एक महत्वपूर्ण सामूहिक अपील में भारत भर के समस्त राज्यों से 600 से भी अधिक नागरिक संगठनों से संबंधित नागरिकों ने प्रधान मंत्री को एक खुला पत्र लिखने के लिए एक साथ आए हैं जिसमें पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के सख्त कार्यान्वयन के लिए तत्काल हस्तक्षेप का आग्रह किया गया है। यह अधिनियम एक महत्वपूर्ण कानून है जो यह सुनिश्चित करता है कि पूजा स्थलों के धार्मिक चरित्र को 15 अगस्त 1947 को बनाए रखा जाय जिससे देश में शांति और सद्भाव को बढ़ावा मिले। नागरिकों के पत्र में अजमेर शरीफ दरगाह, वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद, सम्भल में शाही जामा मस्जिद और मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद जौनपुर में अटाला मस्ज़िद जैसे प्रतिष्ठित स्थानों सहित मस्जिदों और दरगाहों के पुरातात्विक सर्वेक्षण के लिए छोटे समूहों द्वारा की गई मांगों की खतरनाक प्रवृत्ति पर प्रकाश डाला गया है।
अक्सर इस तरह के सर्वेक्षणों की अनुमति देने वाली न्यायिक कार्यवाहियों के साथ इन मांगों ने धर्म और विश्वास की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार के उल्लंघन के बारे में चिंता जताई है। पत्र में कहा गया है कि इस तरह की कार्यवाहिया न केवल मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाती हैं, बल्कि भारत की समृद्ध समन्वित संस्कृति और विरासत को भी कमजोर करती है जिसे विश्व स्तर पर सम्मानित किया जाता है। यह इस बात को रेखांकित करता है कि ये पूजा स्थल भारत की मिश्रित संस्कृति के अभिन्न अंग हैं जो एकता और सद्भाव के प्रतीक के रूप में कार्य करते हैं। पूजा स्थल अधिनियम का उल्लेख करते हुये पत्र सांप्रदायिक संघर्षों को रोकने और सामाजिक सद्भाव बनाए रखने में इसके महत्व पर जोर देता है। इस अधिनियम की परिकल्पना देश के सामाजिक ताने-बाने को स्थिर करने और धार्मिक विरासत पर विभाजनकारी प्रतिस्पर्धा को रोकने के लिए की गई थी। हालांकि इस कानून के लिए बढ़ती चुनौतियां सांप्रदायिक दोष रेखाओं को गहरा कर रही हैं और अशांति का खतरा पैदा कर रही हैं।
नागरिकों ने सर्वोच्च न्यायालय से आग्रह किया है कि वह स्वतः संज्ञान लेते हुए कार्रवाई करें और सभी जिला और सत्र न्यायालयों को निर्देश दे कि वे पूजा स्थल अधिनियम के प्रावधानों का अक्षरशः सम्मान करें और उन्हें बनाए रखें। वे प्रधानमंत्री से इस तरह की विभाजनकारी मांगों की स्पष्ट रूप से निंदा करने और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के खिलाफ दृढ़ रुख अपनाने का भी आह्वान करते हैं। इस खुले पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों ने इस मुद्दे पर नेतृत्व की चुप्पी पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। उनका मानना है कि देश के सभी नागरिकों के बीच विश्वास, सुरक्षा और कानून के शासन को बहाल करने के लिए एक स्पष्ट और मजबूत प्रतिक्रिया आवश्यक है। यह भारत के संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखेगा और इसके सभी लोगों के लिए न्याय, समानता और सद्भाव सुनिश्चित करेगा
लाल प्रकाश राही
सामाजिक कार्यकर्ता
दिशा श्रमजीवी अधिकार मंच