Article : संसद से सड़क तक शाब्दिक बाण तानों (तंज़) का प्रचलन बढ़ा- हम अवसाद में आए तो लक्ष्य भेदी का मिशन सफ़ल | Naya Savera Network

  • प्रशंसा, निंदा और तानों को सहज भाव में लेना मंजिल तक पहुंचने का मंत्र-यह तीनों ही क्षणिक प्रतिक्रिया मात्र
  • तानों तंज़ के जरिए ईर्ष्या, द्वेष या परपीड़ा में खुशी ढूंढने वालों की उपेक्षा करें तो वे खुद अवसाद ग्रस्त हो जाएंगे-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र 

नया सवेरा नेटवर्क

गोंदिया - विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में 25 नवंबर से 20 दिसंबर 2024 तक चलने वाले सेट सत्र में 26 जनवरी 2025 को संविधान के 75 वर्ष पूरे होने पर संसद में चर्चा 13-14 दिसंबर 2024 को संविधान पर चर्चा हुई जिसको मैंने चैनलों के माध्यम से देख के प्रथम प्रथम संविधान संशोधन से लेकर अनेक बातें पक्ष विपक्ष द्वारा कही गई जो एक दूसरे के ऊपर शाब्दिक बानो तानों तंज का प्रयोग कर गया जिसमें दोनों बचाओ मुद्रा में नजर आए इसलिए मेरा मानना है कि प्रशंसा, निंदा और तानों को सहज भाव में लेना मंजिल तक पहुंचने का मंत्र है। बता दें मानवीय स्वभाव की यह एक स्वाभाविक विशेषता रही है कि हम दूसरों की प्रतिक्रिया पर अत्यधिक निर्भर रहते हैं, यही हमारी आधुनिक डिजिटल युग में कमजोरी ज्ञात पड़ती है क्योंकि आज के प्रतियोगिता युग में अपने प्रतिद्वंदी को शाब्दिक पटखनी देने के लिए तानों तंज जैसे मजबूत कानूनी शेड प्राप्त हथियार और कोई नहीं है क्योंकि तानों और तंज से बिना का नाम लिए शाब्दिक बाण छोड़े जाते हैं और तीर ठीक निशाने पर लगा और लक्षित व्यक्ति या पार्टी अवसाद में आई तो लक्ष्य भेदी व्यक्ति का मिशन सफल हो गया समझो! और ताना या तंज ग्रहण करने वाले हम अवसाद में आ जाएंगे याने नुकसान हमें ही होगा। तानों, तंज की धमाचौकड़ी राजनीतिक व्यापारिक व्यवसायिक सामाजिक घरेलू और व्यक्तिगत स्तरपर भी खूब प्रचलित होते जा रही है क्योंकि इसमें नतो कोई टैक्स है और न ही कोई कानूनी झमेला!बस कर दिया!हालांकि आजकल हम मीडिया के माध्यम से राजनीतिक क्षेत्र में इसका उपयोग, प्रयोग होते हुए अधिक देख रहे हैं इसलिए आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से तानों तंज पर चर्चा कर उसका मुकाबला करने पर विचार करेंगे। 
साथियों बात अगर हम तानां मारने या तंज कसने कीपरिभाषा की करें तो, ताना मारना या तंज कस नें का मतलब होता है उल्टी बात या ऐसी बात बोलना जिससे सुनने वाले को बुरा लगे. जब कोई किसी का उपहास उड़ाता है तब वह तंज कसता है। जब कोई किसी को पसन्द नही करता है या उससे जलता है । तो इस तरह से उस व्यक्ति को अपने आप से निचा दिखाने के लिए या उसे दुखी करने या चिडाने के लिए कुछ ऐसी वैसी बात कह देते है जो स्पष्ट रूप से अर्थ प्रकट ‌‌‌नही करती है फिर भी उसका अर्थ चिडाने या दुखी करने जैसे कार्यो के लिए निकलता है ‌‌।