#Article: विलक्षण व्यक्तित्व के धनी आचार्य देवेंद्र 'देव' ने लिखे हैं कई ग्रंथ | #NayaSaveraNetwork


उपमेंद्र सक्सेना  @ नया सवेरा नेटवर्क

अपनी विलक्षण प्रतिभा एवम व्यक्तित्व के धनी आचार्य देवेंद्र देव  का नाम बरेली ही नहीं देश के साहित्य जगत में भी बहुत आदर के साथ लिया जाता है। किसी साहित्यकार का व्यक्तित्व उसकी साहित्यिक रचनाओं में ही विद्यमान रहता है। देवेंद्र देव ने जीवन को जीवन बनाने वाले आदर्शों व सिद्धांतों के प्रत्येक घटक को अपनी कविता में जिया है। देवेंद्र देव समाज को मार्गदर्शन दे रहे हैं और हमारी भावी पीढ़ी उन के जीवन दर्शन से प्रेरणा लेकर अपना मार्ग प्रशस्त कर सकती है। अच्छे साहित्यकार के साथ ही बहुत अच्छे इंसान हैं। इनके व्यक्तित्व की सहजता व सरलता उनकी रचनाओं में परिलक्षित होती  है।

   रूहेलखंड क्षेत्र में पीलीभीत  जनपद के पूरनपुर नामक उप नगर के सामान्य से स्वर्णकार परिवार में छ: अक्टूबर 1952 में जन्मे देवेंद्र  के मन में कविता के बीज उनके पूर्व जन्म के संस्कारोंवश बाल्यकाल से ही थे। ननिहाल- यात्रा के दौरान बस में गीत गा-गाकर अपनी पुस्तकें बेचने वाले किसी कवि से प्रभावित होकर कक्षा- पाँच में उन के द्वारा लिखी गई रचना 'मुरारी श्याम सुंदर तुम, मेरे घनश्याम सुंदर हो/ कभी गोकुल में आओ/ प्रभो! माखन चुराओ' इस बात का प्रमाण है।  देवेंद्र देव को प्रारंभिक शिक्षा व संस्कार स्थानीय आर्य पाठशाला से मिले। उन्होंने उच्चतर शिक्षा पूरनपुर के ही जूनियर हाईस्कूल में पब्लिक इंटर कॉलेज में पूरी की। हाई स्कूल बोर्ड परीक्षा के मध्य अकस्मात् पिता की छत्र-छाया हट जाने के पश्चात् ट्यूशंस करते हुए अपनी आगे की पढ़ाई पूरी की और बोर्ड की दोनों परीक्षाएँ प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कीं।



    इसी मध्य वह वैवाहिक बंधनों में बँध गए। वर्ष- 1969=1970 में बी. ए. एम. एस. की प्रवेशिका में टॉप करके भी आर्थिक विपन्नता और पारिवारिक स्थिति के कारण देवेंद्र देव मेडिकल कोर्स पूरा नहीं कर सके। वापस घर लौट आए। तत्पश्चात गन्ना, राजस्व, मंडी समिति और फिर नगर पालिका परिषद् में नौकरी करते हुए  बी. ए. और संस्कृत से एम. ए. व्यक्तिगत छात्र के रूप में उत्तीर्ण किया। संस्थागत विद्यार्थी के रूप में विद्यालय की सांस्कृतिक गतिविधियों में सक्रिय प्रतिभाग करते रहे।

   अपने किसी संबंधी के विवाह- गीत को सुधारते -सुधारते  देवेंद्र वर्ष-1971 में आंचलिक भाषा के तत्कालीन कवि  रामचंद्र लाल 'मुँहतोड़' के माध्यम से काव्य -गुरु और सनेही मंडल के समर्थ रचनाकार प्रज्ञाचक्षु महाकवि राम भरोसे लाल पांडेय 'पंकज' के संपर्क में आए जिन्होंने मानस- पुत्र की भाँति उनकी आजीविका की व्यवस्था करके कविता के संस्कारों में विधिवत् दीक्षित किया। कविवर्य राजेंद्र 'भानु' से स्नेहिल संरक्षण और राजेंद्र मोहन दीक्षित से 'देव' उपनाम मिला। यही से प्रारंभ हुई देवेंद्र देव की काव्य- यात्रा।



