श्रीहरि वाणी:बहु आयामी कवि | #NayaSaveraNetwork


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श्री श्रीहरि वाणी का प्रथम काव्य संग्रह "दूर देश से आते आखर" का आरम्भ होता है "डायरी के पुराने पन्नों की उजास" से जिसमें श्रीहरिजी ईमानदारी से अपनी रचना यात्रा के आरम्भिक चरणों के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए कहा है कि "कविता लिखी नहीं जाती बल्कि लिख जाती है" और यह सच भी है।क्योंकि कविता सर्वदा हमारी संवेदनाओं के निकट होती हैं बल्कि यूँ कहूँ कि कविता हमारी संवेदनाओं से ही जन्म लेती है जोकि सम्पूर्ण सृष्टि से जुड़ने और उसे अपनत्व का बोध कराती है।कवि श्रीहरि की पुस्तक "दूर देश से आते आखर" में संग्रहित रचनाएँ कवि पूर्णतः संवेदनाओं से जुड़ी हैं। 


आमतौर पर हर युवा रचनाकार अपनी काव्य-यात्रा के आरम्भिक चरण में अधिकांशतः प्रेम,श्रृंगार,व्यंग्य,आक्रोश, देशभक्ति परक रचनाओं का ही सृजन करता है।इस पुस्तक में कवि श्रीहरि ने भी कुछ ऐसी ही शब्द रचना की है। 

कवि श्रीहरि की पुस्तक "दूर देश से आते आखर" में दो अध्याय हैं-"वातायन" और "आयाम"। वातायन में रचनाकार ने अपने १९७५ से १९९० के समय की अत्यन्त कोमल-कान्त रचनाओं का परिचय दिया है।कवि की कविताओं के मूल में राग है,अनुराग है।उनकी रचनाएँ जहाँ एक ओर हृदय में भक्ति और रागात्मक अनुभूति उत्पन्न करती है,वहीं दूसरी ओर क्रान्ति लाने की क्षमता भी रखती है।कवि ने अपनी सांस्कृतिक चेतना,संवेदनशीलता,सामाजिक चिन्तन का परिचय अपनी रचनाओं में अपने सीधे,सरल,आडम्बर रहित शब्दों के माध्यम से दिया है।
संकलन का आरंभ माँ शारदा को प्रणाम निवेदन के साथ-साथ भगवान श्री राम का अभिनंदन किया है।
"श्वेत वसना वीणा पाणि'माँ' कुछ कृपा कर दो,
बुद्धि विद्या के प्रकाश से,जग में ज्ञान भर दो"
***
"मधु का युग तो अब बीत चला,
करता मानव फिर क्रंदन है/
आओ राम राज्य के नायक,
हे राम! तुम्हारा अभिनंदन है।"
वर्तमान वातावरण में प्रकृति के प्रति उदासीन लोगों को "प्रकृति का रहस्य" समझाते हुए कहा है कि :- 
"फलता वृक्ष नहीं तो समझो/व्यर्थ हुआ उसका यह जीवन/कुछ यौवन में ही मुस्काकर/मादक गंध बिखेरे रहते/हर्षित जिन्हें देख हो पड़ता/लहरा उठता है मानव मन/समझो रहस्य प्रकृति का देखो, भरा हुआ क्या जीवन-दर्शन...." 
कवि ने "वातायन" में सभवतः स्मृतियों के गवाक्ष में झाँक कर उन कल्पनाओं को प्रस्तुत किया है जो पुरानी कॉपियों,डायरियों में अंकित थे।वे सहज भाव से लिखते हैं :-
"स्मृति के पलड़े पर,जीवन का सारा आकर्षण धर दूँ...
यदि मिल जाएँ बीते क्षण वे,मैं सर्वस्व समर्पण कर दूँ....."
बीते समय को याद करते हुए कवि कहता है:-"अन्तस फिर से ललक रहा है/बीते दिन दोहराने को.....प्रियतम तुम्हे बुलाने को"।
प्रेम-पगा युवा रचनाकार अपने मितवा को अपने सपनों के गाँव चलने को कहता है:-
"आ रे मितवा/चलें उस पार/
मिल बैठें/कुछ कह लें...सुन लें/दुनिया से दूर/सपनों के गाँव चलें/चंदा के गले डालें/चाँदनी के हार/आ रे मितवा/चलें उस पार।"
कवि का चिन्तन व्यापक है।"कहाँ शांति है" शीर्षक कविता में कहते हैं :-
"आज का मानव/शान्ति की खोज में/अशान्त हो रहा है/'धारा' को मोड़ रहा है/'बन्धनों'को तोड़ रहा है/शान्ति को खोज रहा है..."
"आयाम" अध्याय तक पहुँचते-पहुँचते कवि के शब्दों में मानो और अधिक सजगता और परिपक्वता आ जाती है।शृंगार और सौंदर्य के प्रति दृष्टि में परिवर्तन आ जाता है।प्रेम-परक शब्दों में कवि कहता है:-
"कैसे भूलूँ,क्या-क्या भूलूँ,सुधियों के घर आँगन में/उमड़-घुमड़कर,जब कब कैसे,याद तुम्हारी आती है/रोम-रोम में गन्ध संदली/इंद्रधनुष में लिपटा तन-मन/मधुरस उफनाती झीलों से/मदमाती अन्तस का कन-कन....."
श्रीहरि वो क़लम के सिपाही हैं जिन्होंने पत्रकारिता भी की,नाटक भी लिखे,निबंध और कतिपय पत्रिकाओं का संपादन कर हिंदी साहित्य को समृद्ध किया।किन्तु यायावरी प्रवृत्ति के कवि श्रीहरि अपनी कविताओं,लेखों,नाटकों को व्यवस्थित कर संग्रहित नहीं कर सके।वो कहते हैं "लिखा बहुत कुछ।मगर सँजो कर नहीं रख पाए।"विभिन्न क्षेत्रों में सृजन करते हुए श्रीहरि के भीतर का कवि अधिक जीवंत रहा।अनायास ही एक दिन ऐसा आया,जब इधर-उधर बिखरी पड़ी अपनी काव्य-रचनाओं को समेटकर पुस्तकाकार दिया।नाम दिया "दूर देश से आते आखर"।इसी शीर्षक कविता में वे कहते हैं:-
मैंने कब चाहा था,लिख दूँ/मन की बातें  सब से कह दूँ/मुश्किल में फँस जाते अक्सर/पन्नों पर लहराते 'आखर'....
संवेदनशील कवि श्रीहरि ने मुखौटे लगाकर दोहरी ज़िन्दगी जीने वालों को आगाह करते हुए आक्रोशित शब्दों में कहा है :-
"यह शक्ति-भक्ति,/'आसक्ति' के नकली मुखौटे...छल-बल से /सब कुछ बटोरने/महाशक्ति बनने की/ 'परमशक्ति'को चुनौती देने की /प्रवृत्ति छोड़ दो...."
देश मे व्याप्त द्वेष,हिंसा,नफरत,विद्रूपता को तिरोहित करना चाहता है कवि और कहता है "माँग लो क्षमा/निसर्ग से/जड़-चेतन सभी से/सह अस्तित्व,सामंजस्य/बनाने का करो वादा/सदैव स्मरण रखो-'विश्व बंधुत्व' की घोषणा।"
कवि का मन दिखावे के मुखौटे ओढ़े अनाचार, व्यभिचार, दुराचार,अविश्वास,अविवेक और मनोविकारों में लिप्त लोगों को देखकर व्याकुल हो उठता है।"तब रोती है विश्व चेतना" शीर्षक कविता में कवि के मन की अकुलाहट ही तो कहती है:-
"जब शब्दों के अर्थ बदल जाते हैं/जब अनीति को नीति का मुखौटा पहनाते हैं/जब पशुता को धर्म से मंडित करते हैं/तब विश्व चेतना रोती है।"
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"चीख रही है मानवता,जग का सत्यानाश हुआ है/
पतझड़ पाँव पसारे बैठा, कैद कहीं 'मधुमास' हुआ है......"(पिछड़ गया नादिर भी तुमसे)।
मशहूर शायर शीन काफ ने इन दोहरे चरित्र/मुखौटे वाले लोगों पर तंज करते हुए कहते हैं :-
"तू अकेला है बन्द है कमरा
अब तो चेहरा उतार कर रख दे" 