इस तरह की बात करने को व्यंग्य करना कहा जाता है,और इसी तरह से जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के लिए किसी भी कारण से व्यंग्य करता है तो इसे ताना मारना कहा जाता है। व्यंग्य एक ऐसी विधा है जिसमें बातें कटाक्ष और हास्य का पुट लिये इशारों- इशारों में होती हैं। ग़ज़ल और शायरी इशारों की ही विधा है। किसी घटना पर रचनात्मक इशारा करना एक विधा है, लेकिन शायरी में व्यंग्य बड़े तरीके से किया गया है। 
साथियों बात अगर हम तंज कसने के नमूनों की करें तो, महान रचनाकर्ताओं नें खूब लिखा है, लीडरों की धूम है और फॉलोवर कोई नहीं, सब तो जेनरेल हैं यहाँ आख़िर सिपाही कौन है, कोई हिन्दू कोई मुस्लिम कोई ईसाई है सब ने इंसान न बनने की क़सम खाई है , कोट और पतलून जब पहना तो मिस्टर बन गया, जब कोई तक़रीर की जलसे में लीडर बन गया , कब उन आँखों का सामना न हुआ, तीर जिन का कभी ख़ता न हुआ, 56 इंच चौड़ा सीना, 15 लाख बैंक खाते में जमा करना इत्यादि। 
साथियों बात अगर हम मानवीय स्वभाव की करें तो, यह एक बहुत ही स्वभाविक विशेषता है मानवीय स्वभाव की, की हम दूसरों की प्रतिक्रिया पर निर्भर रहते है, अगर कोई हमारी प्रशंसा करता है तो, हम जिस बात के लिए हमारी प्रशंसा की है, उसको दोहराते है, जैसे कि किसी ने हमें सुंदर कहा तो, हम एक बार ज़रूर प्रशंसा करने वाले की नज़रों से आइने मैं देखते है, क्योंकि हम किसी की भी प्रशंसा को सच मानते है , और उसे देख कर या वैसा व्यवहार कर सत्यापित करते है। ठीक यही व्यवहार हम किसी के नकारात्मक व्यवहार के संदर्भ मैं भी करते है। कोई हमारी निंदा करे या ताने मारे या कटाक्ष करे तो हम तुरंत ही प्रतिक्रिया देते है, या तो ग़ुस्से मैं जवाब दे कर या विवाद कर के, लेकिन कई लोग अपने प्रति नकारात्मक प्रतिक्रिया का जवाब नहीं दे पाते है वे लोग अपना आत्म विश्वास खो कर अवसादग्रस्त हो जाते है।
साथियों इन सब से निपटने के लिए सबसे ज़रूरी है, हम कठपुतली न बने , प्रशंसा व निंदा दोनो को ही सहज भाव में ले , ये दोनो ही क्षणीक प्रतिक्रिया मात्र होती है। अगर हम दूसरों के व्यवहार से आहत होते है और यह बात जो हमको परेशान करना चाहते है,ताने मारते है तो हम उनके लिए ख़ुश होने के अवसर मुहेया करवा रहे है। हम उनकी मर्ज़ी और राय से जी रहे है। अगर कोई बार बार इस तरह का व्यवहार कर रहा है तो यह ज़रूर जानने की कोशिश करना चाहिए, कि आख़िर वो हमसे इस तरह का व्यवहार क्यों कर रहा है, ईर्ष्या,द्वेष या परपीड़ा में ख़ुशी ढूँढने का स्वभाव तो नहीं है , तो हम उन्हें ख़ुश होने का मोक़ा न दें , ख़ुद ही विश्लेषण करें, और जहाँ तक हो सके ऐसे लोगों की उपेक्षा करे,और उनकी किसी भी बात को महत्व न दे, हमारे इस तरह के व्यवहार से शायद कुछ दिनो बाद ताने मारने वाले लोग ख़ुद अवसादग्रस्त हो जाएंगे।
