#Poetry: कारगिल का अमर शहीद !!! | #NayaSaveraNetwork



नया सवेरा नेटवर्क

कारगिल का अमर शहीद !!!

– प्रो. डॉ सरोज व्यास

खुश थे सभी इंतजार बहुत किया था, मां-बाबा का सैनिक बेटा अफसर बन घर आया था।
मां बुदबुदाई जाने ना दूंगी अब तुम्हें, सास बने बिना ही, क्या मर जाने दोगे मुझे।
पिता का स्वपन साकार किया, अब मेरी बारी है, आंगन में मुझे अब तुम्हारी दुल्हन बेटे लानी है।।
बहना के गानों में गजब की खनक थी, देवर बनेंगे छोटे भैया मोहल्ले भर को यह खबर थी।
भैया हमें दोगे ना कंगना, तो दुल्हन ना देख पाओगे, संग रहेगी वह हमारे तुम देखते रह जाओगे।।
सेहरा सजा दूल्हा बना दुल्हन को ब्याह लें आ गया, मन ही मन वह खुश हुआ जीवन का आनंद आ गया।
मां को बहु बहना को कंगना अब दुल्हन की बारी थी, कैसी होगी जीवन संगिनी घूंघट उठाने की बेकरारी थी।।
कदम बढ़े मदहोश हुआ, जब नैन लड़े मृगनयनी से, मातृभूमि चित्कार उठी तुम आन बचाओ जल्दी से।
मां-बाबा संग बहना-भैया निकल आए सब आंगन में, तिलक लगाकर विदा किया उसकी सजी सुहागन ने।।
मातृभूमि की लाज बचाकर बेटे जब तुम आवोगे, माँ वसुंधरा के ऋण से तुम उऋण हो जाओगे।
सजी सेज फूलों की छोड़ सीमा पर जा पहुंचा था, दुश्मन से रण में लोहा मातृभूमि अपमान का लेना था।।
सीने में आग बाजुओं में जोश आंखों में सजनी का चेहरा था, टूट पड़ा शत्रु पर ऐसे जैसे काल उसका आ ठहरा था।
आपरेशन विजय को बना सफल चिर निद्रा में वह सो गया, गांव शहर आस-पड़ोस शहीद का घर हो गया।।
तिरंगे में लिपटा आकर अंतिम विदाई ले गया, मेहंदी चुनरी श्रृंगार प्रिया के जाते-जाते संग ले गया।
फेरो की कसम छुअन की सिहरन, जाते-जाते अबला को मुंह दिखाई दे गया।

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