#Poetry: संकोच क्या होता | #NayaSaveraNetwork
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नया सवेरा नेटवर्क
संकोच क्या होता
पूँछिये उस लड़के से
जो शहर की भीड़ से दूर
किसी हासिल की तलाश में
बैठा हुआ है सहमा
थरथराय
अपनी होने वाली प्रेमिका
के सम्मुख
बोलती बंद है
कुछ रहा नहीं सूझ
आया बोलकर जो दोस्तों से
कोरा झूठ कि
घर जा रहा हूँ
चला रहा है साइकिल
बढ़ रही हैं धड़कन
खो रही दिशाएँ
मन हो रहा है अनमन
इस पार वो है
उस पार वो है
बीच रखी है
एक प्लास्टिक की मेज
और धरा है
आकाश सा भारी
अधीरता से लबालब
धैर्य
बात निकली और
फिर सिमट गई कैरियर तक में
कितना दुःखद है आत्माभिव्यक्ति का
इस तरह से मरना
ये तो आत्मा का कत्ल हुआ
और कातिल है सारा ज़हान
कालिदास, भाष , शेक्सपियर
और ग़ालिब
रह जाएंगे खामोश
गर करना पड़े बात
कैरियर की
मुहब्बत के हासिल में
गर करना पड़े बात
नौकरी की
प्रेम की अभिव्यक्ति में
जिस समाज में
शुकून से इश्क़ का
इज़हार न हो
रचयिता को उसका अवसान कर देना चाहिए
अभिषेक सुमन

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