साथियों बात अगर हम उनके तानों के घेरे में आकर उन्हें बल देने की करें तो, जब हमने लोगों से तारीफें सुनकर अपने आप को गौरवान्वित और सुखी महसूस किया था, तभी हमने अपने जीवन की बागडोर उन्हें सौंप दी थी। हम उनके गुलाम हो गए। वे जब चाहें हमारी भर्त्सना करके हमें दुखी कर सकते हैं। हम अपने मालिक न रहे। वे पर्वत शिखर पर उठा सकते हैं तो फिर गहरी खाई में भी पटक सकते हैं। अहंकार दूसरों के ओपीनियन पर निर्भर करता है। इसलिये अभिमानी व्यक्ति सदैव चिंतित रहता है कि दूसरे मेरे बारे में क्या कहते हैं? क्या सोचते हैं? आपस में लोग मेरे विषय में पीठ पीछे क्या चर्चा करते हैं? मान-सम्मान देने वाले कहीं अपमान न करने लगें! 
साथियों किसी ने यदि मुझे सुंदर कह दिया तो मैंने स्वयं को सुंदर मान लिया। किसी ने यदि मुझे बुद्धिमान कह दिया तो मैंने स्वयं को बुद्धिमान मान लिया। यह सब मान्यता का खेल है। इसमें कुछ यथार्थ नहीं है।अतःडर लगा ही रहता है कि कोई अपना वक्तव्य न बदल दे। कहीं दोस्त दुश्मन न बन जाये, प्रसंशक निंदक न बन जाये। वरना अवसाद की गर्त में मूर्ति जा गिरेगी। हमने कभी खुद को प्रेम नहीं किया। स्वयं से लगाव और आत्म-सम्मान कहां से होगा? अभी तो हम आत्मा को जानते ही नहीं। अपनी चेतना को पहचानते ही नहीं। हम खुद को सिर्फ तन-मन के रूप समझते हैं, चेतन-तत्व स्वरूप नहीं समझते। चेतना आत्मा है,जो इस आधारभूत सत्य को जान लेता है, वह दूसरों के मंतव्यों के पार चला जाता है। उसे दूसरों से पूछने की जरूरत नहीं कि मैं कैसा हूं? कि मैं क्या हूं? परोक्ष ज्ञान की आवश्यकता न रहीं। अब वह प्रत्यक्ष स्वयं को पहचानता है।अहम् ब्रह्मास्मि!
साथियों ऐसा व्यक्ति अपने परमात्म-स्वरूप होने के आनंद में जीता है। उसकी आंतरिक शाश्वत शांति में बाहरी दुनिया की कोई निंदा-आलोचना प्रभाव नहीं डालती। वह संसार में अलिप्त ऐसे जीता है जैसे जल में कमलः मान-अपमान के पार। न वह अभिमान से उत्तेजित होता, न कभी अवसाद ग्रस्त होता। उसे जीने की ठोस बुनियाद मिल गई,आत्म सत्ता, जो सच्चिदानंद स्वरूप है। जो किसी का मंतव्य नहीं, ध्यान में अनुभव किया गया सत्य है। आत्म-बोध प्राप्ति के बिना अवसाद से बचना असंभव है। कोई इस गड्ढे में कल गिरा था, कोई आज गिर रहा है तो कोई कल गिरेगा। बड़े बड़े सिकंदर और हिटलर भी न बच सके।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि संसद से सड़क तक शाब्दिक बाण तानों (तंज़) का प्रचलन बढ़ा- हम अवसाद में आए तो लक्ष्य भेदी का मिशन सफल। प्रशंसा निंदा और तानों को सहज भाव में लेना मंजिल तक पहुंचने का मंत्र है, क्योंकि यह तीनों ही क्षणिक प्रतिक्रिया मात्र हैं। तानों के जरिए ईर्ष्या द्वेष या परपीड़ा में खुशी ढूंढने वालों की उपेक्षा करें तो वे खुद ही अवसादग्रस्त हो जाएंगे।

-संकलनकर्ता लेखक - क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यम सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र 9284141425

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