    पूरनपुर में पंकज द्वारा प्रणीत अखिल भारतीय कवि- सम्मेलनों की विगत् पच्चीस वर्षीय परंपरा के ध्वजा-वाहक बने और सन्-1972 में 'पंकज' जी के स्वर्गारोहन के पश्चात् भी  सन् -1989 तक अखिल भारतीय काव्यायोजन भी करवाए। महाकवि पं. वंशीधर शुक्ल, कुं. चंद्र प्रकाश सिंह, आशुकवि पं. देवेंद्र नाथ शास्त्री, डॉ. आनंद, बलवीर सिंह 'रंग', पं. गोपाल प्रसाद व्यास, निर्भय हाथरसी, बालकवि बैरागी, डॉ. माहेश्वर तिवारी, सोम ठाकुर, डॉ. बृजेंद्र अवस्थी, डॉ. लक्ष्मी शंकर मिश्र 'निशंक' आदि का देवेंद्र देव को स्नेह- सान्निध्य मिला। इसके बाद में क्षेत्र में पनपी उग्रवादी घटनाओं के चलते कवि- सम्मेलनों की वह प्रथा समाप्त हो गई।

       स्फुट गीत, ग़ज़ल व छंद आदि लिखने के अतिरिक्त कवि देव जी ने वर्ष- 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध पर आधारित ऐतिहासिक प्रबंध- काव्य 'बाँग्ला- त्राण' की रचना सन् -1976 में की और उसकी टंकिट पांडुलिपि लेकर तत्कालीन अपदस्थ प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को भेंट करने के उद्देश्य से उनके बुलावे पर, उनसे मिलने दिल्ली गए। अपने परिवार के साथ बैठकर 'बाँग्ला-त्राण' का एक सर्ग सुनने के बाद इंद्रा गांधी  ने कहा कि चूँकि वह इस (उस) समय सत्ता में नहीं हैं, इस कारण वह ग्रंथ वर्तमान (तत्कालीन) प्रधानमंत्री को समर्पित करना उचित होगा। इस पर देवेंद्र देव ने उनसे कहा कि विश्व के मानचित्र पर पाकिस्तान और बाँग्लादेश के बीच जो विभाजन की रेखा खिंची है उसका श्रेय मात्र इंदिरा गांधी को है, वर्तमान प्रधानमंत्री को नहीं, इस कारण उनके ग्रंथ के समर्पण की अधिकारिणी केवल आप ही हैं और रहेंगी। देवेंद्र देव  के इस उत्तर से प्रसन्न होकर इंदिरा गांधी ने अपने ऑटोग्राफ और सहचित्र देकर समय की प्रतीक्षा करने का आश्वासन देकर उनको विदा कर दिया। तत्पश्चात् इंदिरा गांधी के सत्ता में वापस लौटने पर कवि देवेंद्र ने पुस्तक के संबंध में उनसे पत्राचार किया किंतु वह ब्यूरोक्रेसी की हृदयहीनता की भेंट चढ़ गया। कविगत स्वाभिमानवश उन्होंने फिर इंदिरा गांधी  से मिलने दिल्ली जाना उचित नहीं समझा।


