#Article: क्लारा स्वैन: बरेली में मिशन हॉस्पिटल बनाकर रचा था नया इतिहास | #NayaSaveraNetwork

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-रणजीत पांचाले


नया सवेरा नेटवर्क

अमेरिकन डॉ. क्लारा स्वैन ने बरेली नगर में डेढ़ सौ साल पहले एशिया का पहला महिला अस्पताल स्थापित तो किया। साथ ही  इसी बरेली शहर में भारत का महिलाओं का पहला नर्सिंग स्कूल शुरू करके एक नया इतिहास भी रचा था। क्लारा महिला रोगियों की सेवा के लिए पूर्णतया समर्पित थीं। बरेली शहर उन्हें आज तक नहीं भूला है। उनके नाम पर सिविल लाइन्स में बना 'क्लारा स्वैन मिशन हॉस्पिटल' जिसे लोग संक्षेप में 'मिशन अस्पताल' कहते हैं, आज भी उनकी स्मृति को अक्षुण्ण रखे हुए है।

क्लारा स्वैन का जन्म 18 जुलाई 1834 को न्यूयॉर्क में हुआ था। वे आयरिश मूल के अमेरिकन पिता जॉन तथा अमेरिकन माँ क्लेरिसा स्वैन की दसवीं सन्तान थीं। परिवार में सबसे छोटी थीं इसलिए सबका दुलार उन्हें ख़ूब मिला। माँ ने अच्छे संस्कार दिए। बचपन से ही उनका मन सेवा भाव से भरा हुआ था। फूलों और जानवरों से बेहद लगाव था। परिवार के सदस्यों और परिचितों की बीमारी के समय उनकी ख़ूब सेवा किया करती थीं। स्कूली शिक्षा के दौरान ही उनके मन में डॉक्टर बनने का विचार आ गया था। जब वे डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी करने जा रही थीं, तभी उन्हें भारत की  महिलाओं की सेवा करने का प्रस्ताव मिल गया।

बरेली स्थित गर्ल्स ओरफानेज की इन्चार्ज डी.डब्लू. थॉमस ने अमेरिका में अपनी एक परिचित मिशनरी जेटी ग्रेसी को 1869 में एक पत्र लिखा था जिसमें वहाँ से एक महिला डॉक्टर को भारत भेजने की अपील की थी। श्रीमती ग्रेसी ने फिलाडेल्फिया के वुमेन'स मेडिकल कॉलेज से इस बारे में पूछताछ की। उन दिनों क्लारा स्वैन संसार में महिलाओं के इस पहले मेडिकल कॉलेज में पढ़ रही थीं। उन्होंने अमेरिका की एक मिशनरी सोसायटी के माध्यम से भारत जाने का प्रस्ताव सहर्ष स्वीकार कर लिया। अपनी डिग्री लेकर वे 3 नवम्बर 1869 को न्यूयॉर्क से भारत के लिए रवाना हो गईं। दो माह से अधिक समय की समुद्री-यात्रा के बाद वे बम्बई पहुँचीं और 20 जनवरी 1870 को बरेली आ गईं। 

बम्बई से बरेली तक के सफर में उन्होंने नौ सौ सालों से शोषित और पददलित राष्ट्र की पहली झलक देखी। महिलाओं की दुर्दशा देखकर उनका हृदय द्रवित हो उठा। उन्हें पता लगा कि इस देश में अकुशल महिलाएँ प्रसव कार्य कराती हैं। बड़ी संख्या में महिलाएँ पर्दे में रहती हैं और कुछेक परिवारों में बीमार महिलाओं को पुरुष चिकित्सकों को दिखाना अच्छा नहीं समझा जाता है। 

थकी-माँदी क्लारा स्वैन बरेली पहुँची तो अपने लिए निश्चित कमरे में आकर गहरी निद्रा में सो गईं। सुबह उठीं तो देखा कई महिलाएँ और युवतियाँ उन्हें बधाई देने के लिए कमरे के बाहर खड़ी हुई हैं। उन्होंने एक दुभाषिये की मदद से अपने स्वागत के लिए सबके प्रति आभार व्यक्त किया। पहले ही दिन उन्होंने 14 मरीज़ों को देखा। 'डॉक्टर साहिबा' के आने का समाचार धीरे-धीरे पूरे शहर में फैल गया। उन्हें शहर के घरों से बुलावे आने लगे। एक साल में उन्होंने 1225 मरीज़ देखे तथा 250 होम विजिट्स कीं जो कि उन दिनों एक बड़ी संख्या थी।

