#LokSabhaElections2024 : अमरावती लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र | #NayaSaveraNetwork


  • शिवसेना के गढ़ में राणा की चुनौती 

अजीत कुमार राय/जागरूक टाइम्स

मुंबई। महाराष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले अमरावती का लोकसभा चुनाव भी आकर्षण का केंद्र हो गया है। इसका प्रमुख कारण है उद्धव सरकार के दौरान हनुमान चालीसा पाठ को लेकर बेहद चर्चा में रही यहां की निर्दलीय सांसद नवनीत राणा को भाजपा द्वारा प्रत्याशी बनाना। तो वहीं उनके गठबंधन सहयोगियों की नाराजगी। बात यदि इस सीट के राजनीतिक इतिहास की करें तो अधिकांश सीटों की तरह यहां भी शुरू-शुरू में कांग्रेस हावी रही। 1952 में हुए लोकसभा चुनाव में पहली बार चुनाव जीतकर कांग्रेस के दो प्रत्याशी पंजाबराव देशमुख एवं कृष्णराव देशमुख संसद भवन पहुंचे थे। उसके बाद 1957 एवं 1962 में पंजाबराव देशमुख ने तो 1967 एवं 1971 में कृष्णराव देशमुख निर्वाचित हुए। 1977 में नानासाहेब बोंडे, 1980 व 1984 में उषा चौधरी यहां से जीतीं। सन 1989 सीपीआई के सुदाम देशमुख यहां से चुने गए। हालांकि 1991 में प्रतिभा पाटिल ने इस सीट को एक बार फिर से कांग्रेस की झोली में डाल दिया। 1996 में यह सीट पर पहली बार शिवसेना के पक्ष में आई और अनंत गुढे निर्वाचित हुए। लेकिन 1998 के चुनाव में यहां से रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के आरएस गवई विजयी हुए। इसके बाद 1999 से 2019 तक अमरावती पर शिवसेना का कब्जा रहा, जिसमें 1999 एवं 2003 में अनंत गुढे तथा 2009 व 2014 में आनंदराव अडसुल ने इस सीट का प्रतिनिधित्व किया। वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में अडसूल को 36,951 वोटों से पराजित कर नवनीत राणा पहली बार सांसद बनीं। वे निर्दलीय जीतने वाली अमरावती की पहली सांसद हैं। राणा 2014 के चुनाव में भी राकांपा के टिकट पर यहां से लड़ी थी, लेकिन उन्हें अडसूल से ही 1,37,932 वोटों से शिकस्त झेलनी पड़ी थी। 

 

  • नवनीत खिलाएंगी पहली बार कमल! 

नवनीत राणा जब पिछला लोकसभा चुनाव लड़ रही थीं तो उन्हें एनसीपी और कांग्रेस का समर्थन हासिल था। इस बार वे भाजपा के टिकट पर महायुति की उम्मीदवार हैं। राणा ने 27 मार्च को अपने पति की अगुवाई वाली राष्ट्रीय युवा स्वाभिमान पार्टी से त्यागपत्र दे दिया था। इसके बाद भाजपा ने उन्हें अमरावती से प्रत्याशी घोषित किया। राणा आज अपना नामांकन करेंगी। भाजपा शामिल होने के बाद राणा ने कहा था कि “अमरावती में आज तक कभी कमल नहीं खिला। अमरावती के लोगों की इच्छा थी कि इस समय कमल खिले। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने मुझ पर विश्वास जताया है, अमरावती एवं देश के विकास के लिए मोदी जरूरी है।” बता दें कि अमरावती लोकसभा सीट पर भाजपा का कभी कब्जा नहीं रहा है। बात यदि इसके अंतर्गत आने वाली विधानसभा सीटों की करें, तो वहां भी स्थिति ठीक नहीं है। अमरावती में छह विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इनमें सिर्फ एक सीट पर बीजेपी का कब्जा है। वहीं बडनेरा से नवनीत राणा के पति रवि राणा विधायक हैं, जबकि तीन सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है। बाकी की दो सीटों पर प्रहार जनशक्ति पार्टी का कब्जा है। ऐसे में बीजेपी के सिंबल पर चुनाव लड़ने उतरी नवनीत राणा के सामने अमरावती में कमल खिलाने की चुनौती होगी।