वर्ष -1982 में देवेंद्र देव  के काव्य- गुरु 'पंकज', अपने महाकाव्य 'हिंदूपति महाराणा प्रताप' के प्रकाशित न हो पाने का दुःख लिए स्वर्ग सिधार गए। तब देवेंद्र देव ने प्रण किया कि जब तक वह अपने काव्य- गुरु का महाकाव्य प्रकाशित नहीं कर लेंगे, तब तक 'बाँग्ला- त्राण' प्रकाशित नहीं कराएँगे। यह उनके, गुरु के प्रति श्रद्धा, निष्ठा, भक्ति और समर्पण का ज्वलंत उदाहरण है। उन के अथक प्रयासों से वर्ष -1997 में 'हिंदूपति महाराणा प्रताप' महाकाव्य प्रकाशित हुआ जिसका विमोचन वर्ष-1998 में संस्कार भारती के राष्ट्रीय कला- साधक संगम के अवसर पर नागपुर के मुख्य मंच पर सिने अभिनेता नाना पाटेकर, मुकेश खन्ना, रामानंद सागर, शेखर सेन व अनूप जलोटा आदि की उपस्थिति में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सर संघसंचालक पूज्यवर प्रो. राजेंद्र सिंह उपाख्य 'रज्जू भैया' ने अपने कर -कमलों से किया था। उसके पश्चात् वर्ष-1999 में इनका ऐतिहासिक प्रबंध काव्य 'बांग्ला-त्राण' प्रकाशित हुआ जिसका लोकार्पण उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल आचार्य विष्णु कांत शास्त्री ने राज भवन, लखनऊ में किया था। वर्ष -2005 में इनकी  पत्नी के आकस्मिक लोकांतरण से टूटे इस कवि द्वारा रचित शोकांतिक उपालम्भात्मक छंद -संग्रह 'कथाएँ व्यर्थ हो गयीं' को देवेंद्र देव के  संवेदनशील बच्चों ने अपनी माता की प्रथम बरसी पर प्रकाशित किया और उसी वेदना से अभिभूत कवि देव  द्वारा लिखे गए  शोकांतिक गीतों का संग्रह 'अश्रु ढले गीत बने' वर्ष -2008 में उनके बच्चों ने ही प्रकाशित किया।

अखिल विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक श्री राम शर्मा आचार्य की जन्म- शताब्दी पर श्री देव द्वारा रचा दूसरा विशद  महाकाव्य 'गायत्रेय' देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय योग महोत्सव में 20 देशों के सैकड़ों प्रतिनिधियों के मध्य डॉ. प्रणव पांड्या द्वारा विमोचित हुआ था और यही महाकाव्य- कृति आधार बनी स्वामी विवेकानंद की साध्र्दशती पर  सर संघचालक डॉ. मोहन राव भागवत की आग्रही प्रेरणा पर लिखे गए तीसरे महाकाव्य 'युवमन्यु' के प्रणयन का जिसे गत् 19 जून 2013 को संस्कार भारती, दिल्ली के तत्वावधान में भागवत जी ने ही अपने कर- कमलों से ग्रंथ के प्रकाशक परमार्थ निकेतन के स्वामी चिदानंद मुनि की उपस्थिति में कांस्टीट्यूशन क्लब के खचाखच भरे हाल में बड़ी भव्यता के साथ लोकार्पित किया।

