डाला छठ पूजा: भारतीय पर्व त्यौहार- वैज्ञानिक, दार्शनिक, सामाजिक, आर्थिक आधार: अखिलेश्वर शुक्ला | #NayaSaveraNetwork
नया सवेरा नेटवर्क
भारतीय ब्रत-पर्व- त्योहार पर जब हम सभी गम्भीरता पूर्वक चिंतन मनन अध्ययन की दृष्टि से देखते हैं तो पाते हैं कि मौसम (जाड़ा- गर्मी-बर्षा) एवं प्रकृति में ऋतुओं के साथ साथ खेत -खलीहान के अनाज-पैदावार से भारतीय पर्व-त्योहारों का बदलते मौसम के साथ गहरा रिश्ता है। इस तरह की बातों को हम भले हीं गम्भीरता से न लें, न समझें -लेकिन वैज्ञानिक अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण है।
जहां तक दार्शनिक सामाजिक आर्थिक आधार की बात की जाय तो प्रकृति प्रेम, स्वास्थ जीवन, सामाजिक सौहार्द, आर्थिक वितरण प्रणाली को मजबूत करने में इन पर्व त्यौहारों की अहम भूमिका होती है। जिसे हम बहुत आसानी से, सतही तौर पे नहीं समझ सकते हैं। इसके लिए हमें शोध परक दृष्टि का अवलंबन लेना होगा।
जहां तक छठी माता के ब्रत का विधान है,जो तीन दिन पूर्व से कुल चार दिन मनाया जाने वाला त्यौहार है। पहले ऐसा कहा जाता था कि यह बिहार प्रांत में मनाया जाता है। लेकिन इसके व्यापकता का अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि दिल्ली सहित कुछ प्रदेशों की सरकारें अवकाश घोषित करने से लेकर घाटों की साफ सफाई, सुरक्षा एवं प्रशासनिक स्तर पर सक्रिय भूमिका निभाने को मजबुर है। यहां तक कि पश्चिमी देशों में रह रहे भारतीय भी यथा संभव जलाशय की ब्यवस्था करके विदेशी धरती पर भी धूमधाम से "डाला छठ पूजा" करते देखे जा सकते हैं।
चार दिवसीय यह ब्रत कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को "नहाय खाय"अर्थात परिवार सहित स्वयं ब्रति के स्वच्छता , खान-पान में संयम एवं जलाशय में घाट की सफाई एवं पूजा का सिलसिला प्रारंभ हो जाता है। दुसरे दिन पंचमी तिथि को "खरना" अर्थात पुरे दिन ब्रत रहकर सायं में मीठा भात (खीर/जाऊर)खाकर अखण्ड "छठी माता का व्रत" उपवास प्रारम्भ हो जाता है। तीसरे दिन षष्ठी तिथि को व्रती महिलाएं/पुरुष जलाशय में खड़े होकर अस्ताचलगामी ( डुबते हुए) सूर्य को अर्घ्य देकर संतान, समृद्धि, सुख, शांति की का यहमना करते हैं। चौथे दिन सप्तमी तिथि को उदीयमान (प्रातः उगते सूर्य) को अर्घ्य देकर देकर घाट पर उपस्थित जनों को प्रसाद वितरित करके स्वयं पारन (अन्न ग्रहण) करते हैं।
वास्तव में चार दिवसीय इस व्रत की तैयारी हफ्ते भर पहले से शुरू हो जाती है। जहां तक इस व्रत में जिस "छ्ठी माता" की पूजा की जाती है वह सूर्य देव की बहन और बाबा भोलेनाथ के पुत्र कार्तिकेय जी की पत्नी हैं। जिन्हें सृष्टि एवं प्रकृति की देवी के रूप में जाना जाता है। प्रोफेसर अखिलेश्वर शुक्ला ने कहा कि ""छठ पूजा में डुबते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर प्रणाम करने की परम्परा से हमें सबक लेना चाहिए।सायद बदलते समाज के लिए उचित संदेश होगा।""।
शक्ति-उर्जा के श्रोत भगवान सूर्य को नमन के साथ शुभ "डाला छठ पर्व" पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं!!!
प्रोफेसर कैप्टन अखिलेश्वर शुक्ला
पूर्व प्राचार्य, विभागाध्यक्ष राजनीति विज्ञान
राजा श्री कृष्ण दत्त स्नातकोत्तर महाविद्यालय,जौनपुर।
Tags:
#DailyNews
#mumbai
#recent
Article
Daily News
Local News
National
Naya Savera
New Delhi
special article