#Poetry : कलेजे में मेरे रह कर कलेजे को न यूँ कोचो | #NayaSaveraNetwork



नया सवेरा नेटवर्क

कलेजे में मेरे रह कर कलेजे को न यूँ कोचो


कलेजे में मेरे रह कर कलेजे को न यूँ कोचो। 
बहुत पछताओगे आतंक के पंजे से मत नोचो।। 
अलग खुद से खुदी को क्यों समझते हो हे नादानी,
कभी अपना समझ कर देश के बारे में भी सोचो।।

अराजकता का पोषक जो दरिन्दा रह नहीं सकता।। 
मरेगा सच नहीं और झूठ ज़िन्दा रह नहीं सकता।। 
गलतफहमी में जीने की है आदत पड़ गई उसकी,
गगन में देर तक ठहरा परिन्दा रह नहीं सकता।।

डरा सहमा हुआ है कैद में गुमसुम परिन्दा है।। 
मरी है आत्मा उसकी न जाने कैसे ज़िन्दा है।।
पड़ा है आंख पे पर्दा दिखाई  कुछ नहीं देता,
नशे में चूर है बेखौफ़ कातिल है दरिन्दा है।।

रचा है विधि ने पहले से नया कुछ रच नहीं सकते।। 
बचोगे काल से कैसे असंभव बच नहीं सकते।। 
रचें षडयंत्र आतंकी विफल कर देगें मंसूबा,
है फौलादी इरादा हम कभी भी लच नहीं सकते।।

सूना सूना घर लगता है काट रहा है खालीपन।। 
जंगल जंगल भटक रहा है कैसा है ये पागलपन।। 
आंखों में है भरी उदासी, कैसे दिल को बहलाऊँ,
शायद जान मेरी ले लेगा मेरा ये दीवानापन ।।

सौगात खूबसूरत लाये हुए हैं वो।। 
बरसों के बाद लौट कर आये हुए हैं वो।। 
मुमकिन नहीं है भूलना, कैसे भुलादूं  मैं,
दिल में मेरी आँखों में समाये हुये हैं वो।।

आदत नहीं है जीने की हरगिज़ दबाव में।
छलकेगा भरा है जो जिसके स्वभाव में।
बढ़ती ही जा रही है विषमता गिरीश अब,
दुनियाँ ही जी रही है आज कल तनाव में।।

अंजाम से वाकिफ़ हैं खूब जान रहे हैं।
 मनमानी कर रहे हैं नहीं मान रहे हैं।। 
चक्कर लगा रहे हैं नांदा गली-गली‍,
 भटके हुए हैं लोग ख़ाक छान रहे हैं।।

सच कहूं तो सनातन पे मुझको गुमां।। 
खूबसूरत बहुत है हसीं चन्द्रमा।। 
हो रही आज अमृत की बरसात है-
निखरी-निखरी किरण है शरद पूर्णिमा।।

गिरीश, जौनपुर

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