कानपुर के मानस संगम समारोह में महीयसी महादेवी वर्मा के सभापतित्व में और कुं. चंद्र प्रकाश सिंह, राष्ट्रकवि पं. सोहनलाल द्विवेदी, डॉ. विद्या निवास मिश्र, आचार्य मुंशी राम शर्मा 'सोम', डॉ. कुबेर नाथ राय, डॉ.कमलारत्नम्, डॉ. निशंक जैसे विद्वानों की उपस्थिति में महादेवी जी ने देवेंद देव की काव्यपाठ की प्रशंसा करते हुए कहा कि ब्रह्मा जी के  तो चार मुख हैं , चार दिशाओं से सुना जा सकता है किंतु हमारे बेटे को तो कई दिशाओं से सुनने के लिए लोग लालायित हैं । महादेवी जी के उक्त कथन को आपने उस समय चरितार्थ होते हुए देखा जब वर्ष- 2007 को दिल्ली में हुए प्रथम राष्ट्रीय कवि संगम में प्रख्यात सिने संगीतकार रवींद्र जैन की उपस्थिति में देवेंद्र देव ने माइक पर माँ वाणी की वंदना शुरू की तो रजिस्ट्रेशन काउंटर पर पंजीकरण रुक गए थे, लोग आपसी बातें बंद कर अपने कक्षों से निकल आए थे और सभागार में पिनड्रॉप साइलेंस बनाकर मंत्रमुग्ध से लोग उन्हें  सुन रहे थे। देवेंद्र देव की राष्ट्रीय- मंच की ख्याति का वह विलक्षण अवसर था। हल्दी घाटी के रचयिता कविवर्य श्याम नारायण पांडेय की आर्थिक विपन्नता के कारण उनके उपचारार्थ राशि जुटाकर भेजने पर पांडेय जी द्वारा भेजी गई आशीष की पाती आज भी देवेंद्र देव  के पास सुरक्षित है।
     अब तक आचार्य देव की 'बाँग्ला-त्राण', 'गायत्रेय' और 'युवमन्यु' (स्वामी विवेकानंद), 'हठयोगी नचिकेता' (कठोपनिषद का नायक), 'राष्ट्र- पुत्र यशवन्त' (बासठ के भारत- चीन युद्ध का सैन्य वीर), 'बली -पथ' ( डॉ. हेडगेवार), 'इदं राष्ट्राय' (गुरु गोलवल्कर,पं. राम प्रसाद बिस्मिल), 'कैप्टन बाना सिंह' ( कारगिल युद्ध विजेता), 'अग्नि -ऋचा' (डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम ), दस महाकाव्यों सहित कुल अठारह कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। इनके अतिरिक्त छ: अन्य 'शंख महाकाल का' ( महाकाव्य पं. श्री कृष्ण 'सरल'), 'लोक- नायक' (बाबू जयप्रकाश नारायण) और 'बिरसा मुंडा' ( छत्तीसगढ़ का क्रांतिवीर), 'उत्तर मानस' ( संपूर्ण रामकथा) तथा 'महायोगी गोरखनाथ' नामक सात महाकाव्यों सहित लगभग पंद्रह अन्य प्रकाशनाधीन हैं। इतनी अल्पावधि में सर्वाधिक सत्रह महाकाव्य रचकर कवि के रूप में आचार्य देवेंद्र देव ने हिंदी विश्व पटल पर नए आयाम स्थापित किए हैं। इन कृतियों में उनके  चिंतन के बहुआयामी रूप देखे जा सकते हैं। इसको लेकर गोल्डेन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में उनको सादर नामित किया गया है। साहित्य- सेवाओं के लिए देवेंद्र देव को अब तक अनेक संस्थाओं द्वारा विभिन्न उपाधियों से अलंकृत एवं पुरस्कृत किया जा चुका है जिसमें प्रमुख रूप से पानीपत साहित्य अकादमी से ‘आचार्य’ की मानद उपाधि।अमेरिकी संस्था ‘ए. बी. आई.’  द्वारा ‘इन्टरनेशनल डिस्टिंग्विश्ड लीडरशिप अवार्ड-1998 एवं उसके ‘रिसर्च बोर्ड ऑफ एडवाइज़र्स के मानद सदस्य। ‘राष्ट्रकवि पं. बंशीधर शुक्ल सम्मान’, मन्यौरा (खीरी), विवेकानन्द स्मृति न्यास ;गोला (खीरी) द्वारा ‘विवेक श्री’ सम्मान, ‘उद्घोष शिखर सम्मान’ बुलन्दशहर (उ.