#BareliNews : बरेली कालेज को मिलना ही चाहिए केंद्रीय विश्वविद्यालय स्तर का दर्जा | #NayaSaveraNetwork
बरेली कालेज के कई महनीय प्राध्यापक बंधुओ के नाम की देश भर में है पहचान
नया सवेरा नेटवर्क
बरेली : वर्ष 1837 में स्थापित बरेली कालेज उत्तर भारत का सबसे प्राचीन कालेज है। शिक्षा के इतिहास में इस महाविद्यालय का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है। बरेली कालेज की ख्याति दूर-दूर तक फैली है और यह स्पष्ट है कि शिक्षण संस्थाओं की गरिमा भूमि भवन, परिसर, पिलर, ईट पत्थरों से परिलक्षित नहीं होती। वह बनती है शिक्षकों से क्योंकि ज्ञान, अनुभव और शिक्षण कला के मर्मज्ञ प्रध्यापक अपने विषय का ज्ञान देने के साथ-साथ छात्र को जीवन संग्राम में विजयी रहने की कला से परिचित कराते थे। कहा जाता है आचार्य अपने आचरण से सिखाता है। वह विद्यार्थियों का रोल माडल होता है।अब केंद्र सरकार को बरेली कालेज को विश्वविद्यालय का दर्जा देना ही चाहिए ।
लंबे समय तक बरेली कॉलेज में अंग्रेज प्रिंसिपल हुआ करते थे। बरेली कालेज के प्रथम प्राचार्य का नाम वेमन ट्रीगियर था। संभवता पंडित राम नारायण बरेली कालेज के प्रथम भारतीय प्राचार्य थे। फिर बाद में दत्त साहब, बनर्जी साहब, डा. आर. के. शर्मा, जिन्होंने कालेज में भवन निर्माण में इतनी सक्रियता रखी कि उन्हें बरेली कालेज का शाहजहां कहा जाता है, डा. जी. पी. मेहरोत्रा, डा. एम. एस. मेहरा, डा. पी. पी. सिंह, डा. आर. पी. सिह से वर्तमान प्राचार्य प्रो. ओ. पी. राय तक विस्तृत श्रंखला है। बीच बीच में स्थायी प्राचार्य न रहने की दशा में बरेली कालेज के अनेक वरिष्ठ आचार्यों ने कार्यवाहक प्राचार्य पद भार भी संभाला।
मैंने 1968 में बरेली कालेज के वाणिज्य विभाग में प्रवक्ता के रूप में प्रवेश किया था। उस समय कालेज में अनेक स्वनामधन्य आचार्य थे जिनकी विद्वता की धमक दूर तक थी। उस समय कनिष्ठ शिक्षक साथी वरिष्ठ शिक्षकों का बहुत सम्मान करते थे। वैसे तो सभी बड़े विभागों के बड़े बड़े स्टाफ रूम थे पर एक जनरल स्टाफ रूम था जिसें सभी शिक्षक लोग बैठा करते थे। विशेष रूप से वह लोग जिनके अपने पृथक स्टाफ रूम नहीं था। वहां वरिष्ठ शिक्षक साथियों के वार्तालाप सुनकर कालेज के इतिहास और वर्तमान वातावरण का परिचय भी मिलता था।
उस समय के नामी गिरामी प्रोफेसरों में अर्थशास्त्र के डा. जे. एन. सिंघल, जो कालान्तर में रूहेलखण्ड विश्वविद्यालय के कुल सचिव बने, प्रो. टी. एन. हजेला, प्रो. नवल किशोर, डा. डी. वी. एस. जौहरी, हिन्दी के डा. शंकर लाल मेहरोत्रा, डा. कुन्दन लाल जैन, डा. ज्योति स्वरूप, डा. रघुवीर शरण शर्मा, संस्कृत में डा. लक्ष्मी चन्द्र कौशिक, डा. कृष्ण कांत शुक्ल, दर्शन विभाग में एम. एन. रस्तोगी, जिया लाल अग्रवाल, फारसी में जलाली साहब, उर्दू में प्रो. उस्मान कुरैशी और जाहिद हसन उर्फ वसीम बरेलवी, राजनीति शास्त्र में प्रो. वी. डी. चटर्जी, एल. सी. अग्रवाल, समाज शास्त्र विभाग में प्रो. आर. एन. मुखर्जी, सुभाष चन्द्र सक्सेना, अशोक प्रधान, अंग्रेजी में पो. आर. ए. मिश्रा, प्रो. डी. सी. शर्मा, एम एच खान, प्रो. कृपानन्दन, गणित विभाग में प्रो. ए. के. दास गुप्त, प्रो. गंगा सिंह खन्ना, प्रो. विज्ञान स्वरूप गुप्त, रसायन शास्त्र विभाग में एल. डी. तिवारी, के. जी. कमठान, एम. एस. भटनागर, डा.