 दुनिया की पहली वुमेन मेडिकल मिशनरी क्लारा स्वैन को अब बरेली में एक सुव्यवस्थित महिला अस्पताल की आवश्यकता अनुभव होने लगी। मिशन प्रॉपर्टी के बराबर नवाब रामपुर की काफ़ी ज़मीन थी। क्लारा इस ज़मीन को खरीदना चाहती थीं। लेकिन नवाब साहब मिशनरीज़ को बिल्कुल पसंद नहीं करते थे। सन 1871 में एक दिन क्लारा स्वैन और डेविड वेसली थॉमस उनसे रामपुर जाकर मिले। जब मि. थॉमस ने उन्हें बताया कि क्लारा एक सुशिक्षित डॉक्टर हैं और बरेली में महिलाओं की काफी सेवा कर रही हैं, तो वे बहुत खुश हुए। कुछ सकुचाते हुए मि. थॉमस ने उनसे अपनी ज़मीन का एक भाग बेचने का अनुरोध किया ताकि क्लारा स्वैन उस पर बच्चों और महिलाओं के लिए एक अच्छा अस्पताल बनवा सकें। इस पर दरियादिल नवाब मोहम्मद कल्ब अली खान ने फौरन कह दिया- 'ले लीजिए, ले लीजिए, यह आपकी हुई! इस नेक काम के लिए मैं यह ज़मीन आपको खुशी से देता हूँ।' उन्होंने 40 एकड़ भूमि दान कर दी। 

 इस ज़मीन पर एक पुरानी कोठी भी बनी हुई थी जिसके ऊपरी हिस्से में क्लारा रहने लगीं और नीचे के भाग में उनकी डिस्पेंसरी शुरू हो गई। मई 1873 में एक नई डिस्पेंसरी बिल्डिंग बन गई। जल्द अस्पताल भी बन गया और जनवरी 1874 में यहाँ मरीज़ भर्ती किए जाने लगे। क्लारा स्वैन ने बरेली आते ही लड़कियों को नर्सिंग-प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया था। 10 अप्रैल 1873 को यहाँ के नर्सिंग स्कूल से लड़कियों का पहला बैच ग्रेजुएट होकर निकला। 

 क्लारा दक्षिण एशिया में आने वाली पहली क्वालीफाइड मिशनरी महिला डॉक्टर थीं। बरेली में उनकी उपस्थिति इस नगर और आस-पास के स्थानों के लिए एक 'ईश्वर प्रदत सुअवसर' था। उनके आने से क्षेत्र में महिला चिकित्सा का परिदृश्य बहुत बदल गया। डॉ क्लारा अब सारा दिन व्यस्त रहती थीं। कभी अस्पताल में मरीज़ देखतीं, कभी होम विज़िट पर जातीं और कभी लड़कियों को नर्सिंग की ट्रेनिंग देती थीं। उनका अस्पताल इतना प्रसिद्ध हो गया कि भारत के अन्य राज्यों, यहाँ तक कि बर्मा (अब म्यांमार) जैसे दूरस्थ स्थानों से भी मरीज़ यहाँ आने लगे। अत्यधिक काम के कारण वे कमज़ोर और अस्वस्थ रहने लगीं। उन्हें आराम की ज़रूरत महसूस हो रही थी। मार्च 1876 में वे अमेरिका लौट गईं। 

तीन साल बाद 6 नवंबर 1879 को वे पुनः भारत लौट आईं और कुछ समय पश्चात बरेली के अपने अस्पताल में रोगियों की चिकित्सा करने लगीं। पाँच सालों तक यहाँ अपनी सेवाएं देने के बाद वे खेतड़ी रियासत की रानी की निजी चिकित्सक बन गईं। मार्च 1896 में क्लारा अमेरिका लौट गईं। यद्यपि वे दिसंबर 1906 में तीसरी बार फिर भारत आई थीं लेकिन इस बार उनकी यात्रा का मुख्य उद्देश्य अपने ईसाई धर्म से सम्बन्धित कार्यों में भाग लेना था। भारत में विभिन्न स्थानों के अलावा वे कुछ दिनों बरेली में भी रही थीं और मार्च 1908 में अमेरिका वापस चली गई थीं। सन 1910 में क्रिसमस के दिन उनका कैस्टाइल (न्यूयॉर्क) में निधन हो गया।

