नया सवेरा नेटवर्क
मुंबई। शोध संवाद समूह, भोजपुरी अध्ययन केंद्र, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के द्वारा आयोजित एक व्याख्यान की शृंखला में आज "चंद्रशेखर मिश्र की कविताई" विषय पर प्रथम व्याख्यान सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम में आये हुए तमाम अतिथियों एवं श्रोताओं स्वागत भोजपुरी अध्ययन केंद्र के समन्वयक प्रोफ़ेसर प्रभाकर सिंह ने किया, साथ ही चन्द्रशेखर मिश्र से संबंधित संस्मरणों को साझा किया। कार्यक्रम में अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए हिंदी विभाग, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर वशिष्ठ अनूप द्विवेदी सर ने कहा कि आज जिस तरह से फूहड़ता से चुटकुले सुनाया जाता है वो चन्द्रशेखर जी के समय नहीं था।
पहले ओछी कविताओं को श्रोता सुनना नहीं पसंद करते थे वो मंच पर ही विरोध कर देते थे आजकल वो प्रतिरोधी स्वर लगभग खत्म हो गया है। वो समय अलग था जब फ़ूहड़ कविता पढ़ने वाले को लोग मंच से भगा देते थे जिसे आजकल विवेकशून्य होकर सुन रहे हैं। ये कार्यक्रम अलहदा कार्यक्रम है। एक ऐसे कवि जिन्हें भूला जा रहा था इस कार्यक्रम ने उन्हें जीवित कर दिया है। मुख्य वक्ता के रूप में भोजपुरी कवि एवं आलोचक प्रकाश उदय ने कहा कि चन्द्रशेखर जी आशु कवि थे। उनका व्यक्तित्व विराट था।
वे महाकवि कहलाना पसंद करते थे। चन्द्रशेखर मिश्र जी कविताएं खुद ही बोलती थी। सीता जैसी प्रबंधकाव्य एक समय में चर्चित रही लेकिन बाद में कुछ खो सी गई। भीषम बाबा, द्रोपदी, सीता, कुअंर सिंह आदि उनकी चर्चित खंडकाव्य एवं प्रबंधकाव्य उनकी अन्य कविताओं को कुछ कम आंकती है। चन्द्रशेखर जी लोक की तरफ़ से बोलते हैं लोक की तरह से नहीं। द्रौपदी उनके काव्य संसार में नगीने की तरह है। स्मृति शेष कवि चन्द्रशेखर मिश्र के पुत्र धर्मप्रकाश मिश्र ने अपने पिताश्री के कुछ कविताओं का काव्यपाठ भी किया।
इस अवसर पर सांगीतिक काव्यपाठ के अंतर्गत युवा भोजपुरी कवि डॉक्टर सुशांत कुमार शर्मा ने द्रौपदी खंडकाव्य का संगीतमय प्रस्तुति किये। कार्यक्रम में कुलगीत का गायन शोध छात्रा कुमारी अलका और निवेदिता ने प्रस्तुत किया। इस कार्यक्रम का सफल संचालन हिन्दी विभाग के सहायक आचार्य डॉक्टर विंध्याचल यादव एवं धन्यवाद ज्ञापन भोजपुरी अध्ययन केंद्र की शोध छात्रा रिंकी कुमारी ने दिया।
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