महाशंकर मेहरा, भौतिक विज्ञान में डा. वी. के. सक्सेना, डा. एस. एल. पाण्डे, डा. एस. के. शर्मा, जन्तु विज्ञान विभाग में डा. एम. एम. गोयल, डा. आर. के. शर्मा, वाणिज्य विभाग में प्रो. हरिहर प्रसाद निगम, डा. एस. पी. गुप्ता, डा. के. सी. जायसवाल, डा. एन. एल. शर्मा आदि स्थाापित नाम थे।
कालान्तर में अन्य अनेक नियुक्तियां हुयी जिसके माध्यम से बहुत बड़े बड़े विद्वान विभिन्न विभागों में समय समय पर आये। संस्कृत में रामजीत मिश्र, डा. प्रमोद बाला, डा. राजेश अग्रवाल, प्रो. अर्चना गिरि, हिंदी में डा. भगवान शरण भारद्वाज, डा. वीरेन डंगवाल, डा. उमाकांत शर्मा, डा. प्रेम प्रकाश रस्तोगी अंग्रेजी में के. के. कपूर, वी. एन. एस. चौधरी, डा. सतीश मुंद्रा, डा. पूर्णिमा अनिल, वाणिज्य में डा. राजकुमार, डा. एम. एल. अरोरा, डा. उमेश चन्द्र शर्मा, डा. शंभू गिरि, डा. इंद्रेश चन्द्र कश्यप, डा. पी. सी. गुप्त, डा. एस. के. बैजल, डा. ए. के. मिश्रा, डा. पी. के. जोशी, डा. पी. के. अग्रवाल, डा. एस. के. शर्मा, डा. राजेश शर्मा, डा. गिरीश कुमार आदि की नियुक्ति हुयी। पूरे महाविद्यालय में नियुक्तियां पाने वाले शिक्षक साथियों की लिस्ट बहुत लम्बी है। बी.एड विभाग में डा. कुन्दन लाल शर्मा, सावित्री देवी शर्मा, मुकुन्दी देवी, डा. बालकृष्ण खरे, डा. वी. पी. सिंह आदि उल्लेखनीय नाम थे। कालेज के विकास में अन्य अनेक हस्ताक्षरों की भूमिका रही है। कुछ नामों ने कालेज में और कालेज के बाहर इतिहास रच दिया है।
इन हस्ताक्षरों में एक नाम प्रो. भोला नाथ जी का है जो विद्वता, विनम्रता और सरलता के पर्याय थे। हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी सभी भाषाओं में निष्णात थे। हिंदी में ही प्रो. शंकर लाल मेहरोत्रा, जो श्रीश मेहरोत्रा के दादाजी ओर रमेश मेहरोत्रा के पिता थे, बड़े हंसमुख और मिलनसार थे। उनका व्यवहार सभी के प्रति प्रेम भरा रहता था। डा. के. एल. जैन सभी को मुस्कराते हुये बड़े भाई का संबोधन देते थे। डा. ज्योति स्वरूप हिन्दी प्राध्यापक होने के साथ चीफ प्राॅक्टर, क्रीड़ा अधीक्षक आदि रूपों में कालेज के स्तंभ रहे। डा. वीरेन डंगवाल में साहित्यकार और पत्रकार दोनों का अद्भुत मिश्रण था। साहित्यिक अवदान के साथ वह अमर उजाला के संपादक और बाद में प्रबंधन से जुड़े रहे। डा. भगवान शरण भारद्वाज भाषाविद् थे। हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी पर अच्छी पकड़ थी। वह अकेले एक ऐसे उदाहरण है जो एम. ए. हिंदी के विद्यार्थी रहते हुए संस्कृत विषय की नियमित कक्षायें लेते थे। अद्भुत व्यक्तित्व के स्वामी थे। संस्कृत के डा. कृष्णकांत शुक्ल की ख्याति बहुत दूर तक थी। उनकी नियुक्ति एएमयू में हुयी पर बरेली कालेज के मोह से उन्हें कहीं जाने न दिया। (लखनऊ विश्वविद्यालय में भी नियुक्त हुये)। इतिहास विभाग के प्रो. चेत सिंह यादव, पी. आर साहनी के नाम उल्लेखनीय है। उनके शिष्य डा. जोगा सिंह ने इतिहास विभाग की अध्यक्षता के साथ चीफ प्राक्टर का गुरूतर दायित्व संभाला।
