#Poetry: कहीं आसमां फ़ट रहे हैं | #NayaSaveraNetwork
नया सवेरा नेटवर्क
आप सभी को सुप्रभात🌼🫐
बात कुछ यूं है कि
आप सभी जानते हैं कि
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कहीं आसमां फ़ट रहे हैं
तो कहीं धरती धंस रही है
कहीं पानी का सैलाब उमड़ पड़ा है
तो कहीं धरती की कोख सूखी पड़ी है।
कहीं नदियां नालियों में तब्दील होती जा रही है
तो कहीं द्वीप समूह सागर के गर्भ में समाते जा रहे हैं।
वनस्पति जगत के अलावा पशु-पक्षी और कीट पतंग
भी विलुप्त होते नज़र आ रहे हैं।
हर तरफ हाहा कार मचा है।
मनुष्य का स्वार्थी स्वभाव व उसकी उपभोग करने की
प्रवृत्ति ने,
अब उसे स्वयंम के अस्तित्व को ही खत्म कर देने के कगार पर खड़ा कर दिया है।
कुछ मुट्ठी भर लोग जो
दूर दर्शी हैं।
देख पा रहे हैं, आने वाले
अंधकार युग को।
लगता है मानो सबकुछ हाथ से छूटा जा रहा है ।
क्या विनाश निश्चित है?
अगर ऐसा है भी,
तो क्या फिर भी हमें हाथ पर हाथ रखे निराशा के
अंधकार में डूब जाना चाहिए ?
यदि आप उनमें से हैं
जिनका उत्तर नहीं है!
तो फिर आप आशावादी हैं
और आप बिल्कुल सही जगह हैं क्योंकि अथर्वन फाउंडेशन
सिर्फ एक संस्था नहीं है,
यह एक मंच है
आप सब को यहां एकत्रित करने का
ताकि आप अपने विचार और अनुभव एक दूसरे से सांझा कर सके ।
हम मिलकर हर समस्या का
समाधान ढूंढ़े और
अपनी संतानों को एक
स्वस्थ और सुरक्षित वातावरण देने का
संकल्प ले सके ।
हम बचा सकते हैं
अपनी सिसकती नदियों को ,
हम बचा सकते हैं अपनी
बंजर होती भूमि को ,
हां हम बचा सकते हैं
अपने महासागरों और पर्वतों को भी 🏔️ 🏔️ 🌊 🌊
इच्छा शक्ति और
दृढ़ संकल्प से ये सब संभव है।
केवल वृक्षारोपण ही नहीं और भी बहुत कुछ करना बाकी है।
क्रान्ति का युग है ये,
उस अंधियारे के पहले की
चेतावनी की घड़ी है ये।
रास्ता ज़रा, लंबा और मुश्किल होगा पर
सोचिए ज़रा उस परिणाम का जिसके लिए आपने ये राह पकड़ी।
सुरवंदिता डा. कंचन मिश्रा
प्रयागराज।