क्लारा एक चिकित्सक ही नहीं, अपितु एक शिक्षिका, एक लेखिका, एक समाज सुधारक और भारत में महिला चिकित्सा आन्दोलन की प्रणेता भी थीं। उन्होंने बरेली में कई लड़कियों को पढ़ना-लिखना भी सिखाया था। उन दिनों लड़कियों को पढ़ाने के लिए उनके परिवारों को तैयार करना ही, किसी पहाड़ को तोड़ने से कम नहीं था। उन्होंने भारत-प्रवास के समय अमेरिका में अपने सम्बन्धियों को जो पत्र लिखे, वे उनके एक उच्च कोटि की लेखिका होने के प्रमाण हैं। उन्होंने भारतीय महिलाओं को स्वच्छता के प्रति जागरूक करके तथा लड़कियों के विवाह की उम्र 12 वर्ष तक करवाने के लिए संघर्ष करके समाज सुधारक की भूमिका भी निभाई थी। उल्लेखनीय है कि उस समय 5 साल की उम्र में ही बहुत सी लड़कियों के विवाह कर दिए जाते थे। एक महिला चिकित्सक के रूप में उन्होंने 'ट्रेन्ड' सैट किया। उनसे प्रेरणा लेकर बाद में बहुत-सी महिलाएँ चिकित्सक बनीं। यहाँ तक कि बम्बई की आनन्दीबाई जोशी ने 1886 में उसी वुमेन'स मेडिकल कॉलेज से ग्रेजुएशन किया जहाँ से क्लारा स्वैन ने ग्रेजुएशन किया था। आनन्दीबाई विदेश से मेडिकल डिग्री लेने वाली पहली भारतीय महिला थीं।

क्लारा द्वारा स्थापित 'क्लारा स्वैन हॉस्पिटल' दिनोंदिन उन्नति करता गया। सन 1908 तक तो यह पूरी तरह महिला अस्पताल बना रहा, लेकिन उसके बाद पुरुष भी यहाँ भर्ती किए जाने लगे। सन 1942 में इसे जनरल अस्पताल बना दिया गया। तब से लेकर 1960 तक इसका काफी विस्तार हुआ। अस्सी के दशक तक इस अस्पताल ने ख़ूब ख्याति अर्जित की। लेकिन नब्बे के दशक में दवाओं के बढ़ते दाम, अच्छे डॉक्टरों के लिए भारी वेतन, फंड की कमी और चिकित्सा-क्षेत्र में ज़बरदस्त प्रतिस्पर्धा का इस अस्पताल पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने लगा। परन्तु पिछले कुछ वर्षों में यह पुनः बरेली का एक प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थान बन गया है। यह देखकर खुशी होती है कि जो पौधा क्लारा स्वैन ने बरेली में लगाया था, वह एक विशाल वृक्ष के रूप में आज भी हमारे बीच मौजूद है।

न्यूयॉर्क के प्रकाशक 'जेम्स पॉट एंड कम्पनी' ने 1909 में क्लारा स्वैन की एक पुस्तक 'अ ग्लिम्प्स ऑफ़ इंडिया' प्रकाशित की थी जो क्लारा द्वारा भारत-प्रवास के दौरान अपने परिजनों-मित्रों को समय-समय पर लिखे पत्रों पर आधारित है। इस पुस्तक में क्लारा ने बरेली शहर के हृदयस्थल पर बने कुतुबखाना (पुस्तकालय) के चित्र के अलावा बरेली के उस समय के मुख्य बाज़ार का भी चित्र दिया है। क्लारा की पुस्तक से तत्कालीन भारत के सामाजिक वातावरण को समझने में काफ़ी मदद मिलती है। (निर्भय सक्सेना)



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