बरेली कालेज वाणिज्य विभाग के एक विभागाध्यक्ष प्रो. एन. के चडडा बहुत सुन्दर और सहृदय थे। वह कालेज हास्टल के वार्डन भी थे। वह इतने उदारमान थे कि अपने व्यक्तिगत सेवक डोरीलाल को प्रतिवर्ष वेतन वृद्धि कर देते थे और रिटायर होने के बाद जब चड्ढा जी फैजाबाद जाने लगे तो अच्छी खासी ग्रच्युटी के रूप में धन डोरी लाल को डी दिया। उसकी एक बेटी के विवाह का लगभग सारा खर्च उन्होंने उठाया। प्रो. आर. एन. भटनागर जिनके एक पुत्र आई. पी. एस. थे एक बैंक में थे और एक प्रो. विश्व प्रकाश भटनागर बरेली कालेज रसायन शास्त्र विभाग में सेवारत थे। प्रो. आर. एन. भटनागर भक्ति भाव और ज्ञान का खजाना थे। वह यदा कदा वाणिज्य विभाग में आकर रस वर्षा करते थे। मेरे ऊपर उनकी विशेष कृपा थी। अपनी नितान्त निजी अनेक डायरियां, जिसमें वैदिक ज्ञान का भण्डार था, उन्होंने मुझे यह कर उपहार में दी थी कि तू इसका लायक हकदार है यह मेरा सौभाग्य था।
वाणिज्य विभाग के विभागाध्यक्ष रहे डा. एस. पी. गुप्त वाणिज्य विषय के स्थापित विद्वान थे। उनके द्वारा लिखी गयी पुस्तकें सारे भारतीय विश्व विद्यालयों के वाणिज्य एवं प्रबंधन विभाग में पढ़ाई जाती है। उन्होंने डा. मेहरा के जाने और डा. पी. पी. सिंह के आने के बीच के काल में प्राचार्य पद को सुशोभित किया। डा. के. सी. जायसवाल मनोरंजक ढंग से कक्षाएं पढ़ाने के साथ कठोर अनुशासन प्रिय थे । कहते हैं जब जायसवाल जी छुूट्टी पर होते थे तो चपरासी घर से लाकर उनका स्कूटर खड़ा कर देता था कि ताकि लड़कों का यही आभास हो कि डा. जायसवाल यही कहीं है। डॉ जायसवाल अनुशासन का पर्याय थे। वाणिज्य विभाग के राज कुमार बहुत लोकप्रिय प्राध्यापक रहे हैं। उनके पढ़ाने का ढंग इतना आकर्षक होता था कि विद्यार्थी क्लास रूम में पूरी तरह मंत्र मुग्ध होकर उनका भाषण सुनता था। अंग्रेजी विभाग के कृपानन्दन बड़े जबरदस्त किस्सागो थे। सर्वोदय के अनुयायी थे और राजनीति में सक्रिय थे। बालजती के ही एक और प्रोफेसर थे विष्णु नारायण सक्सेना। अपनी बातों में इतना रस भर देते थे कि श्रोता मंत्र मुग्ध हो जाते थे। डा. आर. के. शर्मा जाने माने शिक्षाविद् हैं। प्राणी विज्ञान के सिद्ध आचार्य होने के साथ वह अपनी अनुशासन प्रियता के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने अपनी क्षमताओं से बरेली में अनेक संस्थाओं का कायाकल्प किया है। बी. बी. एल पब्लिक स्कूल, जी. आर. एम., एस. आर इंटरनेशनल, खण्डेलवाल कालेज आदि संस्थानों की स्थापना और संचालन में उनकी भूमिका रही है। उन्होंने बरेली के कई स्कूलों में गुलदाऊदी की प्रदर्शनी भी कराई। बरेली कालेज में विश्वस्तर पर स्थापित शायर जाहिद हसन उर्फ वसीम बरेलवी उर्दू विभाग की शोभा रहे हैं। उन्होंने नगर बरेली और बरेली कालेज का नाम रोशन किया है। एक युग में बरेली कालेज में कैप्टन वी आर के टण्डन, चीफ प्राॅक्टर का दबदबा रहा है। प्रो. उस्मान उर्दू के हैड थे और महाविद्यालय में खेल कूद के संचालन और आयोजन में उनकी प्रमुख भूमिका रहती थी।