- यह लफ्ज़ निकलते हैं बीएचयू में उपचार कराने वाले मरीजों के
@ नया सवेरा नेटवर्क
वाराणसी। धरती के भगवान की जब चर्चा होती है तो लोगों के जेहन में चिकित्सकों का चेहरा उभरने लगता है। जीवन और मौत से जूझ रहे लोगों को नया जीवन देने में डॉक्टरों की भूमिका अहम होती है। आज के व्यावसायिक दौर में कुछ डॉक्टर की कार्यशाली के कारण इस पेशे पर भी सवालिया निशान उठने लगे हैं। बेहतर इलाज को लेकर आरोपी और प्रत्यारोपण के बीच"कहते हैं सौ सुनार की एक लोहार की" वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए एक डॉक्टर ने अपना पूरा जीवन और अपनी पूरी कमाई मरीजों को समर्पित कर दी है। मरीजों की सेवा करना उनके जीवन का एक मात्र लक्ष्य बन गया है।
सुबह से शाम तक अस्पताल में ही इनके जीवन का अधिकांश वक्त गुजर रहा है। वे अपनी सादगी औरअक्खड़पन के लिए विख्यात है। अस्पताल के मरीज और स्टाफ के अलावा किसी से ना मिलना उनकी आदत में शुमार है। ऐसे व्यक्ति को उनके आदर्शों से डिगा पाना नामुमकिन है। भला कौन डिगा सकता है । देश विदेश के राजनेता या बड़े अधिकारी हो, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। भी फिर वोसीएम हों या पीएम कोई फर्क नहीं पड़ता। ऐसे शख्स से सीएम योगी आदित्यनाथ के मिलने का प्रोग्राम एक बार बनाया गया था। लेकिन अपने वसूलों के पक्के इस धरती के भगवान ने सीएम ने मिलने से साफ इंकार कर दिया।
उनके इनकार को लेकर काफी हड़कंप मच गया था। हम बात कर रहे हैं काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) वाराणसी के कार्डियोलॉजिस्ट सर्जन पद्मश्री डाक्टर टी. के. लहरी की। रिटायरमेंट के 14 साल बाद भी मरीजों की सेवा कर रहे हैं। इनकी निस्वार्थ सेवा की चर्चा देश-विदेश में हो रही है। मरीजों के साथ ही साथ लोगों ने इन्हें महापुरुष और धरती का भगवान भी कहते हैं। प्रो. टी. के. लहरी ने वर्ष 1997 से वेतन नहीं लिया है।पद्मश्री डॉ. लहरी का जन्म कोलकाता में हुआ। अमेरिका से डॉक्टरी की पढ़ाई करने के बाद वर्ष 1974 में बीएचयू में लेक्चरर के पद पर 250 रुपए महीने पर उनकी नियुक्ति हुई।
गरीबों की सेवा को मिशन मानकर इन्होंने शादी नहीं की।इसके बाद वर्ष 1997 से इन्होंने सैलरी लेना बंद कर दिया और अपनी सैलरी को जरूरतमंद मरीजों को डोनेट कर दिया। संभवत वर्ष 1997 में उनकी सैलरी 84,000 थी। अन्य भत्तों को मिलाकर ये एक लाख के ऊपर थी। वर्ष 2003 में रिटायरमेंट के बाद मिली पेंशन और पीएफ की धनराशि को बीएचयू में मरीजों की सेवा के लिए दान कर दिया। पेंशन की धनराशि से डॉक्टर लहरी सिर्फ खाने का खर्च लेते हैं और रिटायरमेंट के बाद आज भी करीब अस्सी साल की उम्र में बीएचयू में ड्यूटी कर रहे हैं। उन्होंने अपना पूरा जीवन मरीजों की सेवा के लिए समर्पित कर दिया है। बताते है कि डॉ. लहरी अमेरिका समेत दूसरे देशों के कई बड़े हॉस्पिटल से ऑफर था, लेकिन उनका मन यहीं लग गया था। रिटायरमेंट के बाद वे रोज नियमित रूप से बीएचयू जाते हैं और 3 घंटे ड्यूटी करते हैं। खास बात यह है कि अपने आवासीय परिसर से बीएचयू ओपीडी तक पैदल जाते हैं।
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