नया सवेरा नेटवर्क
हाथों से छीनों न अमराइयाँ
सौदा परिंदों का हम न करेंगे,
साँसों की रफ्तार घटने न देंगें।
हाथों से छीनों न अमराइयों को,
पर्यावरण बिनु कैसे जियेंगे?
रोते हैं पेड़ देखो कुल्हाड़ियों से,
हम सब बँधे उसकी साँसों की डोर से।
हरियाली का प्याला कैसे पिएंगे,
पर्यावरण बिनु कैसे जियेंगे?
सौदा परिंदों का.........
बित्ताभर गगन तुम्हें लेना हो ले लो,
सन्नाटे भरे उस नभ को तू छू लो।
प्रदूषण से बोलो कैसे लड़ेंगे?
पर्यावरण बिनु कैसे जियेंगे?
सौदा परिंदों का.........
तपेंगे ये पर्वत, सूखेंगी नदियाँ,
उल्टेगा मौसम मुरझाएँगी कलियाँ।
सूखे अधर फिर कैसे खिलेंगे?
पर्यावरण बिनु कैसे जियेंगे?
सौदा परिंदों का.........
बादल बिना तब रहेगी खामोशी,
कैसे कहेंगे कि समंदर है दोषी।
सावन के होंठों को कैसे छुएँगे,
पर्यावरण बिनु कैसे जियेंगे?
सौदा परिंदों का.........
कुदरत ने बख्शी है ऐसी ये धरती,
पाती सहारा और ये संवरती।
कोई ख्वाब मिलके नया हम बुनेंगे,
पर्यावरण बिनु कैसे जियेंगे?
सौदा परिंदों का.........
प्रदूषण का प्याला कोई न पियेगा,
मजबूर होकर न कोई जिएगा।
नये इल्म से हम सब जेबा भरेंगे,
पर्यावरण बिनु कैसे जियेंगे?
सौदा परिंदों का.........
भर जाता फूलों से सुनों आसमां ये,
आठों पहर तब गमकता जहां ये।
पैगाम ऐसा हम देके रहेंगे,
पर्यावरण बिनु कैसे जियेंगे?
सौदा परिंदों का.........
रामकेश एम. यादव, मुंबई
( रॉयल्टी प्राप्त कवि व लेखक)
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