श्री राम सेवक शर्मा पुस्तकालय के प्रमुख थे। पर महाविद्यालय शिक्षणोत्तर कार्यक्रमों में उनकी प्रमुख भूमिका रहती थी। उनका रौब और रूतवा ऐसा था कि लोग उनके चैम्बर में घुसने से घबराते थे। प्रो. के. जी. कमठान, मेजर महेश, मेजर ज्योति स्वरूप, डा. आर. सी. अग्रवाल, रामसेवक शर्मा, महादेवन सीरिया की बहुत प्रभावशाली टीम थी जो कालेज के शिक्षणोत्तर कार्यक्रमों के संचालन में सक्रिय भूमिका का निर्वाह करती थी। कालेज में प्रतिवर्ष दीक्षांत समारोह होता था जिसमें बड़े बड़े विद्वानों का आशीर्वाद मिला है। समारोह के लिए बनाये गये भव्य हाल मुशायरा और कवि सम्मेलन होता था जिसमें राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय स्तर के शायर और कवि भाग लेते थे।
शैक्षिक और साहित्यिक कार्यक्रमों के संचालन में अंग्रेजी विभाग की डा. पूर्णिमा अनिल की भूमिका सराहनीय है। हिंदी अंग्रेजी और उर्दू पर अच्छी पकड़ के साथ उनकी भाव संप्रेषण शैली अद््भुत है। सफल प्राध्यापक होने के साथ राजनीति में भी उन्होंने कदम रखा और बरेली के महापौर पद का चुनाव भी लड़ा। राजनीति के दांव पेच से अनभिज्ञ होने के कारण वह चुनाव तो हार गयी पर शहर में अपनी एक पहचान बना ली। प्रो. आर. ए. मिश्र और प्रो. डी. सी. शर्मा ;जिन्हें अनुशासनप्रियता के कारण लोग हिटलर कहा करते थे, डा. ओम प्रकाश, प्रो. मुन्द्रा आदि दिग्गज आदि इतिहास पुरूष थे। डा. डीके.सक्सेना विश्वस्तर के स्थापित पर्यावरण विद् है।
बरेली कालेज का अतीत ही शानदार नहीं रहा उसकी प्राचार्य श्रंखला में आज भी अन्तरराष्ट्रीय स्तर के शोधकर्ता और आचार्य विद्यमान है। दर्शन शास्त्र में डा. ए सी त्रिपाठी हिन्दी हिंदी में डा. राहुल अवस्थी, राजनीति शास्त्र में प्रो. वन्दना शर्मा वाणिज्य में डा. भूपेन्द्र सिंह विज्ञान संकाय में प्रो. आलोक खरे ललित कला में डा. पम्पा गौतम का नाम है। प्रो. राजेन्द्र सिंह, प्रो. सुन्दर सिंह, प्रो. शालिनी सिंह, प्रो. शुभ्रा कटारा, प्रो.रितु अग्रवाल, डा. वी. पी. सिंह आदि उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं। प्रो. आलोक खरे चीफ प्राक्टर होने के साथ समाजसेवी के रूप में भी कार्यरत है और विविध विषय पर अनेक पत्र पत्रिकाओं में उनके लेख प्रकाशित होते रहते हैं।
प्राचार्यों की श्रंखला में मेरी स्मृति में चार नाम उल्लेखनीय है। जब हम लोगों ने महाविद्यालय में कदम रखा तो डा. गुरू प्रसाद महरोत्रा प्राचार्य थे। अपने नाम के अनुरूप गुरूतर ज्ञान से समृद्ध है कि नहीं उनका तकिया कलाम था। उसके बाद डा. महाशंकर मेहरा आये। मृदुभाषी, व्यावहारिक और कालेज के लिये पूरी तरह समर्पित। चेहरे पर मुस्कान, उत्तम वस्त्र सज्जा और टीम को साथ लेकर चलने का अद्भुत कौशल। इसके बाद डा. पी. पी. सिंह आये। उन्होंने महाविद्यालय में शोध की अलख जगाई। अनेक नये विभाग खोले। महाविद्यालय ने 150 वीं जयंती उन्हीं के कार्यकाल में मनायी। उसके बाद डा. आर. पी. सिंह का आगमन हुआ। वह उत्सव प्रिय और गतिमान व्यक्तित्व के स्वामी है। कालेज में नाना प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन किया अनेक राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठियां आयोजित हुयी। महाविद्यालय की वार्षिक पत्रिका अभिव्यक्ति का शानदार प्रकाशन हुआ। कालान्तर में उच्च शिक्षा आयोग के सदस्य और मेरठ, जोधपुर तथा अजमेर विश्वविद्यालय के कुलपति भी बने। वर्तमान में एक महाविद्यालय और पैरा मेडीकल कालेज के बनाने और संचालित करने में व्यस्त हैं।
