#Poetry: “फरिश्ता मुहब्बत का” | #NayaSaveraNetwork
नया सवेरा नेटवर्क
“फरिश्ता मुहब्बत का”
दुनिया में प्रेमियों ने
अमिट प्रेम किया
अपनी प्रेमिकाओं से.....
प्रेम में ताजमहल बनाये गए
बड़े बड़े रंगमहल बनाए गए
किसी ने
प्रेम में खाना क्यूँ नहीं बनाया
माँ कहती है
खाना बनाना
अपने महबूब से
इश्क करने जैसा है
वो इश्क़ जो गंगा करती है
अपने साहिल के बाशिंदों से
जो स्वाति की एक बूँद करती है
अपने पपीहे से
जैसी एक साँवली सी साँझ
करती है
घर को लौटते खग कुल से
कथन सत्य है मां के
भूखे का पेट भरना भी मुहब्बत है
हां मुहब्बत है
तो मेरा किसान ,
मेरा मज़दूर
मुहब्बत का पैगम्बर क्यूँ नहीं
वो तो सबका पेट भरता है
मुहब्बत के नकली देवता ने
मुहब्बत के असली देवता को
कर दिया अस्तित्व विहीन
पर अब ऐसा नहीं होगा
मैं प्रतीक्षा करूंगा उस दिन का
जब नक्षत्र टकराएंगे
जब निरीह सभ्यता के संस्कार
हो जाएंगे चकनाचूर
जब दुनिया पलटेगी
और उस पलटी हुई दुनिया में
कर दूँगा घोषित
फरिस्ता मुहब्बत का
पसीना में लथपथ किसी किसान को
किसी मज़दूर को
बिना किसी परवाह के
कि कोई सिला न दे मेरा लम्बा उटंगा
गढ़ दूँगा नई इबारत
उसके नंगे छिले हुए पांवों में
चप्पल पहनाकर
पूज दूँगा पाँव
उस प्रेम के देवता के
बदल दूँगा आयाम
प्रेम के
मुहब्बत के
इश्क़ के
ताकि उल्टी पड़ी दुनिया में
सीधी रहे तमीज़
इंसानियत की
आदमियत की
और मुहब्बत की!!!
~अभिषेक सुमन (PhD स्कॉलर)
तिथि - १६ मई २०२२
स्थान - इलाहाबाद विश्वविद्यालय