ग़ज़ल | #NayaSaveraNetwork
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वंदना, अहमदाबाद। |
नया सवेरा नेटवर्क
ग़ज़ल
बड़े पिंजरे में दाना मिल रहा है
तुम्हें जीवन सुहाना मिल रहा है
किसी को पेट भर रोटी न मिलती
किसी को तो ख़जाना मिल रहा है
समझ लूँ क्या भटक कर लौट आये
पता फिर से पुराना मिल रहा है
बिना मतलब के कहती रहती ग़ज़लें
हमें हर रोज़ ताना मिल रहा है
सुनेगी बिटिया पच्चीस लाख देकर
बहुत अच्छा घराना मिल रहा है
कहाँ रहने लगे हो आजकल तुम
के हर शय में ठिकाना मिल रहा है
अभी हम रूठकर बैठे हैं तुमसे
चले जाओ बहाना मिल रहा है
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