नया सवेरा नेटवर्क
विगत दिनों गाँव से मुम्बई की तरफ 01026 स्पेशल बलिया से दादर की ट्रेन मुम्बई के लिए पकड़ा|सबसे पहले यह ट्रेन बनारस पहुँचने में ही 6 घंटे लेट हो गई|इसकी जानकारी यात्रियों को प्लेटफार्म पर बताई भी नहीं जा रही|मेरे जैसे ही अनेको यात्री वहीं बनारस स्टेशन पर छटपटा रहे हैं|कोई सुध लेने वाला नहीं|प्लेटफार्म पर सौंचालय की सुविधा नदारद|लोग को सौंच आये तो जायें कहाँ|इस तलीफ से महिलाओं को अधिक दो चार होना पड़ा|उसपर भी जो शारीरिक रूप से अक्षम थे,उनके लिए विशेष परेशानी वहाँ खड़ी थी|ये तो गनीमत रही कि एक ट्रेन आई और लोग डर डर के उसी में किसी तरह सौंच वाली समस्या से पार पाये|यदि ट्रेन लेट थी तो कम से कम सही टाईम बता देते तो लोग आराम गाह में जाकर आराम से रहते|जब ट्रेन आती तो लोग उसमें जाकर बैठते|लेकिन यह जहमत रेल विभाग नहीं उठाया|न ही जानकारी देने वाला ऐप ही सही जानकारी यात्रियों को दे रहा है|यात्री वहीं प्लेटफार्म पर हलकान हो रहे थे|कोई उनकी सुध लेने वला नहीं|इसे क्या कहा जा सकता है|यह रेल विभाग की मनमानी नहीं तो और क्या है|यात्रियों के साथ यह सौंतेला व्यवहार किसी भी तरह से उचित नहीं है|
लोग अपने गाँव से जब मुम्बई व अन्य महानगरों के लिए निकलते हैं,तो करीब करीब आर्थिक रूप से विपन्न रहते हैं|लोग उतना ही पाकेट खर्च लेकर निकलते हैं,जितने में वो अपनी मंजिल पर पहुँच जायं|क्योंकि सबको भरोसा रहता है कि मंजिल पर पहुँचने के बाद फिर हम अर्थ जुटा लेंगे|लेकिन यहाँ तो आधी व्यवस्था जो घर से लेकर निकले थे वहीं प्लेटफार्म पर ही समाप्त हो गई|उसपर से यह ट्रेन भारतभ्रमण कराने निकल पड़ी|लोग 36 से 40 घंटे की व्यवस्था करके घर से निकले थे|जिसमें से 10 घंटे की व्यवस्था वहीं लेटलतीफी के चलते प्लेटफार्म पर ही समाप्त हो गई|इसके बाद जो ट्रेन का रूट और समय टिकट पर था उसके विपरीत गाड़ी चलने लगी|लोगों की खाने पीने की व्यवस्था गड़बड़ा गई|लोगों को चिंता होने लगी कि जो किसी तरह ट्रेन से उतरेंगे तो अपने गंतव्य तक कैसे जायेंगे|क्योंक सारा पैसा तो यहीं मुफ्त के भारत भ्रमण में खर्च होता जा रहा है|इस ट्रेन में बहुत से बीमार यात्री भी थे,जो डॉक्टर का समय लेकर निकले थे अपने उपचार के लिए|यदि उनको कुछ हो जाता तो इसका जवाबदार कौन होता|उसकी भरपाई कौन करता|क्या इस विषय पर रेल विभाग सोंचा,नहीं सोंचा|लोग मरे या तड़पें,मेरे बाप का क्या?रेल विभाग का यह रवैया सर्वथा अनुचित है|इसपर सरकार कब ध्यान देगी|
यात्री यदि समय पर न पहुँचे तो यात्री का पैसा डूब जाता है|मगर ट्रेन समय पर न आये तो यात्रियों को कोई सहूलियत क्यों नहीं दी जाती|यात्रियों की गलती की सजा मिलती है तो रेलवे को भी करने गलती पर दंडित क्यों नहीं किया जाता|क्यों सरकारी कर्मचारियों को उनकी गलती की सजा नहीं दी जाती|सजा तो दूर उनकी गलती की भी सजा आम जनता से ही सरकारें वसूलती हैं|जो की आम जन के साथ दिनदहाड़े लूट व अत्याचार है|जब ट्रेन लेट हुई तो जनता को सही जानकारी देनी चाहिए|जिससे यात्री अपनी व्यवस्था सुनिश्चित कर लें|लेकिन ऐसा नहीं किया जाता|दूसरा यदि ट्रेन 24 घंटे या 36 घंटे जो भी उसका निर्धारित समय है,उससे 2 से 4 घंटे विलम्ब तक तो ठीक है|यात्री उतना सहन कर लेंगे|लेकिन यदि 10 से बारह घंटे लेट है तो रेलवे विभाग को रास्ते का मिनिमम खानपान की व्यवस्था करनी चाहिए|जिससे यात्रियों को परेशानी का सामना न करना पड़े|यात्री बेफिक्र होकर यात्रा करे|क्योंकि गलती जिसकी है सजा भी वही भुगते|वह क्यों पैसा देकर भी भुगते जो सभी नियमों का पालन करते हुए कोई गलती किया ही नहीं है|
जो उहापोह की स्थित से यात्री गुजरते हैं उसकी जवादारी किसकी है|कौन लेगा इसकी जवाबदारी,यह कौन सुनिश्चित करेगा|जो तकलीफें यात्री रेलवे विभाग की मनमानी से भुगते हैं,उसका दंड कौन भरेगा|क्या जनता के दुख दर्द से सरकारों को कुछ लेना देना नहीं बनता?इस समस्या से जनता को कैसे निजात मिलेगी|माना किसी कारण बस ट्रेन लेट हो ही गई है|तो उसकी सही जानकारी यात्रियों को क्यों नहीं दी जानी चाहिए|सही जानकारी देकर यात्रियों के दुख को कम किया जा सकता है|लेकिन ऐसा नहीं किया जा रहा,इसे क्या कहा जायेगा|तानाशाही और मनमानी ही कहा जायेगा|इस पर एक फिल्मी गीत की पंक्तियाँ बहुत सटीक बैठती हैं|
हूँ चाहे एम करूँ हूँ चाहे तेम करूँ,म्हारी मर्जी|
रेल विभाग यात्रियों के साथ वही कर रहा है|मेरी मर्जी है|मैं ट्रेन चाहे जैसे चलाऊँ,सही रूट पे चलाऊँ या गलत रूट पर,मेरी मर्जी|इसी को मनमानी और तानाशाही कहते हैं|रेलवे विभाग की कारस्तानी से गुलामी की बू आ रही है|वो जैसे मुगले आजम औरंगजेब हों,और आम यात्री रेलवे की गुलाम|
पं.जमदग्निपुरी
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