#JaunpurNews : मांगी नाव न केवट आना, कहइ तुम्हार मरमु मैं जाना: कथावाचक मदन मोहन | #NayaSaveraNetwork
- श्री राम केवट प्रसंग सुनकर श्रोतागण हुए भावविभोर
बिपिन सैनी @ नया सवेरा
जौनपुर। शीतला चौकियां धाम में चल रहे पांच दिवसीय श्रीराम कथा के पांचवें दिन कथा समापन के दौरान काशी से पधारे मानस मर्मग्य कथावाचक मदन मोहन मिश्रा ने राम वनवास व राम केवट संवाद कथा की मनोहारी व्याख्यान किया।उन्होंने कहा कि यह केवट का प्रभु राम के प्रति विशुद्ध प्रेम ही था कि वनवास के चौदह वर्ष समाप्ति तक तक गंगा के किनारे बैठकर प्रभु श्रीराम की वापसी की प्रतीक्षा की थी। केवट पूर्व जन्म में क्षीरसागर में एक कछुआ था जो नारायण की चरण सेवा करना चाहता था परंतु लक्ष्मी जी और शेषनाग ने उसे चरण सेवा करने नहीं दी थी। आज लक्ष्मी सीता जी शेषनाग लक्ष्मण के रूप में गंगा किनारे उपस्थित हैं और उन्हें चिढ़ाते हुए केवट गंगा के किनारे प्रभु श्रीराम की चरण सेवा कर रहे हैं। केवट ने उतराई लिए बिना प्रभु श्रीराम को गंगा पार पहुंचाया परन्तु बदले में स्वयं को अपने परिजनों को और अपने पितरों के साथ-साथ आने वाली अपनी पीढ़ियों को भी भवसागर पार करवा दिया। केवट के यह कहने पर की प्रभु तुम्हारी और हमारी जाति एक ही है बस अंतर इतना है कि मैं लोगों को गंगा पार करवाता हूं और आप जीवात्माओं को भावसागर पार कराते हो। मैं गंगा सागर का केवट हूं और आप संसार सागर के केवट हो। नि:संदेह बनवासी केवट ने प्रभु राम की स्वर्ण मुद्रांक लौटकर यह संदेश दिया कि जब भक्त परमपद को पा लेता है तो वह संसार के माया बंधनों से मुक्त हो जाता है। कथा प्रसंग के दौरान ज्योतिषाचार्य कथावाचक डा अखिलेश चंद्र पाठक जी ने कहा कि जब आप समाज के लोगों की मर्यादा को सुरक्षित रखेंगे तभी आपकी मर्यादा सुरक्षित रह सकेगी।
भगवान राम 14 वर्ष वनवास के लिए सीता और लक्ष्मण के साथ गंगा घाट पर पहुंचे और केवट से गंगा पार करने के लिए नाव मागा तो केवट ने कहा, मैं तुम्हारे मर्म जान लिया हूं चरण कमलों की धूल के लिए सब लोग कहते हैं वह मनुष्य बना देने वाली कोई जड़ी है। पहले पांव धुलवाओ फिर नाव पर चढ़ाऊंगा। जिस परमात्मा परब्रम्ह से पूरी दुनिया मुक्ति भवसागर से पार करने के लिए मांगती है आज गंगा पार जाने के लिए परमात्मा केवट से मदद मांग रहे हैं जो सारे सृष्टि को तीन पग में नाप सकता है।क्या वह पैदल गंगा नहीं पार कर सकता। भगवान दूसरों की मर्यादा को समझते हैं। वैसे ही घाट की एक मर्यादा होती है। भगवान केवट के पास इसलिए आए कि वह कहना चाहते हैं कि हमें कभी छोटे लोगों के यहां भी जाना चाहिए।चौदह वर्ष वनवास के दौरान जंगल में रहते हुए श्रीराम निषादराज केवट, सबरी,जटायु,सुग्रीव से मिले। परमात्मा प्रेम भाव से सबसे मिले। जाती पाती ऊंच नीच से ऊपर उठकर ये संदेश देते है ।उनका संदेश ऊंच- नीच, छोटे-बड़े का भेद भाव नहीं नहीं करना चाहिए।समाज के सभी वर्ग के लोगों का सम्मान करे। इसी संदेश को अमर बनाने के लिए भगवान राम ने शबरी के झूठे बेर खाए उसकी कुटिया पर गए। इसीलिए कहा गया है कि बिना जात पांत के दीन दुखीयो की मदद करें।राम केवट कथा सुनने से हमें यह सीख लेनी चाहिए। कथा को भाव व प्रेम से सुनने वाले ही ज्ञान प्राप्त करते हैं।प्रभु राम के वन गमन का वर्णन करते हुए कहा कि तपस्वियों के वेश में प्रभु श्रीराम, माता सीता लक्ष्मण ऐसे प्रतीत होते हैं कि मानो बसंत ऋतु और कामदेव के बीच रति शोभित हो। प्रभु श्रीराम के लिए वनवास के दु:ख कष्टों का कोई महत्व नहीं। साधारण मनुष्य के लिए सुख दु:ख को कर्मों का फल बताया गया। कर्म के आधार पर सृष्टि है परंतु श्रीराम कर्मों से परे हैं। शेष जगत कर्म के बंधन में हैं। जगत में सत्य ही ईश्वर है और सत्य धर्म की मूल है। सत्य से बढ़कर दूसरी कोई गति नहीं। दान, यज्ञ, होम, तपस्या और वेद सभी का आश्रय भी सत्य ही है। सत्य पर आधारित धर्म कामधेनु के समान सभी अभिलाषाओं को पूर्ण करने वाला है। सत्य पर आधारित संतोष स्वर्ग का नन्दन कानन विद्या मोक्ष की जननी है। जबकि तृष्णा द्वेष वैतरणी नदी के समान नरक का द्वार है। आरती पूजन के उपरांत पांच दिवसीय कथा का समापन हुआ। इस मौके पर उपस्थित अमरनाथ वर्मा, शिव आसरे गिरी, रामआसरे साहू, मदन साहू, अनील साहू, सुरेंद्र गिरी ,मनोज मौर्य, विनय गिरी, अमित गिरी, सुरेंद्र त्रिपाठी, हनुमान त्रिपाठी समेत अनेक लोग मौजूद रहे।