर देखो बाबू मदिरालय।
सीसीटीवी कहां लगे हैं हरिश्चंद्र के पुत्तर जी?
कचरों के पर्वत तो अब भी खड़े हुए ज्यों हिमालय।
उसने पीएचडी कर ली गद्दारी में, बेइमानी पर,
दिल्ली वालों बिक मत जाना, फिर से बिजली-पानी पर।
चूक न जाना, वरना बाबर के वंशज इतराएंगे,
और न जाने कितने अंकित फिर से मारे जाएंगे।
पाकिस्तानी डांस करेंगे, ओवैसी बल खाएंगे,
संभल जैसा हाल हुआ तो आप कहां पर जाएंगे।
वोट नहीं अब लानत देना तुम ऐसे अभिमानी पर,
दिल्ली वालों बिक मत जाना, फिर से बिजली-पानी पर।
शीला पर आरोप लगाकर क्या कीन्हा दस सालों में?
माफीनामा लिख-लिख माफीवीर बने घर वालों में।
जेलों में रहकर भी कुर्सी तजा नहीं नक्कालों ने,
गई चौकड़ी जेलों में, आई ना शर्म दलालों में।
फूट-फूटकर छठ मैया रोईं यमुना के पानी पर,
दिल्ली वालों बिक मत जाना, फिर से बिजली-पानी पर।
सुरेश मिश्र
9869141831