रायगढ़ लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र | #NayaSaveraNetwork

  • तटकरे का रहेगा ताज या गीते की होगी वापसी


अजीत कुमार राय/जागरूक टाइम्स
मुंबई। रायगढ़ लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों में से एक है। इस सीट का जन्म परिसीमन के बाद हुआ। रायगढ़ लोकसभा सीट को कोलाबा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से अलग कर बनाया गया था। यह लोकसभा सीट रायगढ़ की 4 और रत्नागिरी जिले की 2 विधानसभाओं को मिलकर बनाई गई है। इनमें पेण, अलीबाग, श्रीवर्धन, महाड, दापोली और गुहागर विधानसभा शामिल हैं। पेण, अलीबाग और श्रीवर्धन विधानसभा क्षेत्र पहले पूर्व कोलाबा लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा थे। वहीं महाड विधानसभा पहले रत्नागिरी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र का हिस्सा हुआ करती थी। 

15 लाख 32 हजार से ज्यादा मतदाताओं वाली इस सीट पर साल 2009 में रायगढ़ लोकसभा सीट पर हुए पहले चुनाव में शिवसेना और कांग्रेस के बीच मुख्य मुकाबला हुआ था। कांग्रेस ने इस सीट से ए.आर. अंतुले और शिवसेना ने अनंत गीते को चुनावी मैदान में उतारा था। इस चुनाव में अनंत गीते को 4,13,546 वोट मिले थे। उन्होंने यह चुनाव 1,46,521 वोटों से जीता था। वहीं, कांग्रेस के ए.आर. अंतुले को 2,67,025 वोट मिले थे। 2014 के चुनाव में भी शिवसेना ने अनंत गीते को टिकट दिया और उन्होंने फिर से जीत दर्ज की। 2014 में उनका मुकाबला राकांपा के सुनील तटकरे से बहुत ही नजदीकी मुकाबला हुआ। तटकरे ने उन्हें कड़ी टक्कर दी। हालांकि, अनंत गीते ने यह चुनाव मात्र 2110 वोटों से जीता था।

उन्हें 3,96,178 वोट मिले थे। वहीं, सुनील तटकरे को 3,94,068 और पीडब्लूपीआई के प्रत्याशी भाई रमेश कदम को 1,29,730 वोट मिले। 20,362 मतदाता ऐसे थे जिन्होंने किसी को पसंद नहीं किया और नोटा का बटन दबाया। 2019 के चुनाव में राकांपा के सुनील तटकरे ने पिछले चुनाव का बदला लेते हुए शिवसेना अनंत गीते को 31,438 वोटों से पराजित किया। उन्हें 486,968 और अनंत गीते को 4,55,530 वोट मिले। लोकसभा चुनाव 2024 में एक बार फिर से इन दोनों के बीच एक बार फिर से मुकाबला है। अब देखना यह है कि मतदाता किसके पक्ष में मतदान करते हैं। मतदाताओं का झुकाव ही इस बात का निर्धारण करेगा कि तटकरे के सर पर एक बार फिर से विजय का ताज सजेगा या गीते की वापसी होगी।
 
  • छत्रपति शिवाजी महाराज की रही राजधानी
रायगढ़ संसदीय सीट ऐतिहासिक रूप से भी काफी महत्तवपूर्ण क्षेत्र है. इस क्षेत्र में मराठाओं ने काफी समय तक शासन किया. छत्रपति शिवाजी महाराज ने यहां की पहाड़ी पर किला बनवाया जो आज भी लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र है। यह अद्भुत किला पहाड़ी पर स्थित है इस तक जाने के लुए 1737 सीढ़ियों को चढ़ना पड़ता है। यहीं छत्रपति शिवाजी का राज्यभिषेक हुआ था। छत्रपति शिवाजी महाराज ने साल 1674 में इसे अपनी राजधानी घोषित किया था। यह मराठा साम्राज्य की पहली राजधानी बना। फिर यहां ब्रिटिश हुकूमत काबिज हो गई। अंग्रेजों ने किले को काफी नुकसान पहुंचाया।
 
  • गीते कराएंगे शिवसेना (उबाठा) की वापसी!
रायगढ़ लोकसभा सीट से पूर्व कैबिनेट मंत्री अनंत गीते एक बार फिर से चुनावी मैदान में हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में वे शिवसेना के टिकट राकांपा प्रत्याशी सुनील तटकरे को हराकर पुन: निर्वाचित हुए थे। तत्कालीन समय शिवसेना राजग गठबंधन की हिस्सा थी और 2014 - 2019 के दौरान वे नरेंद्र मोदी कैबिनेट में शिवसेना के कोटे से भारी उद्योग और सार्वजनिक क्षेत्र के केंद्रीय मंत्री बने रहे। वह पूर्व केन्द्रीय ऊर्जा मंत्री (अगस्त 2002 से मई 2004) भी हैं। वर्तमान में वह भारत के शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के टिकट पर चुनावी मैदान में दम ठोंक रहे हैं। वह अब तक भारतीय संसद में छह बार निर्वाचित हो चुके हैं। इससे पहले उन्होंने 11वीं से 14वीं लोकसभा के दौरान महाराष्ट्र के रत्नागिरी संसदीय क्षेत्र से प्रतिनिधित्व किया था। राष्ट्रीय राजनीति में महाराष्ट्र के बड़े चेहरे के रूप में पहचाने जाने वाले गीते के लिए इस सीट पर वर्तमान परिस्थितियों में शिवसेना (यूबीटी) को जीत के पथ पर वापसी कराने की बड़ी चुनौती है। 
 
  
  • जीत का क्रम बनाए रखना चाहेंगे तटकरे!
तटकरे हमेशा से ही महाराष्ट्र की राजनीति का हिस्सा रहे हैं। हालांकि पार्टी ने 2014 में उन्हें रायगढ़ से लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाया था, लेकिन वह शिवसेना के अनंत गीते से हार गए थे। वहीं, उनकी विधानसभा सीट उनके भतीजे अवधूत के पास चली गई। पांच साल बाद तटकरे ने फिर से लोकसभा चुनाव लड़ा और इस बार उन्होंने गीते को हरा दिया। वहीं, उनकी बेटी अदिति भी श्रीवर्धन से जीत गईं। इन सबके बावजूद तटकरे को राष्ट्रीय राजनीति उतनी पसंद नहीं है। तटकरे को जानने वाले कहते हैं कि उनके अंदर अहंकार बिल्कुल नहीं है और वह बेहद विनम्र हैं। साल 1980 में तटकरे ने राजनीति में एंट्री ली। 1995 में श्रीवर्धन विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और पहली ही बार में विधायक बन गए। वह यहां से 2014 तक प्रतिनिधित्व करते रहे। 2004 में उन्हें खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री, 2008 में ऊर्जा मंत्री और 2009 में वित्त मंत्री नियुक्त किया गया। इस सीट से तटकरे अपनी जीत के क्रम को बनाए रखने के लिए पूरी ताकत से जुटे हुए हैं।

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