#Poetry: हिंदी! | #NayaSaveraNetwork
नया सवेरा नेटवर्क
हिंदी!
खून में हिंदी कण कण में हिंदी
हिय में सबके छाई है।
तुलसी इसे रस छंद से सींचे
आजादी दिलवाई है।
ऊँचे -ऊँचे शैल -शिखर से
मानों करती ठिठोली है।
रंग-बिरंगी काया इसकी
कोयल जैसी बोली है।
मानसून के बादल जैसी
प्यासे की प्यास बुझाती है।
बनकर के जल धारा हिंदी
बंजर में फूल खिलाती है।
हवा के जैसे ताजी रहती
संत कबीर की वाणी है।
है साम्राज्ञी स्वर सागर की
इतनी तो ये दानी है।
द्वार मोक्ष का खोले हिंदी
मदमाया भी हटाती है।
जिस कारण हम भू पे आए
जीवन सफल बनाती है।
रामकेश एम यादव
(कवि, साहित्यकार) मुंबई