वर्तमान में प्रो. ओ. पी. राय प्राचार्य हैं । अवकाश प्राप्ति के कारण अब कालेज की गतिविधियों से संपर्क नहीं रहता। पर यह ज्ञात है कि विधि विशेषज्ञ प्रो. ओ. पी. राय विधिवत संचालन कर रहे हैं और कालेज को प्राणवन्त बनाये हुये है।
बरेली कालेज के दो प्रोफेसर उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के सदस्य रहे हैं। वाणिज्य विभाग के प्रो. जाहिद खान और वनस्पति शास्त्र विज्ञान के प्रो. सोमेश यादव इस पद को सुशोभित कर रहे हैं। प्रो. सोमेश यादव कवि भी है हाल ही में उनकी पुस्तक गाहे वगाहे का विमोचन हुआ था। ललित कला संकाय की प्रो. मंजू सिंह ने अपने कार्यकाल में उल्लेखनीय कार्य किया है। ललित कला विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डा. राजेन्द्र सिंह पुण्डीर उत्तर प्रदेश ललित कला संस्थान के अध्यक्ष और दर्जा राज्यमंत्री रहे है। ललित कला विभाग के संस्थापक अध्यक्ष डा. एस. बी. एल. सक्सेना सचमुच में इतिहास पुरूष रहे हैं। उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखी और लगभग 100 छात्रों की पी. एच. डी. उपाधि के निर्देशक रहे। रूटा के महासचिव और अध्यक्ष भी रहे। शिक्षक नेता के रूप में उनकी अच्छी ख्याति रही। उनके सभी बेटे विभिन्न प्रांतों में उच्चशिक्षा में प्राध्यापक बने हुये हैं। कालेज में क्रीड़ा विभाग में पहले महादेव सीरिया और बाद में सुशील सीरिया का महत्वपूर्ण योगदान है। सुशील सीरिया ने महाविद्यालय स्तर पर अनेक खेल और खिलाड़ी प्रदान किये हैं।
बरेली कालेज के शिक्षाविदों में एक अति उल्लेखनीय नाम प्रो. पी. के. जोशी जी का है। वाणिज्य विभाग में प्रवक्ता पद से शुरूआत करके वह रूहेलखण्ड और जबलपुर विश्वविद्यालय में नियुक्त हुये। और कालांतर में मध्यप्रदेश तथा छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष बने। संघ लोक सेवा आयोग के सदस्य और बाद में अध्यक्ष बने। वहां से रिटायर होने के बाद एन टी ए के अध्यक्ष नियुक्त हो गये हैं। इतने बड़े बड़े पदों पर आसीन रहने के बाद भी अति विनम्र और मृदुभाषी प्रो. पी. के. जोशी बरेली कालेज की अमूल्य निधि है। बरेली कॉलेज में जनार्दन आचार्य एवम कार्यालय प्रभारी रहे स्वर्गीय आदिल अंजुम का भी विशेष योगदान रहा।
रूहेलखण्ड विश्वविद्यालय की स्थापना में बरेली कालेज के प्रो. एम. एन. रस्तोगी, प्रो. कृपानन्दन, प्रो. जाहिद खान, चौधरी नरेन्द्र सिंह की भी बड़ी भूमिका रही। पर विश्वविद्यालय की स्थापना से बरेली कालेज का कोई हित नहीं हुआ। अच्छा होता कि इस बरेली कालेज परिसर को ही विश्वविद्यालय का दर्जा मिलता या उसे संघटक कालेज बना दिया गया होता। सरकार अब भी कालेज को विश्वविद्यालय का स्तर देकर कालेज को देय सकती है। यह विद्यामंदिर मां सरस्वती की साधना का केन्द्र बने ऐसी शुभकाॅमना है। (नोट = स्वर्गीय प्रो. एन. एल. शर्मा का जीवित रहते लिखा था यह आलेख) निर्भय सक्सेना की कलम बरेली की से साभार।
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