#Loksabhaelection2024 : बीड़ लोकसभा क्षेत्र | #NayaSaveraNetwork


  • प्रीतम की जगह पंकजा को कमान
  • प्रीतम ने बनाया था जीत का रिकॉर्ड

अजीत कुमार राय 

मुम्बई। महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों में से एक बीड लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र काफी महत्वपूर्ण है। हालांकि यह सीट मुंडे परिवार की वजह से ख्यातिनाम सीटों में शुमार की जाती है। इस क्षेत्र को देवगिरि के यादव शासकों ने बसाया था। बाद में यह हैदराबाद के निजाम की रिया‍सत का हिस्सा हो गया। इस निर्वाचन क्षेत्र का गठन 1951 में तत्कालीन हैदराबाद राज्य के 25 निर्वाचन क्षेत्रों में से एक के रूप में किया गया था।वर्तमान में बीड लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र महाराष्ट्र का हिस्सा है और इसमें छह विधानसभा क्षेत्र जियोराई, माजलगांव, बीड, अष्टी, कैज(एससी) और परली का समावेश हैं तथा प्रीतम मुंडे यहां की सांसद हैं। पूर्व में इस सीट से बीजेपी के कद्दावर नेता गोपीनाथ मुंडे चुनाव लड़ते थे। उनके निधन के बाद 2014 के उपचुनाव में उनकी छोटी बेटी प्रीतम मुंडे ने यहाँ से रिकॉर्ड जीत दर्ज की थीं। हालांकि तब गोपीनाथ मुंडे के निधन से उनके पक्ष में सहानुभूति की लहर थी। उन्होंने इस उपचुनाव में कांग्रेस अशोकराव शंकरराव पाटिल को 6,96,321 मतों से पराजित किया था। वहीं 2019 के आम चुनाव में उन्होंने राकांपा के बजरंग मनोहर सोनावणे को 1,68,368 मतों से पराजित किया था। हालांकि इस बार भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने उनकी जगह पर उनकी बहन तथा प्रदेश भाजपा की बड़ा चेहरा मानी जाने वाली पंकजा मुंडे को उम्मीदवार बनाया है। इस बात में कोई संदेह नहीं कि प्रीतम मुंडे की तुलना में पंकजा मुंडे एक बड़ा चेहरा है। हालांकि विगत विधानसभा चुनाव में चचेरे भाई धनंजय मुंडे से हार के बाद वे हाशिये पर चलीं गयीं थीं। लेकिन स्थानीय मतदाताओं में गहरी पैठ हैं। अब देखना यह है कि वे मुंडे परिवार की परंपरा को कितने शानदार तरीके से कायम रख पाती हैं। वहीं बात विपक्ष की करें तो उम्मीदवार तो दूर की बात यहाँ से महाविकास अघाड़ी का कौन- सा दल चुनावी मैदान में होगा अभी तक यह भी तय नहीं हो पाया है।

  • कभी थी कांग्रेस, अब भाजपा का भगवा

बीड़ लोकसभा सीट के इतिहास की बात करें तो पहले यहाँ कांग्रेस अथवा उसके सहयोगी दल का कब्जा रहा, लेकिन अब इस सीट पर लगातार भगवा फहरा रहा है। सन 1957 में इस सीट पर कांग्रेस के रखमजी धोंडीबा पाटिल चुनाव जीते थे। 1962 में भी कांग्रेस के द्वारकादास जीते और मंत्री बने। 1967 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के एनआर पाटिल जीते। लेकिन 1971 में कांग्रेस के सयाजीराव पंडित निर्वाचित हुए. 1977 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के गंगाधर बुरांडे तो 1980 और 1984 में कांग्रेस के केसरबाई क्षीरसागर सांसद बने। 1989 में जनता दल से बबनराव ढाकने तो 1991 में कांग्रेस के केसरबाई क्षीरसागर फिर चुनाव जीते। 1996 में इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी ने पहली बार कब्जा किया। जब रजनी पाटिल ने भाजपा को विजय दिलायी. वहीं के 1998 एवं 1999 के चुनाव में बीजेपी से जयसिंगराव गायकवाड पाटिल चुनाव जीते थे. इसके बाद में पाटिल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में चले गए और 2004 में यहां से फिर जीत दर्ज करते हुए हैट्रिक लगाई। उसके बाद 2009 में गोपीनाथ मुंडे ने इस सीट से जीत दर्ज की तबसे इस सीट पर भाजपा का कब्जा है।

  • गोपीनाथ मुंडे ने बना दिया गढ़ 

साल 2009 के लोकसभा चुनाव में  इस सीट से भारतीय जनता पार्टी ने अपने दिग्गज नेता गोपीनाथ मुंडे को चुनावी मैदान में उतारा। गोपीनाथ मुंडे ने प्रदेश सरकार में काम करते हुए मुंबई में अंडरवर्ल्ड के खात्मे में अहम भूमिका निभाई। उस दौरान वे वह महाराष्ट्र के गृह मंत्रालय के साथ उप मुख्यमंत्री भी रहे थे। मुम्बई में अंडरवर्ल्ड के सफाए ने उनको एक अलग पहचान दे दी थी। गोपीनाथ मुंडे ने यहाँ से 2009 में जीत दर्ज की। 2014 में गोपीनाथ मुंडे दूसरी बार फिर बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़े और जीत हासिल की। 2014 में मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री पद की शपथ लेने के 9 दिन बाद ही गोपीनाथ मुंडे की सड़क हादसे में मौत हो गई। इसके बाद बीड लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुए और गोपीनाथ मुंडे की बेटी प्रीतम मुंडे चुनाव मैदान में उतरीं और शानदार जीत दर्ज की। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा ने उनपर विश्वास दिखाया और उन्होंने लगभग डेढ़ लाख के अंतर से जीत दर्ज करके पार्टी के उस विश्वास को कायम रखा।

  • भाजपा ने खेला दांव, विपक्ष बेहाल

लोकसभा चुनाव में 2024 में बीड लोकसभा सीट से विपक्ष का उम्मीदवार कौन होगा, यह अभी तय नहीं हुआ है। हालांकि जिस पार्टी का उम्मीदवार होगा अभी यह भी रहस्य बना हुआ है। पिछले लोकसभा एवं विधान सभा चुनाव को देखें तो यहाँ राकांपा का प्रभाव था, लेकिन देवेंद्र फडणवीस द्वारा कुछ दिनों पहले खेले गए दांव ने सब कुछ पलट कर रख दिया है। रांका के प्रमुख नेता अजीत पवार एनडीए गठबंधन में शामिल हो गए हैं और उनके गुट को ही असली एनसीपी मान लिया गया है। ऐसे में विपक्ष के लिए इस सीट पर चुनौती मुश्किल होगी। अब देखना यह है कि पंकजा मुंडे को चुनौती देने के लिए चुनावी मैदान में कौन उतरता है।

लेखक जागरूक टाइम्स के एसोसिएट एडिटर हैं।

जागरूक टाइम्स से साभार


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