पितामह भीष्म का अपराध | Naya Savera Network
कृष्णकान्त जायसवाल, मुम्बई
इतिहास गवाह है कि द्वापर में सबसे शक्तिशाली योद्धा, चंद्रवंशी सम्राट शांतनु और मां गंगा के पुत्र देवव्रत थे जिसकी बचपन की पुरी शिक्षा ही देवलोक में हुई थी, गुरू वृहस्पति थे। देवताओं में धनुर्विद्धा के ज्ञाता अश्विनी कुमार और भगवान परशुराम गुरू थे, अजेय और दृढनिश्चयी और इच्छा मृत्यु धारी थे। अंतिम व्यक्ति जिसे चारों वेदों का पुरा ज्ञान था। उनके शस्त्र भंडार में सभी दिव्यास्त्र थे। भगवान श्रीकृष्ण के परमभक्त थे। ऐसे भीष्म पितामह को भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन द्वारा शरसैय्या पर मृत्यु दिलायी थी, क्यों?
भगवान श्रीकृष्ण ने पितामह भीष्म को उनके वध का तीन कारण खुद भीष्म को बताया था- भीष्म का प्रण "हस्तिनापुर की सुरक्षा और आजीवन ब्रह्मचर्य"- भगवान श्रीकृष्ण ने बताया था कि- "हे देवव्रत, हस्तिनापुर राजा धृतराष्ट्र नहीं है, हस्तिनापुर वहां की जनता है, देश है लेकिन खुद के प्रण का मतलब ही गलत निकाल लिया! जब किसी नारी का घोर अपमान हो रहा हो तो उसको देखने, सुनने के बाद भी क्षत्रिय धर्म के अनुसार शस्त्र न उठाना, महान पाप है। जब धर्म और अधर्म के बीच निर्णायक युद्ध हो रहा हो तो अधर्म के पक्ष से युद्ध करना, महान अपराध है।
महाभारत होने के सभी कारणों में यही 3 प्रमुख कारण थे। यदि भीष्म पितामह ने इनमें से किसी एक भी पाप में भागीदारी नहीं की होती तो महाभारत ही नहीं होता। अपराधी कितना भी बडा ज्ञानवान हो, कितना भी बडा शक्तिशाली हो, कितना भी बडा भक्त हो, कितना भी बडा आदरणीय हो लेकिन यदि उसने ये पाप किया है तो वह अपराध के दंड से नहीं बच सकता। यह बात तब भी शाश्वत था, सनातन था, आज भी है| इसे भली प्रकार समझ लेना चाहिए।