नववर्ष | Naya Savera Network
नया सवेरा नेटवर्क
नववर्ष
न ऋतु बदली,न मन बदला,
फसल बदली न वन बदला,
वही सूरज, वही चंदा,
नहीं धरती का कण बदला।
नया तो कुछ नहीं दिखता,
न इस्तकबाल बदला है।
सनातन मानने वालों
फिर कैसे साल बदला है?
न मौसम की फिजा बदली,
न दिनकर की दिशा बदली,
दिसंबर -जनवरी के बीच,
में किसकी दशा बदली?
युधिष्ठिर भी नहीं बदले,
न नटवरलाल बदला है,
सनातन मानने वालों,
फिर कैसे साल बदला है?
न आया कार्तिक अब तक,
न अब तक चैत्र आया है,
नज़ारे भी नहीं बदले,
'गुड़ी पड़वा' न भाया है।
इशारों ही इशारों में,
बस इस्तकबाल बदला है,
सनातन मानने वालों,
फिर कैसे साल बदला है?
दिशाएं भानु जब बदलें,
तो समझो साल नव आया,
फसल तैयार हो लहरें,
तो समझो साल नव आया,
टिकोरे आम के फिसलें,
तो समझो साल नव आया,
बुढ़ापे में भी दिल मचले,
तो समझो साल नव आया।
नहीं होली, नहीं खिचड़ी,
खाली भौकाल बदला है ,
सनातन मानने वालों,
फिर कैसे साल बदला है?
सुरेश मिश्र
9869141831