प्र), ‘त्रिवेणी साहित्य सम्मान’ अलवर (राजस्थान),‘कला भारती सम्मान’ हापुड़ (उ.प्र.) है और ‘सरस्वती साहित्य सम्मान’ मैनपुरी (;उ.प्र.), ‘पं. दीनदयाल उपाध्याय साहित्य सम्मान’ (छोटी खाटू, राजस्थान), ‘सारस्वत सम्मान’ श्री रामलीला कमेटी, इन्द्रप्रस्थ, दिल्ली, ‘सदाशिव राव गुरु गोलवलकर साहित्य सम्मान’ नयी दिल्ली,‘धर्मपाल विद्यार्थी सम्मान’ नागरी प्रचारिणी सभा, आगरा। दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन (भोपाल) के कवि-सम्मेलन में भारत सरकार के विदेश मन्त्रालय के अन्तर्गत सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद द्वारा राष्ट्रीय कवि के रूप में प्रतिभाग। ‘ग्यारहवें विश्व हिन्दी सम्मेलन, मॉरीशस’ के कवि-सम्मेलन में भारत सरकार के विदेश मन्त्रालय के अन्तर्गत सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद द्वारा राष्ट्रीय कवि के रूप में प्रतिभाग। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ द्वारा वर्ष-2018 में,‘राष्ट्रपुत्र यशवन्त’ महाकाव्य पर  पिचहत्तर हज़ार रुपए का नामित ‘तुलसी सम्मान/पुरस्कार’। जोवियल फाउन्डेशन यूनिवर्सल ट्रस्ट, बरेली द्वारा ‘लाइफ टाइम अचीवमेन्ट अवार्ड-2018', दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी (संस्कृति मन्त्रालय, भारत सरकार) द्वारा डेढ़ लाख रुपये का ‘महर्षि दधीचि सम्मान पुरस्कार-2018’, कन्सर्न्ड थियेटर लखनऊ द्वारा ‘साहित्यकार प्रेरणा सम्मान 2018', पं. युगल किशोर सुरोलिया साहित्य सम्मान-2018' भीलवाड़ा (राजस्थान), साहित्य मण्डल सम्मान नाथद्वारा (राजस्थान) द्वारा 'साहित्य-साधक सम्मान 2018’, ‘राष्ट्र किंकर’ दिल्ली द्वारा ‘कर्मयोगी सम्मान 2018’, अ. भा. साहित्य परिषद, बुलन्दशहर.द्वारा 'वाचस्पति- सम्मान'। विज्डम अब्रोड सोसायटी द्वारा 'महाकाव्य-पारीण 'सम्मान। अखिल भारतीय सृजन साहित्य मंच द्वारा 'श्रेष्ठ रचनाकार' सम्मान‌ ,'निराला साहित्य सम्मान' (मानव सेवा क्लब, बरेली द्वारा), अखिल भारतीय हिन्दी विधि प्रतिष्ठान (पीलीभीत), अवधेश प्रताप सि़ह विश्वविद्यालय, रीवा (म. प्र.) द्वारा सम्मानित। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला द्वारा सम्मानित। केन्द्रीय विश्वविद्यालय, धर्मशाला (हि.प्र.) द्वारा सम्मानित। महात्मा ज्योतिबा फुले विश्वविद्यालय (बरेली) द्वारा सम्मानित। हिन्दी पुस्तकालय, डीग (राजस्थान) द्वारा सम्मानित। अटल बिहारी बाजपेयी विश्वविद्यालय, बिलासपुर (छतिसगढ़.) द्वारा सम्मानित। विश्व हिन्दी मंच द्वारा तीन अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनारों में प्रतिभाग। इंटरनेशनल स्कूल, बिल्सी (बदायूं) द्वारा सम्मान, ज्ञान स्वरूप कुमुद- स्मृति सम्मान समिति, बरेली द्वारा 'कुमुद साहित्य सम्मान 2022', चेतना साहित्य परिषद, लखनऊ द्वारा 'महाकवि रामजी दास कपूर स्मृति सम्मान-2022'आदि हैं ।
