- 11 बार जीती कांग्रेस, भाजपा की नजर हैट्रिक पर
मुंबई। पुणे लोकसभा सीट पर पहली बार 1951 में अस्तित्व में आई थी। तब से लेकर 2019 तक कुल 17 बार चुनाव हुए हैं। पुणे लोकसभा सीट पर 11 बार कांग्रेस का कब्जा रहा है। एक बार यहां प्रजा सोशलिस्ट पार्टी तो एक बार जनता पार्टी का प्रत्याशी जीता है। एक बार संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी को जीत हासिल हुई है। भाजपा को पहली बार इस सीट पर 1991 में जीत हासिल हुई थी। इस तरह से भाजपा को अभी तक कुल 4 बार इस सीट पर जीत हासिल हुई है। वर्तमान में यह सीट भारतीय जनता पार्टी के कब्जे में है। चुनावी रण के लिए कांग्रेस और भाजपा ने अपने-अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं। कांग्रेस में रवींद्र धांगेकर और भाजपा ने मुरलीधर मोहोल को टिकट दिया है। पिछले दो लोकसभा चुनाव से यहां जीत रही भाजपा हैट्रिक लगाना चाहेगी। वहीं कांग्रेस धांगेकर से कस्बा सीट सा करिश्मे की उम्मीद में है। साल 1980 में कांग्रेस के विट्ठलराव गाडगिल को सांसद चुना गया। वह लगातार तीन बार सांसद रहे। गाडगिल ने 1984 और 1989 में भी चुनाव जीता। 1991 में भारतीय जनता पार्टी ने यहां से जीत दर्ज की और अन्ना जोशी सांसद बने।
- 3 बार चुने कलमाड़ी ने दिया दाग, कांग्रेस हो गई साफ
1996 में कांग्रेस के सुरेश कलमाड़ी, 1998 में कांग्रेस के ही विठ्ठल तुपे, 1999 में भाजपा के प्रदीप रावत, साल 2004 और 2009 में कांग्रेस के सुरेश कलमाड़ी विजयी हुए। हालांकि कामनवेल्थ गेम घोटाले में उनका नाम आने से पार्टी की बड़ी किरकिरी हुई, जिसके चलते पार्टी ने आगामी चुनावों में उन्हें प्रत्याशी नहीं बनाया। वहीं दूसरी ओर इस सीट से कांग्रेस पार्टी का मजबूत किला ढह गया। साल 2014 में इस सीट पर मोदी लहर का जलवा देखने को मिला। भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट से अनिल शिरोले को टिकट दिया। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. विश्वजीत पतंगराव कदम को करारी शिकस्त दी। अनिल शिरोले ने यह चुनाव 3,15,769 वोटों से जीत लिया। साल 2019 के चुनाव में भी भाजपा हावी रही। यहां इस बार पार्टी ने अपना प्रत्याशी बदल दिया और गिरीश बापट को चुनाव मैदान में उतारा। उन्हें जनता ने खूब प्यार दिया और बापट ने यह चुनाव 3,24,628 वोटों से जीता। 29 मार्च 2023 को कार्यालय में गिरीश बापट का निधन हो गया।
- कांग्रेस ने धांगेकर को उतारा
कांग्रेस उम्मीदवार रवींद्र धांगेकर को कसबा पेठ में कड़े संघर्ष वाले उपचुनाव की जीत ने राष्ट्रीय परिदृश्य पर पहुंचा दिया, जबकि यह मतदाताओं की संख्या की दृष्टि से काफी छोटा चुनाव था। शिवसेना से राजनीति की शुरुआत करने वाले धांगेकर ने पहली बार 1997 में चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। पांच बार नगरसेवक रहे धांगेकर शिवसेना टूट के बाद राज ठाकरे के साथ हो लिए। लेकिन 2017 में उन्होंने मनसे छोड़ दी। उस साल चुनाव में उन्होंने भाजपा नेता गणेश बिडकर को हराया और स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने के बावजूद कांग्रेस ने उनका समर्थन किया। बाद में, धांगेकर कांग्रेस में शामिल हो गए और 2019 में एक बार फिर विधानसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक थे। हालांकि, पार्टी ने उनके बजाय अरविंद शिंदे को चुना, जिससे भाजपा की मुक्ता तिलक के लिए चुनाव आसान हो गया। नवंबर 2022 में तिलक के निधन के बाद, धांगेकर कांग्रेस की सर्वसम्मत पसंद थे। उन्होंने भी पार्टी को निराश नहीं किया और भाजपा के हेमंत रासने को हरा दिया। वह कसबा पेठ के भाजपा के गढ़ को गिराने में कामयाब रहे।
- भाजपा से मोहोल मैदान में
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने बुधवार को पुणे लोकसभा सीट के लिए मुरलीधर मोहोल को अपना उम्मीदवार घोषित किया। पुणे के पूर्व मेयर मोहोल ने पुणे लोकसभा सीट के लिए भगवा पार्टी के चुनाव प्रभारी के रूप में कार्य किया। हाल के दिनों में, उन्होंने विविध सांस्कृतिक और खेल कार्यक्रमों का आयोजन करके सक्रिय रूप से सामुदायिक संबंधों को बढ़ावा दिया है। इन पहलों में 'महाराष्ट्र केसरी' जैसे कार्यक्रमों की व्यवस्था करना और बड़े पैमाने पर रक्तदान अभियान चलाना शामिल है। उप मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस और महाराष्ट्र भाजपा प्रमुख चंद्रशेखर बावनकुले के साथ मोहोल के घनिष्ठ संबंधों ने संभवतः उन्हें नामांकित करने के निर्णय में भूमिका निभाई। इससे पूर्व प्रत्याशी की घोषणा से पहले जिन अन्य नामों पर विचार किया गया उनमें वडगांव शेरी के पूर्व विधायक जगदीश मुलिक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के पदाधिकारी सुनील देवधर और पूर्व राज्यसभा सांसद और रियल एस्टेट डेवलपर संजय काकड़े शामिल थे। कुछ दिनों पूर्व तो यहाँ से उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की भी नाम उछला था।
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