कवि ने न सिर्फ छंद बद्ध रचनाओं का सृजन किया है।बल्कि अतुकान्त कविताओं पर भी अपनी क़लम चलाई है।उनकी अतुकान्त कविताओं में भी शब्दों का चयन एवं संतुलन के साथ प्रवाह भी है और पठनीय भी है।भले ही वो 
"तब रोती है विश्व चेतना" हो या "मुखौटे" हो या फिर "हाँ..... यह मेरा घर है...." जैसी लम्बी कविता।हर अतुकान्त कविता को एक बार आरम्भ करने के बाद अंत तक पढ़े बिना नहीं छोड़ा जा सकता।
कवि श्रीहरि बहु आयामी कवि हैं जिन्होंने जीवन के सभी आयामों को अपनी क़लम से शब्द दिए हैं।
एक राजनीतिज्ञ,समाजसेवी,चिंतक और वरिष्ठ कवि आदरणीय केशरीनाथ त्रिपाठी ने अपनी रचना प्रक्रिया के बारे में कहा है:-
"अक्षर-अक्षर भाव भरे,सागर से गहरे
शब्द संजोकर मन से निकले,गीत हो गए।"
साथ ही कहते हैं:-
"शब्द मुखरित ही रहे हैं/भाव की अभिव्यक्ति बनकर/ज्यों सुधा बरसे सुधाकर से/कहीं से तृप्त होकर।"
ये पंक्तियाँ कवि श्रीहरि पर भी लागू होती हैं।जब वे कहते हैं "साहित्यकार मानवीय संवेदना के सर्वोच्च शिखर पर विचरण करती संचेतना का प्रतिनिधित्व करता है,सम्पूर्ण सभ्यता और संस्कृति उससे मार्गदर्शन की अपेक्षा रखते हैं।" 

जैसा कि कवि ने स्वयं लिखा है कि "दूर देश से आते आखर" उनका प्रथम काव्य संग्रह है।जिसमें उन्होंने अपनी काव्य-रचना-यात्रा की आरंभिक रचनाओं से लेकर 2020 तक की कविताओं को संकलित किया है।आशा है कवि श्रीहरि का नवीन काव्य-संग्रह और अधिक संप्रेषणीय कविताओं के साथ काव्य-प्रेमियों के बीच आएगा।
ईश्वर से प्रार्थना है कि आपकी काव्य-यात्रा इसी तरह अहर्निश चलती रहे।
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राजेन्द्र कानूनगो
सुपर रेसीडेंसी,
ब्लॉक "सी" फ्लैट १ए,
९८ए/६२ए, बी०एल०साहा रोड,
कोलकाता ७०० ०५३
चलत दूरभाष ७०४४० ८८९५२
मेल kanungorajendra@gmail.com


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