#Poetry: कइसे क घरवा चलाई परदेसिया | #NayaSaveraNetwork
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कइसे क घरवा चलाई परदेसिया
बढ़ल महंगाई बाटइ,घर में न पाई बाटइ,
कइसे क घरवा चलाई परदेसिया।
कुआं संग खाईं बाटइ,फंसी तोरि लुगाई बाटइ
हमरा क आवेला रोवाई परदेसिया।
पहिले जउ जनती निर्मोही बा सुगनवां,
तोहरी कसम हम ना अउती गवनवां,
टुटिगा सपनवां, सावन जस नैना बरसें,
केकरा क दरद बताई, परदेसिया।
हमरा करेजा फाटइ,लखी कवनउ डोलिया,
अगिया लगावइ हिय मा,हर दिन कोयलिया,
कमवा सतावइ,कागा कुछु ना बतावइ राजा,
होइ न जाए हमरी विदाई परदेसिया।
पोर-पोर टुटे,जियरा धक्क-धक्क बोलइ हो,
बहि-बहि कजरा हिया क राज खोलइ हो,
मनवा न धीरा धरे,बंडखोरी हिया करे -
बार-बार आवइ अंगड़ाई परदेसिया।
रतिया में तोहरा क देखलीं सपनवां,
हमरा क सजना झुलावेला झुलनवां,
घिरि आइल बदरा,भिगाइ गइला अंचरा हो,
अंसुवां से तकिया भिगाई परदेसिया।
केतना कही हम सइयां, केतना छुपाई हो,
तोहरे बिना अब कइसे दियना बुझाई हो,
बुझल-बुझल चेहरा,न बूझि पावइ हमरा केउ
भिलाई से होई न भलाई परदेसिया।
सूनी बा कलाई,कइसे मेंहदी रचाई हो,
ननदी टिपोरी बोलइ,गरियावइं माई हो,
आंखि डबडबाई हमरी,केउ के दिखाई नाहीं
समय हमके केतना सताई परदेसिया?
सुरेश मिश्र