- करिश्मे के आसरे कांग्रेस
अजीत कुमार राय/जागरूक टाइम्स
मुंबई। जयपुर लोकसभा क्षेत्र आजादी के बाद से ही कांग्रेस के खिलाफ राजनीति का गढ़ रहा है। देश को आजादी मिलने के राजतंत्र समाप्त हो गया और लोकतंत्र लागू हुआ। ऐसे में राजपुताना गौरव के केंद्र राजस्थान में राजपूत समाज कांग्रेस के खिलाफ लामबंद हुआ। कांग्रेस के खिलाफ होने वाली इस लामबंदी का नेतृत्व जयपुर राजघराने की महारानी गायत्री देवी ने किया। उन्होंने स्वतंत्र पार्टी की स्थापना की जिसे जनसंघ और आरएसएस का समर्थन प्राप्त था। भाजपा के अभेद्य किले के रूप में जाने जानी वाली जयपुर शहर लोकसभा सीट पर जीत के लिए कांग्रेस नई जातिगत रणनीति अपना रही है। कांग्रेस ने इस बार यहां से प्रतापसिंह खाचरियावास को अपना उम्मीदवार बनाया है। हालांकि कांग्रेस को भी इस सीट से से अधिकांशतया निराशा ही हाथ लगी है। लेकिन इसके बावजूद वह इस बार अपनी पूरी ताकत लगा रही है। कांग्रेस को उम्मीद है कि उनके अथक प्रयास से मतदाताओं का मूड बदले, कोई करिश्मा हो और यह सीट उनकी झोली में आ गिरे।
- भाजपा के भार्गव ने छह बार फहराया भगवा
आजादी के बाद जयपुर सीट पर 2014 तक हुए कुल 16 लोकसभा चुनाव और 1 उपचुनाव में कांग्रेस महज 4 बार ही यह सीट जीत पाई, जबकि 7 बार भाजपा का कब्जा रहा। 3 बार स्वतंत्र पार्टी, 1 बार जनता पार्टी, 1 बार भारतीय लोकदल और 1 बार निर्दलीय ने कब्जा जमाया। लिहाजा इस सीट पर कांग्रेस को सबसे अधिक बार हार का सामना करना पड़ा है। भाजपा के लिए सुरक्षित सीट रही है। यहां भाजपा ने सबसे पहले 1989 में अपना खाता खोला था। राजस्थान की राजधानी जयपुर लंबे समय से भाजपा के लिए सुरक्षित सीट रही है। यहां भाजपा ने सबसे पहले 1989 में अपना खाता खोला था। उसके बाद यहां लगातार 1991, 96, 98, 99, 2004 के चुनाव में भाजपा के कद्दावर नेता गिरधारी लाल भार्गव जीतते रहे। हालांकि साल 2009 में कांग्रेस के महेश जोशी ने भाजपा के कद्दावर नेता घनश्याम तिवाड़ी को हराकर सबसे बड़ा उलटफेर किया था। लेकिन 2014 की मोदी लहर में भाजपा के रामचरण बोहरा ने जोशी को 5 लाख वोटों भारी अंतर से हराकर जयपुर में एक बार फिर भाजपा का झंडा बुलंद किया। जयपुर जिले की आठ विधानसभा सीटों को मिलाकर गठित इस लोकसभा क्षेत्र में किसनपोल और आदर्श नगर को छोड़ कर बाकी छह विधायक भाजपा के हैं। इनमें बालमुकुंद आचार्य व उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी भी शामिल हैं।
- कांग्रेस को प्रताप से पराक्रम की उम्मीद
पिछले दो लोकसभा चुनाव में रिकॉर्ड तोड़ हार के बाद कांग्रेस ने इस सीट पर प्रताप सिंह खाचरियावास को उतारा है। कांग्रेस को उम्मीद है कि इस बार वे जयपुर में पहले से बेहतर परफॉर्म करेंगे। प्रताप सिंह खाचरियावास बीस साल पहले 2004 में जयपुर लोकसभा चुनाव का लड़ चुके हैं। वे दो बार जयपुर शहर की सिविल लाइंस विधानसभा सीट से विधायक रहे हैं। लेकिन जब कांग्रेस की सरकार प्रदेश की सत्ता से बेदखल हुई तो भी प्रताप सिंह चुनाव भी हार गए। 2008 में वो पहली बार विधायक चुने गए और 2013 में हार गए। उस समय कांग्रेस सिर्फ 21 सीटों पर सिमटकर रह गई थी। उसके बाद 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और खाचरियावास दोनों की सत्ता में वापसी हुई। लेकिन 2023 में दोनों एक बार फिर हार गये।
- मंजू को कमल खिलाने की जिम्मेदारी
जयपुर लोकसभा सीट से भाजपा ने रिकॉर्ड मतों से जीत दर्ज करने वाले वर्तमान सांसद रामचरण बोहरा का टिकट काट कर मंजू शर्मा को टिकट दिया है। वर्तमान में राजस्थान महिला प्रवासी अभियान की जयपुर प्रभारी मंजू शर्मा सात बार विधायक रहे भाजपा के वरिष्ठ नेता भंवर लाल शर्मा की बेटी है। मंजू शर्मा भाजपा की महिला मोर्चा की प्रदेश महामंत्री भी रह चुकी हैं। राजनीतिक सूत्रों के अनुसार मंजू शर्मा को प्रधानमंत्री मोदी की संस्तुति पर टिकट दिया गया है। पुराने आंकड़ों को देखें तो इस सीट पर ब्राह्मण उम्मीदवारों का दबदबा रहा है। मंजू शर्मा का ब्राह्मण होना भी उनकी उम्मीदवारी का एक सकारात्मक पहलू है।
- 10 बार ब्राह्मण और 3 बार वैश्य सांसद
इस लोकसभा सीट पर कांग्रेस और भाजपा दोनों ही ब्राह्मण तथा वैश्य चेहरों पर दांव खेलती रही हैं। यहां हुए अब तक 17 में से 10 बार यहां से ब्राह्मण और तीन बार वैश्य सांसद बने हैं। मतदाताओं की दृष्टि से देखें तो यहां राजपूत, वैश्य और ब्राह्मण जातियों की संख्या करीब-करीब बराबर है। वहीं करीब 14 प्रतिशत मुस्लिम वोटर भी हैं। जो काफी अहम किरदार अदा करते हैं। ऐसे में कांग्रेस का मानना है कि उसे इस बार राजपूत वोट, मुस्लिम वोट और एससी एसटी वोट में से बड़ा हिस्सा उन्हें मिलेगा।
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