  • भाजपा की राणा पर अपनों का बखेड़ा

नवनीत राणा को अमरावती से उम्मीदवार बनाए जाने पर महायुति गठबंधन के सहयोगियों में नाराजगी देखी जा रही है। शिवसेना नेता तथा इस सीट से दो बार सांसद एवं 2019 लोकसभा चुनाव में दूसरे नंबर रहे आनंदराव अडसुल ने यहां से निर्दलीय लड़ने तो निर्दलीय विधायक बच्चू कडू ने राणा के लिए प्रचार नहीं करना का ऐलान किया है। कुछ दिनों पूर्व पीजेपी प्रमुख कडू ने कहा था कि, “राणा की उम्मीदवारी लोकतंत्र के पतन का संकेत देती है। उन्हें हराना होगा।” वहीं अडसुल ने कथा कि, “मैं निश्चित रूप से उनके खिलाफ चुनाव लड़ूंगा। अगर मेरी पार्टी (शिवसेना) मेरा समर्थन नहीं करती है, तो मैं उन्हें एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनौती दे सकता हूं। मैं उनके लिए प्रचार नहीं करने जा रहा हूं। किसी भी तरह से उनका समर्थन करने का सवाल ही नहीं उठता।” समय रहते यदि इन्हें नहीं मनाया गया तो अपनो का यह विरोध भाजपा के लिए भारी पड़ सकता है। 

  • बहुकोणीय लड़ाई में एआईएमआईएम भी उतरी

अमरावती लोकसभा सीट पर इस चुनाव में मुकाबला बहुकोणीय होता दिखाई दे रहा है। महाविकास आघाड़ी की ओर से कांग्रेस ने दरियापुर विधायक बलवंत वानखेड़े को मैदान में उतारा है। वहीं भाजपा की नवनीत राणा के अलावा बाबासाहेब आंबेडकर के पोते और रिपब्लिकन सेना नेता आनंदराज आंबेडकर, वंचित बहुजन अघाड़ी की प्राजक्ता पिल्लेवान और प्रहार जनशक्ति पार्टी के नेता दिनेश बूब भी चुनावी मैदान में हैं। इस बीच एआईएमआईएम की भी एंट्री हो गई है। दरअसल आनंदराज आंबेडकर ने असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली एआईएमआईएम से समर्थन मांगा था। जिस पर एआईएमआईएम के नेता इम्तियाज जलील ने कहा कि हम एआईएमआईएम अध्यक्ष ओवैसी के साथ चर्चा के बाद आनंदराज के लिए सार्वजनिक रैलियां कर सकते हैं। 

 

  • महिला उम्मीदवारों के लिए भाग्यशाली

अमरावती संसदीय क्षेत्र महिला उम्मीदवारों के लिए बेहद भाग्यशाली रहा है। यहां से प्रमुख दलों से जितनी बार भी महिला प्रत्याशी उतरीं, उन्हें जीत हासिल हुई। कांग्रेस ने पहली बार उषा चौधरी को 1980 में यहां से चुनावी मैदान में उतारा था और वो लगातार दो बार यहां जीतकर संसद में पहुंचीं थी। वहीं 1991 में कांग्रेस ने प्रतिभा पाटिल को अपना उम्मीदवार बनाया था और उन्होंने शिवसेना के प्रकाश पाटिल को हराया। आगे चलकर प्रतिभा पाटिल को भारत की 12वीं और देश की पहली महिला राष्ट्रपति बनने का गौरव प्राप्त हुआ। वहीं कांग्रेस और राकांपा के समर्थन से 2019 के चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में उतरी राणा ने शिवसेना के आनंदराव अडसूल को हराकर जीत का परचम फहराया था। इस राणा भाजपा के टिकट पर यहां से किस्मत आजमा रही हैं। अब देखना यह है कि क्या यहां के मतदाता इस परंपरा को कायम रखते हैं।


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