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अशोक सिंह |
नया सवेरा नेटवर्क
पितरों को प्रसन्न करने के लिए पितृ पक्ष का समय सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। इस साल 17 सितंबर से शुरू हुए पितृ पक्ष 2 अक्टूबर को समाप्त होंगे।आज अमावस्या को पितृ तर्पण करके पितृदोष और पितर मुक्ति के लिए करे अवश्य ऊपाय। पितृपक्ष के दौरान पितरों के श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने से पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसके साथ ही पितरों का पिंडदान करने से पितृ दोष भी समाप्त हो जाते हैं। शास्त्रों में पिंडदान करने के लिए कुछ ऐसे प्रमुख तीर्थ स्थलों का भी उल्लेख किया है, जहां पितरों का पिंडदान करने से उन्हें मुक्ति मिलती है। कहते हैं कि इन स्थानों पर श्राद्धकर्म या पिंडदान करने से व्यक्ति को विशेष सिद्धियों की प्राप्ति होती है और उसके सारे मनोरथ पूरे होते हैं। हरिद्वार, बोधगया, कुरूक्षेत्र और काशी, जहां पितरों का पिंडदान, तर्पण या श्राद्ध करने से उन्हें मुक्ति मिलेगी और परिवार में बढेगी खुशियो का दौर। पितर धरती पर अपने कुटुंबजनो से मिलने कौवे के रूप में आते हैं ।घर के उच्च स्थान पर पितरो के निमित्त भोजन की थाली सजाकर उनके मन पसंद का भोजन व काली उरद की दाल के साथसाथ अन्य पकवान तैयार कर श्रध्दाभाव से रखना चाहिए या केले के पत्ते पर खाना देने चाहिए ।यह कार्य पूरी पवित्रता से करना चाहिए जिससे प्रसन्न होकर पितर अपनी संतान को सुख समृद्ध और धनधान्य से भरा रहने का आशिर्वाद दें।
पहला हरिद्वार में नारायणी शिला के पास पूर्वज़ों का पिंडदान किया जाता है। माना जाता है कि यहां पर पिंडदान करने से पितरों का आशीर्वाद हमेशा पिंडदान करने वाले पर बना रहता है, उसके जीवन में हमेशा सुख-शांति बनी रहती है और भाग्य हमेशा उसका साथ देता है।
गया तीर्थ सबसे प्रमुख श्राद्ध का स्थान बिहार राज्य की फल्गु नदी के किनारे मगध क्षेत्र में स्थित है ये सबसे प्राचीन और पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है, जहां अपने पुरखों का पिंडदान करने देश-विदेश से लोग आते हैं। विष्णुपुराण में इसे मोक्ष की भूमि कहा गया है। इसे विष्णु नगरी के रूप में भी जाना जाता है। कहते हैं यहां स्वयं विष्णु पितृ देवता के रूप में मौजूद हैं और स्वयं ब्रह्मा जी ने भी अपने पूर्वजों का पिंडदान यहीं पर किया था।
त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने भी अपने पिता और राजा दशरथ का पिंडदान यहीं पर किया था। कहते हैं यहां किया गया पिंडदान 108 कुल और सात पीढ़ियों तक का उद्धार करने वाला है। गया में इस समय 48 वेदियां हैं, जहां पर पितरों का पिंडदान किया जाता है। यहीं पर एक जगह है- अक्षयवट, जहां पितरों के निमित दान करने की परंपरा है ।यह स्थल विष्णुपद के पास ही स्थित है कहते हैं यहां किया गया दान अक्षय होता है। जितना आप दान करोगे, उतना ही आपको वापस भी जरूर मिलेगा।
तीसरा हरियाणा के कुरुक्षेत्र में पिहोवा तीर्थ पर अकाल मृत्यु वालों का श्राद्ध करना सबसे उत्तम माना जाता है और खासकर कि अमावस्या के दिन । जिनकी मृत्यु समय से पहले ही किसी एक्सीडेंट में या किसी शस्त्राघात से हो गई हो, उनका श्राद्ध यहां किया जाता है । महाभारत के अनुसार धर्मराज युधिष्ठर ने युद्ध में मारे गए अपने परिजनों का श्राद्ध और पिंडदान पिहोवा तीर्थ पर ही किया था। वामन पुराण में इस जगह के बारे में उल्लेख मिलता है कि पुरातन काल में राजा पृथु ने अपने वंशज राजा वेन का श्राद्ध यहीं पर किया था। कहते हैं यहां श्राद्ध कार्य या पिंडदान करने वाले व्यक्ति को श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति होती है, जो कि बुढ़ापे में उसका मजबूत सहारा बनती है।
चौथा काशी में पितरों को प्रेत बाधाओं से मुक्ति दिलाने के लिए श्राद्ध व पिंडदान किया जाता है। सात्विक, राजस, तामस- ये तीन तरह की प्रेत आत्माएं मानी जाती हैं और इन प्रेत योनियों से मुक्ति के लिए देश भर में सिर्फ काशी के पिशाच मोचन कुण्ड पर ही मिट्टी के तीन कलश की स्थापना की जाती है और कलश पर भगवान शंकर, ब्रह्मा और विष्णु के प्रतीक के रूप में काले, लाल और सफेद रंग के झंडे लगाए जाते हैं। इसके बाद श्राद्ध कार्य किया जाता है। यहां श्राद्ध करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है, इसीलिए धर्म और अध्यात्म की नगरी कहे जाने वाली काशी को मोक्ष की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। काशी में श्राद्ध करने वाले के घर में हमेशा खुशियों का आगमन बना रहता है।
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