#Poetry: काहें झुलनियां गढ़इल्या, उधार पिया | #NayaSaveraNetwork
नया सवेरा नेटवर्क
काहें झुलनियां गढ़इल्या, उधार पिया
छेड़ेला सुनार पिया न।
बीच रहिया म रोकइ,
हमके बार-बार टोकइ,
जब भी शुक्र-सोम जाई हम बजार पिया
छेड़ेला सुनार पिया न।
कऽ बताई अब कहानी,
हम शरम से पानी-पानी,
देखि-देखि हंसइं दुधई कहार, पिया
छेड़ेला सुनार पिया न।
बढ़ल बाटइ अस ढिठाई,
हमरी नापेला कलाई,
छुइ के पूंछइ, केतना बड़ा चाही हार पिया
*छेड़ेला सुनार पिया न।*
तोहरा परत बानी पइयां,
घरवा जल्दी आवा सइयां,
घर मा केउ बाटइ हमरा पहरेदार पिया
छेड़ेला सुनार पिया न।*
रहल पइसा न सजनवां,
काहें गढ़इल्या गहनवां,
काहें हमरा के बनइल्या कर्जदार पिया
छेड़ेला सुनार पिया न।*
तू तउ जा बस्या भिलाई,
हम बजरिया कइसे जाई,
बेल्हा माई अब लगावइं बेड़ा पार पिया
छेड़ेला सुनार पिया न।*
आ के जल्दी से चुकावा,
लजिया हमरी तू बचावा,
नाहीं हमहूं हेरब नदी अउ इनार पिया,
छेड़ेला सुनार पिया न।*
काहें झुलनियां गढ़इल्या तू उधार पिया,
छेड़ेला सुनार पिया न।
सुरेश मिश्र
9869141831
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