 देवेंद्र देव के संपादन में तराई उजाला (साप्ताहिक) ‘पंकज पराग’, ‘रणंजय-रश्मि’, ‘इस धरा पर स्वर्ग का अवतरण होना है सुनिश्चित’, ‘ब्रजांजलि’ (स्मारिकाएँ) एवं हिन्दूपति महाराणा प्रताप (महाकाव्य) आदि का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी के रामपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, आगरा, बरेली, मथुरा और दिल्ली केन्द्र तथा लखनऊ, बरेली दूरदर्शन, वक्तव्य मंच, मेरठ लिटरेचर फेस्टिवल, हिंदी साहित्य भारती, व डी डी उ.प्र. इत्यादि अनेक लाइव चैनलों पर व्यक्तित्व/कृतित्व पर समग्र एवं विविध महाकाव्यों पर चैनलों पर चर्चा का प्रसारण नियमित रूप से होता रहा है। देवेंद्र देव द्वारा रचित प्रज्ञा गीत शांतिकुंज, हरिद्वार में जहाँ प्रकाशनों में संकलित और ऑडियो, वीडियो सी. डी. में स्वर संगीतबद्ध हैं वहीं लखनऊ दूरदर्शन के माध्यम से आपके रचे देश- गान राष्ट्रीय स्तर पर प्रसारित हुए हैं। विगत् दिनों परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानंद मुनि के आग्रह पर लिखे आपके गंगा- रक्षाभियानी गीत संस्कार चैनल के स्वामी के. के. पित्ती द्वारा मुंबई मँगाए गए हैं जिन्हें सूफी गायक कैलाश खेर द्वारा स्वर -संगीत दिए जाने की संभावना है। गद्य के क्षेत्र में आपके लेख, समीक्षाएँ, भूमिकाएँ तो पद्य के क्षेत्र में आपके गीत, ग़ज़ल एवं छंद आदि देश-विदेश की अनेकानेक पत्र -पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं । संस्कृत में भी देवेंद्र देव ने गीत, ग़ज़ल व धनाक्षरी लिखने के प्रयोग किए हैं। श्री देव संस्कार भारती से वर्ष- 1993 से अपने जुड़ाव का श्रेय श्री बाँकेलाल गौड़ को तथा प्रगाढ़ प्रोत्साहन का श्रेय बाबा योगेंद्र जी (स्व.), डॉ. सुरेंद्र शर्मा (स्व.) (वृंदावन), नंद नंदन गर्ग (आगरा)  अमीर चंद (कोलकाता, अब दिल्ली) और कामता नाथ वैशम्पायन (स्व.) (ग्वालियर) को देते हैं। कविता के संस्कारों में दीक्षित  देवेंद्र देव के बेटे- बेटी मानस- पुत्र/ पुत्रियाँ अर्थात् दामाद/ पुत्रवधुएँ, सभी परिजन उन की ध्वजा लेकर चल रहे हैं और हिंदी की सच्ची सेवा में लगे हैं।  वर्तमान में  आचार्य देवेंद्र देव  मालद्वीप 44- उमंग भाग -२ महानगर टाउनशिप, बरेली (उ.प्र.) में निवास कर रहे हैं। 
कागज के कुछ पृष्ठों में आचार्य  देवेंद्र देव  की बहुमुखी प्रतिभा का व्याख्यान करना 'आदित्य' को प्रकाश दिखाने के समान है। आप शतायु हों तथा इसी तरह आपकी प्रतिभा की चमक अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर चमके ऐसी शुभकामनाएँ हैं।  आचार्य देवेंद्र देव को उन्हीं  की इन पंक्तियों के साथ मैं हृदय से नमन करता हूँ-
जीने को तूफानों का संग, पीने को जल खारी है
ऐसे सागर में किस्मत ने, अपनी नाव उतारी है
टकराने आते रहते हैं ,बड़े-बड़े घड़ियाल मगर
पतवारों का उनसे लोहा, लेने का क्रम जारी है।
निर्भय सक्सेना

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